सार
दिनेश ठाकुर की लिखी ये ग़ज़ल मुझे तब से पूरी याद है, जब मैंने इसे पहली बार अहमद हुसैन मोहम्मद हुसैन के अलबम ‘राहत’ (1988) में सुना। मिसरा मैंने यहां जानबूझकर बाद में लिखा है। सोचता था कि क्या कहानी रही होगी, इस एहसास के पीछे। और, फिर शनिवार से मैंने आर माधवन और सुरवीन चावला की सीरीज़ ‘डीकपल्ड’ देखनी शुरू की।
Movie Review
डीकपल्ड
कलाकार
आर माधवन
,
सुरवीन चावला
,
अरिस्ता मेहता
,
असीम हट्टंगणी
,
अतुल कुमार
,
सोनिया राठी
,
आकाश खुराना
और
मुकेश भट्ट
लेखक
मनु जोसफ
निर्देशक
हार्दिक मेहता
निर्माता
सेजल शाह
और
विक्रमादित्य मोटवानी
ओटीटी
नेटफ्लिक्स
विस्तार
हर हंसीं मंज़र से यारों फासले क़ाइम रखो,
चांद गर धरती पे उतरा देखकर डर जाओगे.
आइने से कब तलक तुम अपना दिल बहलाओगे,
छाएंगे जब जब अंधेरे ख़ुद को तन्हा पाओगे..
दिनेश ठाकुर की लिखी ये ग़ज़ल मुझे तब से पूरी याद है, जब मैंने इसे पहली बार अहमद हुसैन मोहम्मद हुसैन के अलबम ‘राहत’ (1988) में सुना। मिसरा मैंने यहां जानबूझकर बाद में लिखा है। सोचता था कि क्या कहानी रही होगी, इस एहसास के पीछे। और, फिर शनिवार से मैंने आर माधवन और सुरवीन चावला की सीरीज़ ‘डीकपल्ड’ देखनी शुरू की। आख़िरी एपोसीड तक आते आते यूं लगा कि मनु जोसफ और दिनेश ठाकुर ने एक ही एहसास पर कैसे दो अलग अलग कालखंडों में दो अलग अलग जज़्बात लिख डाले। बहुत उम्दा सीरीज़। सस्पेंस, थ्रिल, ड्रामा कुछ नहीं है। बस ज़िंदगी है। और, ज़िंदगी? वह तो ज़िंदादिली का नाम है..!!