साल 2021 की सबसे बड़ी हिट फिल्म ‘पुष्पा पार्ट वन’ के संगीतकार देवी श्री प्रसाद उर्फ रॉकस्टार डीएसपी के प्रशंसक हिंदी पट्टी में भी लाखों हैं। ‘आ अंटे अमलापुरम’, ‘ढिंगा चिका’ और ‘सीटीमार’ जैसे उनके गाने उत्तर भारत की पार्टियों में खूब बजते हैं। चेन्नई में उनके स्टूडियो का नाम है वृंदावन और वह खुद भी भगवान श्रीकृष्ण से खासे प्रभावित दिखते हैं। वह मौजूदा पीढ़ी के इकलौते ऐसे संगीतकार हैं जो स्टेज पर गाते हुए जबर्दस्त डांस भी करते हैं। उनके फैंस उन्हें ‘रॉकस्टार’ कहकर बुलाते हैं और इसी नाम के एक टेलीविजन शो में भी वह नजर आ चुके हैं। देवी श्री प्रसाद ने इस लंबे इंटरव्यू में हिंदी में आने वाले अपने ओरीजनल गानों, दक्षिण भारतीय भाषाओं में बने अपने गानों की हिंदी प्रदेशों में लोकप्रियता, हाशिये पर पड़े देश के संगीत साधकों को मुख्य धारा में लाने के अपने प्रयासों, अपने पिता से अपने जुड़ाव और जल्द ही बड़े परदे पर बतौर हीरो डेब्यू करने की अपनी संभावनाओं पर ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल से खुलकर बातें की हैं। इस इंटरव्यू के कुछ अंश अमर उजाला अखबार में शनिवार को प्रकाशित हुए, यहां पढ़िए ये पूरा इंटरव्यू।
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Sunday Interview: बतौर हीरो डेब्यू पर डीएसपी का सबसे बड़ा खुलासा, बोले, ‘लता और किशोर के गानों ने सिखाए शुरुआती सबक’
‘पुष्पा पार्ट 1’ बीते साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली भारतीय फिल्म बन चुकी है। बीते तीन हफ्ते से ये फिल्म पूरी दुनिया में हल्ला मचा रही है, ये नया एहसास कैसा है?
बहुत अच्छा एहसास है। सबसे पहले मैं सबको शुक्रिया बोलना चाहता हूं। सभी उत्तर भारतीय दर्शकों को बहुत बहुत ज्यादा शुक्रिया। क्योंकि, उन्होंने ही फिल्म को इतनी बड़ी हिट फिल्म बना दिया। हम सब बहुत खुश हैं। सब को बहुत बहुत आभार। हम लोग खुद को भाग्यशाली मान रहे हैं। इस महामारी और इस उहापोह के बीच में हम को भी नहीं पता था कि ये लोगों तक कैसे पहुंचेगी। हम लोगों ने इस फिल्म को पूरा करने में बहुत ज्यादा मुश्किलों का सामना किया है। महामारी सबको लगातार रोकती रही। पूरी टीम ने जंगलों में रहकर बहुत मेहनत से ये फिल्म बनाई। संगीत के लिहाज से भी इसने बहुत समय लिया हमारा क्योंकि ये पांच भाषाओं में बनी फिल्म है। मुझे भी सारे गीतकारों और गायकों के साथ बैठना पड़ा। काफी समय निवेश करना पड़ा। ऐसे में जब लोगों से हमें इतनी अच्छी प्रतिक्रिया मिली है तो लगता है कि मेहनत सफल रही।
हिंदी में आपका नाम इस फिल्म से पहले से ही चर्चित रहा है क्योंकि आपके गाने ‘सीटीमार’ और ‘आ अंटे अमलापुरम’ हिंदी पट्टी के लोगों ने भी खूब सुने हैं। मैं ये जानना चाहता हूं कि पुष्पा के लिए जब आपने पांच भाषाओं में संगीत रचा तो तेलुगू के अलावा जो भाषाएं रहीं उनमें से किसमें आपको ज्यादा चुनौती दिखी?
तमिल और तेलूगू दोनों भाषाओं में मैं काफी निपुण हूं। लिखने और बोलने दोनों में। हिदी और अंग्रेजी भी मुझे अच्छे से आती है। हिंदी में मेरा हाथ थोड़ा बोलने के मामले में भले तंग हो लेकिन मैं हिंदी समझ सकता हूं, लिख और पढ़ भी सकता हूं। इस बहुभाषी ज्ञान ने मेरी काफी मदद की। मैं ये चारों भाषाएं एक जैसी गति से लिख सकता हूं। इसे मैं एक आशीर्वाद मानता हूं। जब अलग अलग भाषाओं के गीतकार मेरे पास आते हैं तो वे हैरान रह जाते हैं कि मैं कैसे ये सब इतनी सरलता से कर लेता हूं। मेरा जन्म चेन्नई में हुआ और हिंदी पढ़ना और लिखना यहां इतना सामान्य है नहीं। हिंदी मैं बोल सकता हूं लेकिन क्या होता है जब मैं हिंदी में बात करता हूं तो बहुत सारी व्याकरणीय गलतियां होने लगती हैं तो मुझे थोड़ा हिचक रहती है हिंदी में बात करने में।
मेरा मानना है कि व्याकरणीय गलतियां होते रहने देनी चाहिए और आपको हिंदी खूब बोलना चाहिए..
मैं जब मुंबई आता हूं और वहां रहता हूं तो मेरी हिंदी काफी बेहतर हो जाती है। ऐसा वहां के लोगों के साथ बातें करते करते हो जाता है लेकिन फिर जब मैं वापस आता हूं चेन्नई तो अभ्यास छूट जाता है। लेकिन मैं बहुत प्यार करता हूं हिंदी से क्योंकि हिंदी एक बहुत ही संगीतमयी भाषा है। भाव प्रकट करने के लिए ये बहुत ही सुंदर भाषा है। हिंदी में बहुत सारे छोटे छोटे शब्दांश (सेलेबल्स) है जैसे प्यार, दिल वगैरह तो क्या होता है न सर, जब सिंगल सिलेबल वर्ड होता है तो वह बहुत आसानी से धुन में पिरोया जा सकता है। जो भी ऐसे शब्द होते हैं वे संगीत की धुन में बहुत आसानी से फिट हो जाते हैं। मेरा मानना है कि संगीत के लिहाज से हिंदी बहुत ही सुंदर भाषा है।
और, मुझे लगता है कि इसमें आपको इसलिए भी मदद मिलती होगी क्योकि आप संगीतकार होने के अलावा गाने लिखते भी हैं और गाने गाते भी हैं..
हां जी, हां जी! इसलिए जब पुष्पा का म्यूजिक कंपोज करता था तो ये तीनों लैंग्वेज में मुझे आसानी रही क्योंकि तमिल, तेलुगू और हिंदी में गीतकारों के साथ बैठकर मैं संगीत की भाषा उन्हें समझा पाया। ये समझा पाया कि गाने का ओरीजनल फ्लेवर ये है। वैसे तो हम कहते हैं कि संगीत की कोई भाषा नहीं होती, भाषा तो तब आती है जब इसमें गीत पिरोते हैं तो मेरा प्रयास ये रहता है कि जब मैं गाना एक भाषा से दूसरी भाषा में बनाऊं तो ये डबिंग सॉन्ग जैसा नहीं लगना चाहिए। ये गाना उसी भाषा का मौलिक गाना लगना चाहिए क्योंकि हर भाषा की अपनी सुंदरता और अपना भाव है।