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Edible Oil Prices: कमर तोड़ महंगाई: पेट्रोल-डीजल ही नहीं, खाद्य तेलों की कीमत से भी जनता हलकान, क्या करेगी सरकार?

सार

भारत में एक साल में खाद्य तेलों की कीमत 50 फीसदी बढ़ी है। मई 2021 में कीमतें 10 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंची। भारत अपनी कुल खाद्य तेल की जरूरत का 70 फीसदी हिस्सा विदेशों से आयात करता है।

एक साल में 50% महंगा हुआ खाने का तेल
– फोटो : अमर उजाला

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देश में तेल की कीमतों ने आसमान छू लिया है। चाहे बात पेट्रोल-डीजल की हो या खाद्य तेलों की, बढ़ती महंगाई ने जनता की कमर तोड़ दी है। कोरोना काल में लोगों का बजट तो बिगड़ा ही है, अब खाद्य तेलों की कीमत ने भोजन का जायका भी बिगाड़ दिया है। लोगों के लिए घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है। पिछले एक साल में खाने वाले तेल की कीमतों में करीब 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। 

10 साल के उच्चतम स्तर पर तेल की कीमतें
मई 2021 में खाने के तेल की कीमतें 10 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंची। सरकारी डाटा के अनुसार, जून 2020 से जून 2021 के बीच ग्राउंडनट ऑयल की कीमतें करीब 20 फीसदी, सरसों के तेल की कीमत करीब 50 फीसदी, वनस्पति तेल की कीमत 45 फीसदी और सनफ्लावर, पाम तेल की कीमतें करीब 60 फीसदी बढ़ी हैं। जो तेल एक साल पहले 90 से 100 रुपये प्रति लीटर के दाम पर बिक रहा था, वह अब 150 से 160 रुपये का हो गया है। 

तेल के लिए दूसरे देशों पर निर्भर भारत 
दी सेंट्रल आर्गेनाइजेशन फॉर आयल इंडस्ट्रीज एंड ट्रेड के अनुसार, अनुमानत: भारत में प्रति वर्ष लगभग 2.5 करोड़ लीटर खाद्य तेल की खपत होती है। अपने घरेलू उत्पादन से भारत इसमें से केवल 90 लाख लीटर के आसपास की जरूरत पूरी कर पाता है। बाकी 1.40 या 1.50 करोड़ लीटर खाद्य तेल के लिए भारत अर्जेंटीना, कनाडा, मलयेशिया, ब्राजील और अन्य दक्षिणी अमेरिकी देशों पर निर्भर करता है। भारत अपनी कुल खाद्य तेल की जरूरत का 70 फीसदी हिस्सा विदेशों से आयात करता है, जिसके लिए भारत भारी कीमत चुका रहा है। वर्ष 1994-95 में भारत अपनी कुल जरूरत का केवल 10 फीसदी हिस्सा खाद्य तेल आयात करता था। एक अनुमार के अनुसार, केवल खाद्य तेलों के आयात पर भारत प्रति वर्ष 75-80 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है जो भारत के कुल आयात का लगभग 2.5 फीसदी है।

  • क्रूड पाम तेल- खाने की तेल की खपत का करीब 40 फीसदी हिस्सा पॉम आयल का है। देश की आयात सूची में क्रूड ऑयल और गोल्ड के बाद सबसे ज्यादा हिस्सा पाम ऑयल का ही होता है। पूरी दुनिया में पाम ऑयल उत्पादन का करीब 85 फीसदी हिस्सा इंडोनेशिया व मलयेशिया से होता है। लेकिन महामारी के दौरान पाम ऑयल की फसल पर असर हुआ।
  • सन फ्लावर ऑयल- यूक्रेन और रूस में सन फ्लावर ऑयल का दुनिया में सबसे ज्यादा उत्पादन होता है। इन दो देशों में वैश्विक सप्लाई का 50 फीसदी सनफ्लावर ऑयल तैयार होता है। कोरोना महामारी के चलते सप्लाई चेन प्रभावित हुई और तेल के दाम बढ़े।
  • सोयाबीन तेल- भारत में सोयाबीन तेल का उत्पादन होता है, लेकिन ब्राजील इसका सबसे बड़ा उत्पादक देश है। लेकिन ब्राजील में सूखा पड़ने की वजह से फसलों पर असर हुआ है। 
  • सरसों तेल- भारत के कई हिस्सों में सरसों का तेल प्रमुखता से इस्तेमाल किया जाता है। हाल ही में इसकी कीमत में भी जबरदस्त तेजी देखने को मिली। लेकिन इसका कारण विदेशी देशों पर निर्भरता नहीं है। भारत में सरसों का काफी उत्पादन होता है। कृषि मंत्री ने सरसों के तेल में होने वाली ब्लेंडिंग (दूसरे तेलों की मिलावट) पर नकेल कसी है, जिसकी वजह से सरसों का तेल महंगा हुआ है।

