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Jammu Kashmir: पूर्व आर्मी चीफ एनसी विज बोले, जम्मू-कश्मीर में 8-10 साल में खत्म हो सकता है आतंकवाद 

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: Amit Mandal
Updated Wed, 22 Dec 2021 11:15 PM IST

सार

पूर्व आर्मी चीफ विज ने कहा कि कश्मीरियों की पाकिस्तान पर निर्भरता शायद एक बड़ी भूल थी जिसकी उन्हें कीमत चुकानी पड़ी।

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पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल (सेवानिवृत्त) एन सी विज का कहना है कि कश्मीर में दो-तीन साल के प्रतिरोध के बाद आतंकवाद धीरे-धीरे खत्म होना शुरू हो जाएगा और 8-10 साल की अवधि में इसके निष्प्रभावी होने की संभावना है। उन्होंने “द कश्मीर कॉनड्रम: द क्वेस्ट फॉर पीस इन ए ट्रबल्ड लैंड” नाम से एक किताब प्रकाशित की है जिसमें उन्होंने एक पूरा खाका खीांचने की कोशिश की है जिसमें जम्मू-कश्मीर और यहां के लोगों के इतिहास से इसके विशेष दर्जे को हटाए जाने तक का जिक्र है। 

कश्मीर में उग्रवाद को गहरा झटका लगा 
जम्मू-कश्मीर के रहने वाले विज कहते हैं, इस क्षेत्र में आतंकवाद के जल्द खत्म होने की संभावना नहीं है। इसमें आठ से दस साल लग सकते हैं, लेकिन समय के साथ इसकी तीव्रता कम होने की संभावना है, क्योंकि पाकिस्तान की गड़बड़ी करने की क्षमता भी कम हो जाएगी। उनका कहना है कि वह आश्वस्त हैं कि 5 और 6 अगस्त, 2019 के महत्वपूर्ण घटनाक्रम ने कश्मीर में उग्रवाद को गहरा झटका दिया है।

उन्होंने कहा, पाकिस्तान और अलगाववादियों को आक्रामक तरीका छोड़कर अपने लिए बचाव की रणनीति अपनाने पर मजबूर होना पड़ा है। साथ ही, अनुच्छेद 370 और 35ए के निरस्त होने से कश्मीरियों के लिए नई दुविधाएं पैदा हुई हैं। उन्होंने अपना विशेष दर्जा खो दिया है। 

कश्मीर के लोगों को अब सता रहा ये डर 
हार्पर कॉलिन्स इंडिया द्वारा प्रकाशित पुस्तक में विज लिखते हैं, विशेष दर्जे के कारण उन्होंने (नागरिक) खुद को हमेशा शेष भारत से अलग महसूस किया था। अब उन्हें डर है कि वे अपने ही गृह राज्य में अल्पसंख्यक हो जाएंगे। उनका यह भी कहना है कि भारत ने पाकिस्तान को एक निराशाजनक स्थिति में धकेल दिया है और यह बिल्कुल साफ हो गया है कि पाकिस्तान किसी भी क्षेत्र में भारत से मुकाबला नहीं कर सकता है, चाहे वह राजनयिक, आर्थिक या सैन्य हो।

विज कहते हैं, कश्मीरियों की पाकिस्तान पर निर्भरता शायद एक बड़ी भूल थी जिसकी उन्हें कीमत चुकानी पड़ी। वास्तव में, पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र होने की उनकी इच्छा एक खोई हुई उम्मीद बन गई है। विज के अनुसार, इन सभी कारकों को एक साथ रखने से निश्चित रूप से कश्मीरियों को अपने दृष्टिकोण और भविष्य के लक्ष्यों के बारे में गंभीर पुनर्विचार करना होगा। उन्हें क्या करना चाहिए ? क्या उन्हें अभी भी आजादी का सपना देखना चाहिए या जो उन्होंने खोया है उसे वापस पाने की कोशिश करनी चाहिए? क्या वे वास्तव में एक निराश पाकिस्तान की सहायता से भारत का मुकाबला कर सकते हैं? इसका जवाब विज साफ तौर पर नहीं में देते हैं।

