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Tokyo Olympics: 69 साल पहले आज ही के दिन बेटियों ने ओलंपिक में जगाई थी उम्मीद की लौ

राजीव शर्मा, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: ओम. प्रकाश
Updated Wed, 21 Jul 2021 12:47 PM IST

सार

आज के दिन 69 साल पहले भारत की बेटियों ने पहली बार ओलंपिक में हिस्सा लिया था। साल 1952 में हेलसिंकी में हुए इन खेलों में भारत की ओर से चार बेटियों ने अपनी किस्मत आजमाई। 

टोक्यो ओलंपिक
– फोटो : सोशल मीडिया

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चार बेटियां, दो खेल और पांच स्पर्धाएं। ठीक आज से 69 साल (21 जुलाई 1952, हेलसिंकी) पहले खेलों के महासमर में पहली बार मैदान पर उतरकर भारतीय बेटियों ने जो उम्मीद की लौ जगाई थी वह अब मशाल बन चुकी है। हेलसिंकी से बेटियों ने जो ऐतिहासिक सफर शुरू किया था वह टेडी-मेडी पगडंडियों से होता हुआ अब जापान की राजधानी टोक्यो पहुंच चुका है। वो भी रिकॉर्ड 55 बेटियों और रिकॉर्ड 16 खेलों के साथ। दुनिया भर के 200 से ज्यादा देशों के 11000 से ज्यादा खिलाड़ियों के बीच देश की बेटियां तिरंगे की शान बढ़ाने को बेताब हैं। उम्मीद है कि बेटियां 69वीं सालगिरह पर नया इतिहास लिखेंगी।

पांचवें स्थान पर रहने के बावजूद नीलिमा ने बनाया था इतिहास 

17 साल की नीलिमा घोष के 100 मीटर दौड़ की पहली हीट के लिए मैदान पर उतरने के साथ ही बेटियों ने इतिहास केपन्नों में अपना नाम दर्ज करवा लिया था। नीलिमा पांच खिलाड़ियों में 13.6 सेकंड का समय निकालकर पांचवें स्थान पर रहकर आगे नहीं बढ़ पाईं पर पहली भारतीय महिला ओलंपियन बन गईं। इसके कुछ देर बाद मैरी डिसूजा भी 100 मीटर हीट में 13.1 सेकंड के साथ पांचवें नंबर पर रहीं। नीलिमा 80 मीटर बाधा दौड़ तो डिसूजा 200 मीटर दौड़ में भी पहले ही दौर में बाहर हो गईं। तैराक डॉली नाजीर (100 मीटर फ्रीस्टाइल, 200 मीटर ब्रेस्टस्ट्रोक) व आरती शाह (200 मीटर ब्रेस्टस्ट्रोक) भी पहले दौर से आगे नहीं बढ़ पाईं। इसके बाद सिर्फ चार (1956 मेलबर्न, 1960 रोम, 1968 मैक्सिको और 1976 मॉट्रियल) बार ऐसा हुआ जब कोई भी भारतीय महिला खिलाड़ी ओलंपिक में नहीं खेली।

32 साल बाद पहला सेमीफाइनल और फाइनल  

दिग्गज शाइनी विल्सन (1984 लॉस एंजिलिस) बेटियों के ओलंपिक में भाग लेने के 32 साल बाद किसी स्पर्धा के सेमीफाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनी। शाइनी 800 मीटर दौड़ के अंतिम चार में पहुंची। इन्हीं खेलों में उड़न परी पीटी ऊषा ने एक और कदम आगे फाइनल में जगह बनाकर पदक की उम्मीद जगा दी। वह फाइनल में पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। उन्होेंने 400 मीटर बाधा दौड़ में 55.42 सेकंड के समय के साथ राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया पर कुछ सेकंड से पदक से चूक गईं। वहीं 2004 एंथेस ओलंपिक में लांग जंपर अंजू बॉबी जार्ज पांचवें स्थान पर रही। उन्होंने 6.83 मीटर की कूद लगाई जो आज तक राष्ट्रीय रिकॉर्ड है। रियो ओलंपिक 2016 में जिम्नास्ट दीपा करमाकर भी चौथे स्थान पर रहते हुए पदक से चूक गईं।

48 साल बाद पहला पदक
 

वेटलिफ्टर कर्णम मल्लेश्वरी (69 किग्रा, सिडनी 2000) 48 साल बाद ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी बनी थी।

64 साल बाद रजत 

शटलर पीवी सिंधू (रियो 2016) ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं। सिंधू की उम्र तब 21 साल की थी और वह ओलंपिक पदक जीतने वाली देश की सबसे युवा भारतीय महिला हैं। साइना नेहवाल (लंदन, 2012) में पदक जीतने वाली पहली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी बनीं थी। उन्होंने कांसा जीता था। यह एकमात्र खेल है जिसमें दो महिलाओं ने पदक जीते हैं। कुश्ती में साक्षी और मुक्केबाजी में मैरीकॉम अपने-अपने खेल में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। इन दोनों ने कांस्य पदक जीता है।

जब बेटियों ने रखी लाज 

रियो ओलंपिक 2016 में देश के सबसे बड़े 117 सदस्यीय दल ने भाग लिया था। कई स्टार खिलाड़ियों खासकर पुरुषों से पदक की उम्मीद थी पर कोई भी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा। ऐसे में पहलवान साक्षी मलिक कांस्य और शटलर सिंधु ने रजत जीतकर लाज बचाई। 

विस्तार

चार बेटियां, दो खेल और पांच स्पर्धाएं। ठीक आज से 69 साल (21 जुलाई 1952, हेलसिंकी) पहले खेलों के महासमर में पहली बार मैदान पर उतरकर भारतीय बेटियों ने जो उम्मीद की लौ जगाई थी वह अब मशाल बन चुकी है। हेलसिंकी से बेटियों ने जो ऐतिहासिक सफर शुरू किया था वह टेडी-मेडी पगडंडियों से होता हुआ अब जापान की राजधानी टोक्यो पहुंच चुका है। वो भी रिकॉर्ड 55 बेटियों और रिकॉर्ड 16 खेलों के साथ। दुनिया भर के 200 से ज्यादा देशों के 11000 से ज्यादा खिलाड़ियों के बीच देश की बेटियां तिरंगे की शान बढ़ाने को बेताब हैं। उम्मीद है कि बेटियां 69वीं सालगिरह पर नया इतिहास लिखेंगी।

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