अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली
Published by: मुकेश कुमार झा
Updated Fri, 06 Aug 2021 12:13 PM IST
भारतीय हॉकी टीम के टोक्यो में पदक जीतने की इबारत पहली बार नहीं लिखी गई है। 57 साल पहले इसी टोक्यो शहर में चरणजीत सिंह की टीम ने पाकिस्तान को हराकर स्वर्ण पदक जीता था। चरणजीत समेत इस टीम के छह सदस्य अभी भी जीवित हैं। इनमें दिग्गज गुरबख्श सिंह और हरबिंदर सिंह का नाम भी शामिल है। हरबिंदर का तो टोक्यो में तिरंगा लहराने वाली वर्तमान और 57 साल पुरानी दोनों टीमों से नाता है। जिस टीम ने टोक्यो में कांस्य पदक जीता है, यह टीम उन्हीं की अगुवाई में चुनी गई थी। वह हॉकी इंडिया के मुख्य चयनकर्ता हैं। गुरबख्श और हरबिंदर खुलासा करते हैं कि जितनी खुशी उन्हें 57 साल पहले स्वर्ण जीतकर हुई थी उतनी ही खुशी इस पदक के जीतने पर है।
दोनों के मुताबिक उस वक्त चुनौती यह थी कि किसी तरह 1960 के रोम ओलंपिक में पाकिस्तान के हाथ से निकले स्वर्ण पदक को वापस पाना है। वहां उन्होंने पाकिस्तान से स्वर्ण छीना था और यहां टोक्यो में मनप्रीत की टीम ने भारतीय हॉकी को नया जीवन दिया। गुरबख्श को याद है कि 1964 ओलंपिक का फाइनल भारतीय टीम की प्रतिष्ठा की बात बन गया था। मोहिंदर लाल के पेनाल्टी स्ट्रोक पर भारत ने पाक को जैसे ही 1-0 से हराया। स्टेडियम में मौजूद मिल्खा सिंह, जीएस रंधावा, अश्वनी कुमार, राजा कर्णी सिंह सभी मैदान में घुस आए और टीम के सदस्यों को गले लगाना शुरू कर दिया। हरबिंदर कहते हैं कि रोम में पाकिस्तान से मिली फाइनल में हार काफी चुभने वाली थी। भारतीय टीम किसी भी कीमत पर स्वर्ण पदक वापस पाना चाहती थी और उन्होंने ऐसा करके भी दिखाया।
गुरबख्श बताते हैं कि 5-4 के स्कोर पर अंतिम क्षणों का रोमांच वह बरदाश्त नहीं कर पा रहे थे, लेकिन किसी तरह उन्होंने अपने को टीवी के आगे उठने नहीं दिया। यह जीत बहुत बड़ी है। उस दौरान उन्होंने टोक्यो में पाकिस्तान से स्वर्ण छीना था और आज का पदक हॉकी की लोकप्रियता को फिर बहाल कर देगा। हरबिंदर के मुताबिक इस पदक के अलग मायने निकलेंगे। भारतीय हॉकी को यही चाहिए था। जितने भावुक वह 64 का स्वर्ण जीतने पर थे उतने ही भावुक वह आज के पदक जीतने से हैं।
विस्तार
भारतीय हॉकी टीम के टोक्यो में पदक जीतने की इबारत पहली बार नहीं लिखी गई है। 57 साल पहले इसी टोक्यो शहर में चरणजीत सिंह की टीम ने पाकिस्तान को हराकर स्वर्ण पदक जीता था। चरणजीत समेत इस टीम के छह सदस्य अभी भी जीवित हैं। इनमें दिग्गज गुरबख्श सिंह और हरबिंदर सिंह का नाम भी शामिल है। हरबिंदर का तो टोक्यो में तिरंगा लहराने वाली वर्तमान और 57 साल पुरानी दोनों टीमों से नाता है। जिस टीम ने टोक्यो में कांस्य पदक जीता है, यह टीम उन्हीं की अगुवाई में चुनी गई थी। वह हॉकी इंडिया के मुख्य चयनकर्ता हैं। गुरबख्श और हरबिंदर खुलासा करते हैं कि जितनी खुशी उन्हें 57 साल पहले स्वर्ण जीतकर हुई थी उतनी ही खुशी इस पदक के जीतने पर है।
मिल्खा, रंधावा ने मैदान में घुसकर लगा लिया गले
दोनों के मुताबिक उस वक्त चुनौती यह थी कि किसी तरह 1960 के रोम ओलंपिक में पाकिस्तान के हाथ से निकले स्वर्ण पदक को वापस पाना है। वहां उन्होंने पाकिस्तान से स्वर्ण छीना था और यहां टोक्यो में मनप्रीत की टीम ने भारतीय हॉकी को नया जीवन दिया। गुरबख्श को याद है कि 1964 ओलंपिक का फाइनल भारतीय टीम की प्रतिष्ठा की बात बन गया था। मोहिंदर लाल के पेनाल्टी स्ट्रोक पर भारत ने पाक को जैसे ही 1-0 से हराया। स्टेडियम में मौजूद मिल्खा सिंह, जीएस रंधावा, अश्वनी कुमार, राजा कर्णी सिंह सभी मैदान में घुस आए और टीम के सदस्यों को गले लगाना शुरू कर दिया। हरबिंदर कहते हैं कि रोम में पाकिस्तान से मिली फाइनल में हार काफी चुभने वाली थी। भारतीय टीम किसी भी कीमत पर स्वर्ण पदक वापस पाना चाहती थी और उन्होंने ऐसा करके भी दिखाया।
64 के स्वर्ण जितना कर दिया भावुक
गुरबख्श बताते हैं कि 5-4 के स्कोर पर अंतिम क्षणों का रोमांच वह बरदाश्त नहीं कर पा रहे थे, लेकिन किसी तरह उन्होंने अपने को टीवी के आगे उठने नहीं दिया। यह जीत बहुत बड़ी है। उस दौरान उन्होंने टोक्यो में पाकिस्तान से स्वर्ण छीना था और आज का पदक हॉकी की लोकप्रियता को फिर बहाल कर देगा। हरबिंदर के मुताबिक इस पदक के अलग मायने निकलेंगे। भारतीय हॉकी को यही चाहिए था। जितने भावुक वह 64 का स्वर्ण जीतने पर थे उतने ही भावुक वह आज के पदक जीतने से हैं।
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