विस्तार

पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल (सेवानिवृत्त) एन सी विज का कहना है कि कश्मीर में दो-तीन साल के प्रतिरोध के बाद आतंकवाद धीरे-धीरे खत्म होना शुरू हो जाएगा और 8-10 साल की अवधि में इसके निष्प्रभावी होने की संभावना है। उन्होंने “द कश्मीर कॉनड्रम: द क्वेस्ट फॉर पीस इन ए ट्रबल्ड लैंड” नाम से एक किताब प्रकाशित की है जिसमें उन्होंने एक पूरा खाका खीांचने की कोशिश की है जिसमें जम्मू-कश्मीर और यहां के लोगों के इतिहास से इसके विशेष दर्जे को हटाए जाने तक का जिक्र है। 

कश्मीर में उग्रवाद को गहरा झटका लगा 

जम्मू-कश्मीर के रहने वाले विज कहते हैं, इस क्षेत्र में आतंकवाद के जल्द खत्म होने की संभावना नहीं है। इसमें आठ से दस साल लग सकते हैं, लेकिन समय के साथ इसकी तीव्रता कम होने की संभावना है, क्योंकि पाकिस्तान की गड़बड़ी करने की क्षमता भी कम हो जाएगी। उनका कहना है कि वह आश्वस्त हैं कि 5 और 6 अगस्त, 2019 के महत्वपूर्ण घटनाक्रम ने कश्मीर में उग्रवाद को गहरा झटका दिया है।

उन्होंने कहा, पाकिस्तान और अलगाववादियों को आक्रामक तरीका छोड़कर अपने लिए बचाव की रणनीति अपनाने पर मजबूर होना पड़ा है। साथ ही, अनुच्छेद 370 और 35ए के निरस्त होने से कश्मीरियों के लिए नई दुविधाएं पैदा हुई हैं। उन्होंने अपना विशेष दर्जा खो दिया है। 

कश्मीर के लोगों को अब सता रहा ये डर 

हार्पर कॉलिन्स इंडिया द्वारा प्रकाशित पुस्तक में विज लिखते हैं, विशेष दर्जे के कारण उन्होंने (नागरिक) खुद को हमेशा शेष भारत से अलग महसूस किया था। अब उन्हें डर है कि वे अपने ही गृह राज्य में अल्पसंख्यक हो जाएंगे। उनका यह भी कहना है कि भारत ने पाकिस्तान को एक निराशाजनक स्थिति में धकेल दिया है और यह बिल्कुल साफ हो गया है कि पाकिस्तान किसी भी क्षेत्र में भारत से मुकाबला नहीं कर सकता है, चाहे वह राजनयिक, आर्थिक या सैन्य हो।

विज कहते हैं, कश्मीरियों की पाकिस्तान पर निर्भरता शायद एक बड़ी भूल थी जिसकी उन्हें कीमत चुकानी पड़ी। वास्तव में, पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र होने की उनकी इच्छा एक खोई हुई उम्मीद बन गई है। विज के अनुसार, इन सभी कारकों को एक साथ रखने से निश्चित रूप से कश्मीरियों को अपने दृष्टिकोण और भविष्य के लक्ष्यों के बारे में गंभीर पुनर्विचार करना होगा। उन्हें क्या करना चाहिए ? क्या उन्हें अभी भी आजादी का सपना देखना चाहिए या जो उन्होंने खोया है उसे वापस पाने की कोशिश करनी चाहिए? क्या वे वास्तव में एक निराश पाकिस्तान की सहायता से भारत का मुकाबला कर सकते हैं? इसका जवाब विज साफ तौर पर नहीं में देते हैं।

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