हेमंत रस्तोगी, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: ओम. प्रकाश
Updated Sat, 28 Aug 2021 12:25 PM IST
सार
सेमीफाइनल में पहुंचने के बाद जब भाविना पटेल को पता चला कि उन्होंने टोक्यो पैरालंपिक खेलों में मेडल पक्का कर लिया है। ऐसे में वह भावुक हो गईं और भारतीय तिरंगे से लिपटकर रोने लगीं।
टोक्यो पैरालंपिक 2021 टेबल टेनिस खिलाड़ी भाविनाबेन पटेल
– फोटो : सोशल मीडिया
आपरेशन के बाद पोलियो से उबरने को बताई गई एक्सरसाइज में की गई ढिलाई ने भाविना को जिंदगी भर के लिए व्हील चेयर पर ला दिया, लेकिन टेबल टेनिस उनकी जिंदगी में आया तो ढिलाई शब्द उनकी जीवन से निकल गया। यह टेबल टेनिस था जिसके लिए वह कॉकरोच और कीड़ों से भरे अहमदाबाद की एक झोपड़पट्टी में भी रहीं। टेबल टेनिस के लिए ही उन्होंने अपने गांव से 30 किलोमीटर दूर का सफर चार ऑटो और बस बदलकर कई वर्षों तक किया, लेकिन भवीना का यह संघर्ष टोक्यो में रंग ले आया। हकीकत यह है कि सेमीफाइनल में पहुंचने के एक घंटे बाद तक यह तय नहीं हो पा रहा था कि भाविना का पदक पक्का हो गया है या नहीं। जब जॉर्डन के कोच ने भाविना के पति निकुल को बताया कि पदक पक्का है तो फिर वह तिरंगें में लिपटकर ऐसी रोईं कि मानों भगवान से मुंह मांगी मुराद पूरी कर दी हो।
भाविना और उनके पति निकुल ने टोक्यो से अमर उजाला से खुलासा किया कि अब तक टेबल टेनिस में ऐसा होता था कि कांस्य पदक के लिए भी मैच होते थे, लेकिन इस बार यहां राउंड रोबिन के मुकाबले थे और चारों सेमीफाइनलिस्ट के पदक थे। उन्हें इसकी जानकारी थी, लेकिन भारतीय दल में इसका किसी को पता नहीं था। इस लिए वह भी थोड़ा विश्वास में नहीं थे। एक घंटे तक ऐसी ही स्थिति रही, लेकिन जब उनके दोस्त जॉर्डन के एक कोच ने नियम लाकर दिखाए तब पता लगा कि पदक पक्का हो गया है। उसके बाद तो खुशी के आंसू फूट पड़े। तिरंगे से लिपटकर ऐसा लगा कि वर्षों की तपस्या का फल मिल गया हो। भाविना कहती हैं कि उनका अगला मुकाबला चीनी खिलाड़ी से है, लेकिन वह अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करेंगी।
भाविना का पदक नारी शक्ति का उदय
निकुल गर्व से कहते हैं कि अभी काम खत्म नहीं हुआ। भाविना को एकल के स्वर्ण तक जाना है और डबल्स में भी परचम लहराना है। निकुल कहते हैं कि पैरालंपिक उनकी पत्नी का पदक देश में नारी शक्ति का उदय है।
दिव्यांग भाविना के त्याग को देख स्वस्थ्य निकुल ने की शादी
निकुल अपनी पत्नी के एस्कार्ट बनकर टोक्यो आए हैं। वह पूरी तरह से स्वस्थ्य इंसान है। भाविना के दिव्यांग होने के बावजूद निकुल ने उनसे शादी करने का बड़ा फैसला लिया। निकुल खुलासा करते हैं कि एक ऐसी दोस्त जो उन दोनों की दोस्त थी उसके जरिए उन्हें भाविना के बारे में पता लगा। जब उन्होंने देखा कि एक 90 प्रतिशत दिव्यांग लड़की अपनें गांव से चार ऑटो और दो बस बदलकर रोजाना टेबल टेनिस खेलने आती है तो उन्होंने उनसे बात करने का फैसला लिया। इसके बाद वह अहमदाबाद के सिविल अस्पताल के दांतों के विभाग में नौकरी करने लगीं, लेकिन पैसा ज्यादा नहीं होने के चलते उन्हें एक चॉल (झोपड़पट्टी) एक कमरे में रहना पड़ा जिसमें कीड़ों और काकरोज आते-जाते रहते थे। भाविना ने टेबल टेनिस के लिए वह दिन भी काटे। जब उन्होंने भाविना से शादी करने का फैसला लिया तो छह माह तक उनके परिवार वाले उनसे नाराज रहे, लेकिन सच्चाई यह है कि आज उनका परिवार उनसे ज्यादा भाविना को प्यार करता है।
