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पर्यावरण: ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन पर झूठ बोलती हैं सरकारें, वाशिंगटन पोस्ट का दावा
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, वाशिंगटन
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Tue, 09 Nov 2021 05:29 PM IST
सार
वाशिंगटन पोस्ट ने गलत रिपोर्टिंग की एक मिसाल के रूप में मलेशिया की पाम ऑयल उद्योग में होने वाले उत्सर्जन संबंधी 2016 की सूचना का जिक्र किया है। मलेशिया ने तब दावा किया था कि वहां मौजूद जंगल 243 टन उत्सर्जित गैसों को सोख लेते हैं। यह कुल उत्सर्जन का 73 फीसदी है…
कॉप 26 में जो बाइडन
– फोटो : Agency (File Photo)
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अपनी इस रिपोर्ट को तैयार करने करने के लिए वाशिंगटन पोस्ट की टीम ने साल 2019 के वैश्विक उत्सर्जन आंकड़ों का अध्ययन किया। इसमें उन 45 देशों की उस रिपोर्ट का खास अध्ययन किया गया, जो उन्होंने अपने उत्सर्जन के बारे में संयुक्त राष्ट्र को भेजी थी। उन रिपोर्टों में बताई उत्सर्जन मात्रा की तुलना स्वतंत्र स्रोतों से प्राप्त वैश्विक उत्सर्जन की माप से की गई। वाशिंगटन पोस्ट की टीम इस निष्कर्ष पर पहुंची कि बताई गई मात्रा और असल मात्रा के बीच कम से कम 13.3 बिलियन टन का फर्क है।
असल उत्सर्जन कहीं ज्यादा
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्सर्जन के बारे में दी जाने वाली सूचनाओं की विधि में खामियों को भी स्वीकार किया गया था। इस खामियों की वजह रिपोर्टिंग के कुछ समस्याग्रस्त नियम, कुछ देशों में होने वाली अधूरी रिपोर्टिंग और कुछ देशों की असल मात्रा को जानबूझ कर छिपाने की प्रवृत्तियां रही हैं। इसका परिणाम है कि दुनिया को समस्या के पूरे पैमाने की असल में जानकारी ही नहीं है।
वाशिंगटन पोस्ट ने गलत रिपोर्टिंग की एक मिसाल के रूप में मलेशिया की पाम ऑयल उद्योग में होने वाले उत्सर्जन संबंधी 2016 की सूचना का जिक्र किया है। मलेशिया ने तब दावा किया था कि वहां मौजूद जंगल 243 टन उत्सर्जित गैसों को सोख लेते हैं। यह कुल उत्सर्जन का 73 फीसदी है। अखबार ने कहा है कि ये दावा तथ्यों पर आधारित नहीं था।
वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट पर पर्यावरणवादी संगठनों ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। अमेरिकी संगठन एक्सटिंशन रिबेलियन ने एक बयान में कहा- ‘हम कब झूठ बोलना, धोखा देना और फर्जी वादे करना छोड़ेंगे? इस गंभीर हो चुकी समस्या से बाहर निकलने के लिए हमें ऐसे व्यवस्थागत कदम इतनी तेज गति से उठाने होंगे, जिनकी मानव इतिहास में पहले कोई मिसाल नहीं है।’
विस्तार
अपनी इस रिपोर्ट को तैयार करने करने के लिए वाशिंगटन पोस्ट की टीम ने साल 2019 के वैश्विक उत्सर्जन आंकड़ों का अध्ययन किया। इसमें उन 45 देशों की उस रिपोर्ट का खास अध्ययन किया गया, जो उन्होंने अपने उत्सर्जन के बारे में संयुक्त राष्ट्र को भेजी थी। उन रिपोर्टों में बताई उत्सर्जन मात्रा की तुलना स्वतंत्र स्रोतों से प्राप्त वैश्विक उत्सर्जन की माप से की गई। वाशिंगटन पोस्ट की टीम इस निष्कर्ष पर पहुंची कि बताई गई मात्रा और असल मात्रा के बीच कम से कम 13.3 बिलियन टन का फर्क है।
असल उत्सर्जन कहीं ज्यादा
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्सर्जन के बारे में दी जाने वाली सूचनाओं की विधि में खामियों को भी स्वीकार किया गया था। इस खामियों की वजह रिपोर्टिंग के कुछ समस्याग्रस्त नियम, कुछ देशों में होने वाली अधूरी रिपोर्टिंग और कुछ देशों की असल मात्रा को जानबूझ कर छिपाने की प्रवृत्तियां रही हैं। इसका परिणाम है कि दुनिया को समस्या के पूरे पैमाने की असल में जानकारी ही नहीं है।
वाशिंगटन पोस्ट ने गलत रिपोर्टिंग की एक मिसाल के रूप में मलेशिया की पाम ऑयल उद्योग में होने वाले उत्सर्जन संबंधी 2016 की सूचना का जिक्र किया है। मलेशिया ने तब दावा किया था कि वहां मौजूद जंगल 243 टन उत्सर्जित गैसों को सोख लेते हैं। यह कुल उत्सर्जन का 73 फीसदी है। अखबार ने कहा है कि ये दावा तथ्यों पर आधारित नहीं था।
वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट पर पर्यावरणवादी संगठनों ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। अमेरिकी संगठन एक्सटिंशन रिबेलियन ने एक बयान में कहा- ‘हम कब झूठ बोलना, धोखा देना और फर्जी वादे करना छोड़ेंगे? इस गंभीर हो चुकी समस्या से बाहर निकलने के लिए हमें ऐसे व्यवस्थागत कदम इतनी तेज गति से उठाने होंगे, जिनकी मानव इतिहास में पहले कोई मिसाल नहीं है।’