वर्ष 1950-51 में पूरे देश में रेपसीड (कैनोला) और सरसों की खेती 20 लाख हेक्टेयर भूमि पर होती थी। पिछले 70 वर्षों में यह रकबा बढ़कर 62 लाख हेक्टेयर तक ही पहुंच पाया है, जबकि इस बीच प्रति हेक्टेयर औसत पैदावार 368 किलोग्राम से बढ़कर 1,500 किलोग्राम तक पहुंच चुकी है। यानी सरसों का रकबा और पैदावार, दोनों में वृद्धि हुई है, पर खाद्य तेल की बढ़ती मांग के सामने यह वृद्धि कम है। यही कारण है कि आज भी हम 150 लाख टन से अधिक खाद्य तेलों का आयात करते हैं, और 2019-20 में खाद्य तेलों का हमारा आयात बिल 69,000 करोड़ रुपये रहा।

क्या करेगी सरकार?
जनता को राहत देने के लिए सरकार टैक्स घटाने की तैयारी कर रही है। खाद्य तेलों में आयात कर को घटाने का प्रस्ताव विचाराधीन है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने कुछ वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के हवाले से इसकी जानकारी दी है। आयात कर घटने से घरेलू बाजार में तेलों की कीमतें कम होंगी और साथ ही इसकी खपत भी बढ़ेगी। इससे आयात होने वाले पाम ऑयल, सोया ऑयल, सनफ्लावर ऑयल के आयात को सहारा मिलेगा और घरेलू सरसों, सोयाबीन और मुंगफली तेल के दाम भी घटेंगे। फिलहाल सरकार 32.5 फीसदी ड्यूटी पाम ऑयल पर और सोयाबीन तेल पर 35 फीसदी ड्यूटी लगाती है।

रणनीति तैयार
केंद्र सरकार ने कहा कि उसने इस वर्ष जुलाई से शुरू होने वाले आगामी खरीफ (गर्मी) मौसम में तिलहन के तहत 6.37 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त रकबा लाने के लिए एक बहुस्तरीय रणनीति तैयार की है। इसके अलावा, सरकार ने वर्ष 2021-22 के खरीफ सत्र में किसानों को तिलहन, विशेष रूप से सोयाबीन और मूंगफली की अधिक उपज देने वाली बीज वितरित करने का निर्णय लिया है।

बीजों का मुफ्त वितरण करेगी सरकार
पिछले साल खरीफ सत्र के दौरान 208.2 लाख हेक्टेयर और रबी (सर्दियों) सत्र में 80 लाख हेक्टेयर में तिलहन बोया गया था। एक बयान में, कृषि मंत्रालय ने कहा कि उसने तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए एक ‘बहुस्तरीय रणनीति’ तैयार की है। इसमें कहा गया है, ‘भारत सरकार ने वर्ष 2021 के खरीफ सत्र के लिए किसानों को एक मिनी किट के रूप में अधिक उपज देने वाले बीजों का मुफ्त वितरण करने की एक महत्वाकांक्षी योजना को मंजूरी दी है।’

उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए बीज बांटेगी सरकार
विशेष खरीफ कार्यक्रम तिलहन के तहत 6.37 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र को लाने की संभावना है। इससे 120.26 लाख कुंतल तिलहन और 24.36 लाख कुंतल खाद्य तेल का उत्पादन होने की संभावना है। मंत्रालय ने कहा कि राज्य सरकारों के साथ विचार-विमर्श के बाद, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (तिलहन और पाम तेल) के तहत किसानों को मुफ्त में सोयाबीन और मूंगफली बीज के दाने वितरित करने की योजना तैयार की गई है।