विस्तार
आपरेशन के बाद पोलियो से उबरने को बताई गई एक्सरसाइज में की गई ढिलाई ने भाविना को जिंदगी भर के लिए व्हील चेयर पर ला दिया, लेकिन टेबल टेनिस उनकी जिंदगी में आया तो ढिलाई शब्द उनकी जीवन से निकल गया। यह टेबल टेनिस था जिसके लिए वह कॉकरोच और कीड़ों से भरे अहमदाबाद की एक झोपड़पट्टी में भी रहीं। टेबल टेनिस के लिए ही उन्होंने अपने गांव से 30 किलोमीटर दूर का सफर चार ऑटो और बस बदलकर कई वर्षों तक किया, लेकिन भवीना का यह संघर्ष टोक्यो में रंग ले आया। हकीकत यह है कि सेमीफाइनल में पहुंचने के एक घंटे बाद तक यह तय नहीं हो पा रहा था कि भाविना का पदक पक्का हो गया है या नहीं। जब जॉर्डन के कोच ने भाविना के पति निकुल को बताया कि पदक पक्का है तो फिर वह तिरंगें में लिपटकर ऐसी रोईं कि मानों भगवान से मुंह मांगी मुराद पूरी कर दी हो।
भाविना और उनके पति निकुल ने टोक्यो से अमर उजाला से खुलासा किया कि अब तक टेबल टेनिस में ऐसा होता था कि कांस्य पदक के लिए भी मैच होते थे, लेकिन इस बार यहां राउंड रोबिन के मुकाबले थे और चारों सेमीफाइनलिस्ट के पदक थे। उन्हें इसकी जानकारी थी, लेकिन भारतीय दल में इसका किसी को पता नहीं था। इस लिए वह भी थोड़ा विश्वास में नहीं थे। एक घंटे तक ऐसी ही स्थिति रही, लेकिन जब उनके दोस्त जॉर्डन के एक कोच ने नियम लाकर दिखाए तब पता लगा कि पदक पक्का हो गया है। उसके बाद तो खुशी के आंसू फूट पड़े। तिरंगे से लिपटकर ऐसा लगा कि वर्षों की तपस्या का फल मिल गया हो। भाविना कहती हैं कि उनका अगला मुकाबला चीनी खिलाड़ी से है, लेकिन वह अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करेंगी।
भाविना का पदक नारी शक्ति का उदय
निकुल गर्व से कहते हैं कि अभी काम खत्म नहीं हुआ। भाविना को एकल के स्वर्ण तक जाना है और डबल्स में भी परचम लहराना है। निकुल कहते हैं कि पैरालंपिक उनकी पत्नी का पदक देश में नारी शक्ति का उदय है।
दिव्यांग भाविना के त्याग को देख स्वस्थ्य निकुल ने की शादी
निकुल अपनी पत्नी के एस्कार्ट बनकर टोक्यो आए हैं। वह पूरी तरह से स्वस्थ्य इंसान है। भाविना के दिव्यांग होने के बावजूद निकुल ने उनसे शादी करने का बड़ा फैसला लिया। निकुल खुलासा करते हैं कि एक ऐसी दोस्त जो उन दोनों की दोस्त थी उसके जरिए उन्हें भाविना के बारे में पता लगा। जब उन्होंने देखा कि एक 90 प्रतिशत दिव्यांग लड़की अपनें गांव से चार ऑटो और दो बस बदलकर रोजाना टेबल टेनिस खेलने आती है तो उन्होंने उनसे बात करने का फैसला लिया। इसके बाद वह अहमदाबाद के सिविल अस्पताल के दांतों के विभाग में नौकरी करने लगीं, लेकिन पैसा ज्यादा नहीं होने के चलते उन्हें एक चॉल (झोपड़पट्टी) एक कमरे में रहना पड़ा जिसमें कीड़ों और काकरोज आते-जाते रहते थे। भाविना ने टेबल टेनिस के लिए वह दिन भी काटे। जब उन्होंने भाविना से शादी करने का फैसला लिया तो छह माह तक उनके परिवार वाले उनसे नाराज रहे, लेकिन सच्चाई यह है कि आज उनका परिवार उनसे ज्यादा भाविना को प्यार करता है।
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