अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली
Published by: देव कश्यप
Updated Wed, 05 Jan 2022 06:22 AM IST
सार
पिछले साल अक्तूबर में टाटा समूह ने 18 हजार करोड़ रुपये में एयर इंडिया की सबसे बड़ी बोली लगाई थी, जिसे सरकार ने स्वीकार किया था। लेकिन स्वामी का आरोप है कि स्पाइसजेट के नेतृत्व वाला संघ भी बोली लगाने वाला पक्ष था।
ख़बर सुनें
विस्तार
मामले में स्वामी, केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता व टैलेस प्रा लि (टाटा समूह) की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे का पक्ष सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की पीठ ने छह जनवरी तक के लिए फैसला सुरक्षित रख लिया।
साथ ही केंद्र समेत अन्य प्रतिवादियों को मंगलवार दिन में ही मामले पर लिखित नोट दाखिल करने को कहा तो स्वामी को बुधवार तक इसकी छूट दी गई। बता दें याचिका में स्वामी ने विनिवेश प्रक्रिया के लिए अपनाई कार्यप्रणाली को मनमाना, गैरकानूनी, भ्रष्ट करार देते हुए इसे रद्द करने समेत अधिकारियों की भूमिका व कामकाज की सीबीआई जांच कराने की मांग की है।
याचिका गलत धारणाओं पर आधारित, विनिवेश नीतिगत निर्णय
सॉलिसिटर जनरल मेहता ने जजों के सामने दलील दी कि याचिका गलत धारणाओं पर आधारित है, जिस पर विचार करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, विनिवेश एक नीतिगत निर्णय था, जो एयर इंडिया के भारी नुकसान को ध्यान में रखते हुए 2017 में लिया गया था। कंपनी रोजाना 20 करोड़ रुपये का घाटा उठा रही थी और इससे आगे जनता के पैसे की बर्बादी नहीं करने दी जा सकती थी। हरीश साल्वे ने दलील दी कि याचिका में कुछ भी नहीं है और बोलियां पूरी हो चुकी हैं। शेयर समझौतों पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं और यह सब कुछ सार्वजनिक है।
स्वामी का दावा, स्पाइसजेट भी था बोलीदाता
पिछले साल अक्तूबर में टाटा समूह ने 18 हजार करोड़ रुपये में एयर इंडिया की सबसे बड़ी बोली लगाई थी, जिसे सरकार ने स्वीकार किया था। लेकिन स्वामी का आरोप है कि स्पाइसजेट के नेतृत्व वाला संघ भी बोली लगाने वाला पक्ष था।