ये है सरकार का उद्देश्य
वितरित किए जाने वाले सोयाबीन के बीज में प्रति हेक्टेयर कम से कम 20 कुंतल की उपज होगी। मूंगफली के मामले में, मंत्रालय ने कहा कि गुजरात, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और तमिलनाडु में लगभग 74,000 मूंगफली के बीज वाले मिनी किट वितरित किए जाएंगे। तिलहन और पामतेल पर राष्ट्रीय मिशन के माध्यम से सरकार का उद्देश्य खाद्य तेलों की उपलब्धता को बढ़ाना और उनके आयात को कम करना है।

चीन ने बिगाड़ा हर घर का बजट
चीन के कारण घर का बजट बिगड़ रहा है। चीन में खाद्य तेलों की खपत बढ़ने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खाद्य तेलों की कीमतों में उछाल आया है, जिसका सीधा असर भारत के घरेलू बाजार पर पड़ा है और आम आदमी का बजट बिगड़ गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत अपनी कुल खाद्य तेल की जरूरत का बड़ा हिस्सा विदेशों से आयात करता है। चीन में बढ़ती खपत से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आए उछाल से घरेलू बाजार में भी कीमत बढ़ी है।

अचानक क्यों बढ़ रही है चीन में खाद्य तेलों की खपत?
दरअसल चीन की विशाल आबादी के खानपान में बदलाव आ रहा है। सामान्य तौर पर चीन के समाज में उबले भोजन की प्रमुखता थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय खानपान का चलन बढ़ने से वहां अब तले भोजन की खपत बढ़ रही है। ऐसे में अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए चीन अंतरराष्ट्रीय बाजार से तेल खरीद रहा है, जिसके कारण कीमतें बढ़ रही हैं। मालूम हो कि खानपान में बदलाव के कारण केवल चीन में ही नहीं, भारत में भी खाद्य तेलों की मांग नहीं बढ़ी है।

विस्तार

देश में तेल की कीमतों ने आसमान छू लिया है। चाहे बात पेट्रोल-डीजल की हो या खाद्य तेलों की, बढ़ती महंगाई ने जनता की कमर तोड़ दी है। कोरोना काल में लोगों का बजट तो बिगड़ा ही है, अब खाद्य तेलों की कीमत ने भोजन का जायका भी बिगाड़ दिया है। लोगों के लिए घर का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है। पिछले एक साल में खाने वाले तेल की कीमतों में करीब 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। 

10 साल के उच्चतम स्तर पर तेल की कीमतें

मई 2021 में खाने के तेल की कीमतें 10 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंची। सरकारी डाटा के अनुसार, जून 2020 से जून 2021 के बीच ग्राउंडनट ऑयल की कीमतें करीब 20 फीसदी, सरसों के तेल की कीमत करीब 50 फीसदी, वनस्पति तेल की कीमत 45 फीसदी और सनफ्लावर, पाम तेल की कीमतें करीब 60 फीसदी बढ़ी हैं। जो तेल एक साल पहले 90 से 100 रुपये प्रति लीटर के दाम पर बिक रहा था, वह अब 150 से 160 रुपये का हो गया है। 

तेल के लिए दूसरे देशों पर निर्भर भारत 

दी सेंट्रल आर्गेनाइजेशन फॉर आयल इंडस्ट्रीज एंड ट्रेड के अनुसार, अनुमानत: भारत में प्रति वर्ष लगभग 2.5 करोड़ लीटर खाद्य तेल की खपत होती है। अपने घरेलू उत्पादन से भारत इसमें से केवल 90 लाख लीटर के आसपास की जरूरत पूरी कर पाता है। बाकी 1.40 या 1.50 करोड़ लीटर खाद्य तेल के लिए भारत अर्जेंटीना, कनाडा, मलयेशिया, ब्राजील और अन्य दक्षिणी अमेरिकी देशों पर निर्भर करता है। भारत अपनी कुल खाद्य तेल की जरूरत का 70 फीसदी हिस्सा विदेशों से आयात करता है, जिसके लिए भारत भारी कीमत चुका रहा है। वर्ष 1994-95 में भारत अपनी कुल जरूरत का केवल 10 फीसदी हिस्सा खाद्य तेल आयात करता था। एक अनुमार के अनुसार, केवल खाद्य तेलों के आयात पर भारत प्रति वर्ष 75-80 करोड़ रुपये खर्च कर रहा है जो भारत के कुल आयात का लगभग 2.5 फीसदी है।

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