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भारत में लगेगी दुनिया की पहली DNA वैक्सीन: संबोधन में इसके बारे में क्या बोले पीएम, जानें इंसानों पर कैसे काम करती है?

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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Sun, 26 Dec 2021 12:29 AM IST

सार

दुनिया के पहले डीएनए आधारित टीके का निर्माण अहमदाबाद की फार्मा कंपनी जायडस कैडिला ने किया है। इसका नाम जायकोव-डी रखा गया है। इस कोरोना रोधी टीके की तीन डोज लगाई जाएंगी और हर खुराक के बीच 28 दिन का अंतराल रहेगा। 

प्रतीकात्मक तस्वीर
– फोटो : iStock

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को राष्ट्र के नाम संबोधन में भारत की तरफ से तैयार की गई दुनिया की पहली कोरोना डीएनए वैक्सीन के जल्द लॉन्च की उम्मीद जताई है। मोदी ने कहा कि भारत ने वैज्ञानिक आधार पर कई टीकों को मंजूरी दी है और जल्द ही दुनिया की पहली डीएनए आधारित वै्सीन भी आ जाएगी। इस बीच हर तरफ यही सवाल है कि आखिर मौजूदा वैक्सीन से डीएनए वैक्सीन कितनी अलग हैं और यह इंसानों के शरीर पर कितनी असरदार हो सकती हैं। 

क्या हैं डीएनए आधारित वैक्सीन?
दरअसल, डीएनए-आरएनए आधारित टीके को बनाने में कोरोना वायरस के जेनेटिक कोड का इस्तेमाल किया जाता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि इसके एक छोटे से हिस्से को जब व्यक्ति के शरीर में इंजेक्ट किया जाता है तो यह शरीर में पूरा वायरस न बनाकर वायरल प्रोटीन बनाता है। इस तरह शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र कोरोना वायरस पर हमला करने के लिए तैयार हो जाता है।

मौजूदा वैक्सीन्स से कितनी अलग?
अमेरिका की फाइजर और मॉडर्ना नामक कंपनी ने जो वैक्सीन बनाई है, वह आरएनए आधारित वैक्सीन है। अमेरिका समेत कई अन्य देशों में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके अलावा भारत में लग रही कोविशील्ड वेक्टर आधारित वैक्सीन हैं, जो कि डेड वायरस (निष्क्रिय वायरस) की तकनीक पर काम करती हैं। भारत बायोटेक की कोवैक्सिन के काम का तरीका भी कुछ ऐसा ही है। 

भारत में जो डीएनए वैक्सीन बनी, उसके बारे में क्या जानकारी?
टीके का निर्माण अहमदाबाद की फार्मा कंपनी जायडस कैडिला ने किया है। इसका नाम जायकोव-डी रखा गया है। इस कोरोना रोधी टीके की तीन डोज लगाई जाएंगी और हर खुराक के बीच 28 दिन का अंतराल रहेगा। भारतीय औषधि नियामक की ओर से इस टीके को 20 अगस्क को आपात उपयोग की अनुमति दी गई थी। जायडस कैडिला ने आठ नवंबर को बताया था कि उसे केंद्र सरकार की ओर से 265 रुपये प्रति खुराक की दर से एक करोड़ खुराकों की आपूर्ति करने का ऑर्डर मिला है। कंपनी ने एक नियामकीय फाइलिंग में जानकारी दी थी कि इस टीके को लगाने के लिए फार्माजेट इंजेक्टर की कीमत 93 रुपये प्रति खुराक (बिना जीएसटी) तय की गई है। 

विस्तार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को राष्ट्र के नाम संबोधन में भारत की तरफ से तैयार की गई दुनिया की पहली कोरोना डीएनए वैक्सीन के जल्द लॉन्च की उम्मीद जताई है। मोदी ने कहा कि भारत ने वैज्ञानिक आधार पर कई टीकों को मंजूरी दी है और जल्द ही दुनिया की पहली डीएनए आधारित वै्सीन भी आ जाएगी। इस बीच हर तरफ यही सवाल है कि आखिर मौजूदा वैक्सीन से डीएनए वैक्सीन कितनी अलग हैं और यह इंसानों के शरीर पर कितनी असरदार हो सकती हैं। 

क्या हैं डीएनए आधारित वैक्सीन?

दरअसल, डीएनए-आरएनए आधारित टीके को बनाने में कोरोना वायरस के जेनेटिक कोड का इस्तेमाल किया जाता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि इसके एक छोटे से हिस्से को जब व्यक्ति के शरीर में इंजेक्ट किया जाता है तो यह शरीर में पूरा वायरस न बनाकर वायरल प्रोटीन बनाता है। इस तरह शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र कोरोना वायरस पर हमला करने के लिए तैयार हो जाता है।

मौजूदा वैक्सीन्स से कितनी अलग?

अमेरिका की फाइजर और मॉडर्ना नामक कंपनी ने जो वैक्सीन बनाई है, वह आरएनए आधारित वैक्सीन है। अमेरिका समेत कई अन्य देशों में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके अलावा भारत में लग रही कोविशील्ड वेक्टर आधारित वैक्सीन हैं, जो कि डेड वायरस (निष्क्रिय वायरस) की तकनीक पर काम करती हैं। भारत बायोटेक की कोवैक्सिन के काम का तरीका भी कुछ ऐसा ही है। 

भारत में जो डीएनए वैक्सीन बनी, उसके बारे में क्या जानकारी?

टीके का निर्माण अहमदाबाद की फार्मा कंपनी जायडस कैडिला ने किया है। इसका नाम जायकोव-डी रखा गया है। इस कोरोना रोधी टीके की तीन डोज लगाई जाएंगी और हर खुराक के बीच 28 दिन का अंतराल रहेगा। भारतीय औषधि नियामक की ओर से इस टीके को 20 अगस्क को आपात उपयोग की अनुमति दी गई थी। जायडस कैडिला ने आठ नवंबर को बताया था कि उसे केंद्र सरकार की ओर से 265 रुपये प्रति खुराक की दर से एक करोड़ खुराकों की आपूर्ति करने का ऑर्डर मिला है। कंपनी ने एक नियामकीय फाइलिंग में जानकारी दी थी कि इस टीके को लगाने के लिए फार्माजेट इंजेक्टर की कीमत 93 रुपये प्रति खुराक (बिना जीएसटी) तय की गई है। 

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