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Tokyo Paralympics: खेलों से पहले प्रमोद पर टूटा था मुसीबतों का पहाड़, मां के संस्कार पर गए बैडमिंटन खिलाड़ी बने मिस टेस्ट के दोषी

हेमंत रस्तोगी, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: ओम. प्रकाश
Updated Wed, 08 Sep 2021 08:51 AM IST

सार

टोक्यो पैरालंपिक में शटलर प्रमोद भगत ने भारत को बैडमिंटन में पहला स्वर्ण पदक दिलाया था। पैरालंपिक खेलों तक का सफर प्रमोद के लिए आसान नहीं था। वह कहते हैं, कि पैरालंपिक से कुछ माह पहले मां के चले जाने ने उन्हें बुरी तरह तोड़ दिया था। एक ओर उनकी मां का देहांत हो गया था ऊपर से उनके संस्कार में शामिल होने के कारण उन्हें व्हेयर अबाउट दोषी करार दिया गया था।

गोल्ड मेडलिस्ट प्रमोद भगत
– फोटो : twitter

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पैरा शटलर प्रमोद भगत के मुंह से छूटते ही निकलता है कि काश आज मां होती तो यह स्वर्ण पदक उनके गले में डाल देता। मां दुनिया छोड़ रही थी लेकिन स्वर्ग सिधारने से पहले उन्होंने टोक्यो में स्वर्ण जीतने का आर्शीवाद दिया था। प्रमोद खुलासा करते हैं कि पैरालंपिक से कुछ माह पहले मां के चले जाने ने उन्हें बुरी तरह तोड़ दिया था। एक ओर उनकी मां का देहांत हो गया था ऊपर से उनके संस्कार में शामिल होने के कारण उन्हें व्हेयर अबाउट (डोप टेस्टिंग के लिए दिए जाने वाला पता) का दोषी करार दिया गया था। लखनऊ में पीछे से वल्र्ड बैडमिंटन फेडरेशन की टीम उनका सैंपल लेने आई गई थी, लेकिन वह मां के संस्कार में थे।

तो पैरालंपिक नहीं खेल पाते प्रमोद

लखनऊ में दिए गए पते पर नहीं मिलने के कारण बीडब्लूएफ ने उनका मिस टेस्ट करार दिया। कोच गौरव खन्ना के मुताबिक प्रमोद के लिए यह मुसीबत का वक्त था। उन्होंने बीडब्लूएफ से गुहार लगाई ऐसा नहीं करें, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। नतीजा यह निकला कि प्रमोद पटना से वापस आने के बाद फिर लखनऊ नहीं छोड़ा और तैयारियों में जुट गए। अगर उनके दो और मिस टेस्ट घोषित कर दिए जाते तो फिर वह पैरालंपिक नहीं खेल सकते। लेकिन इस घटना से पूरी टीम ने सबक लिया और व्हेयर अबाउट के लिए दिए गए पते पर रहे।

मां की यादों को सहारा बना की तैयारी

प्रमोद के मुताबिक 2005 में उनकेपिता चले गए थे उसके बाद उनकी मां कुसुम देवी उनका सहारा बनीं। उस समय मां पटना में थीं। उनके पास सूचना आई कि वह बीमार हैं उनकी हालत गंभीर है। मां के पास सिर्फ एक भाई था। वह लखनऊ से तुरंत पटना चले गए। लेकिन मां नहीं बचीं। वह बुरी तरह टूटे हुए थे। लेकिन कोच ने काफी समझाया और मां की यादों के सहारे तैयारियों में जुट गए। यही कारण है कि वह यह स्वर्ण अपनी मां और पिता को समर्पित करते हैं। पिता ने उन्हें रैकेट दिलाने के लिए काफी त्याग किया।

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पैरा शटलर प्रमोद भगत के मुंह से छूटते ही निकलता है कि काश आज मां होती तो यह स्वर्ण पदक उनके गले में डाल देता। मां दुनिया छोड़ रही थी लेकिन स्वर्ग सिधारने से पहले उन्होंने टोक्यो में स्वर्ण जीतने का आर्शीवाद दिया था। प्रमोद खुलासा करते हैं कि पैरालंपिक से कुछ माह पहले मां के चले जाने ने उन्हें बुरी तरह तोड़ दिया था। एक ओर उनकी मां का देहांत हो गया था ऊपर से उनके संस्कार में शामिल होने के कारण उन्हें व्हेयर अबाउट (डोप टेस्टिंग के लिए दिए जाने वाला पता) का दोषी करार दिया गया था। लखनऊ में पीछे से वल्र्ड बैडमिंटन फेडरेशन की टीम उनका सैंपल लेने आई गई थी, लेकिन वह मां के संस्कार में थे।

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