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जलवायु परिवर्तन पर सम्मेलन: कॉप 26 के लक्ष्य क्या हैं? ब्रिटेन के ग्लासगो में आज से 12 नवंबर तक होगा
सार
इस सम्मेलन के जरिए अंतरराष्ट्रीय वित्त संस्थाओं को वैश्विक स्तर पर शून्य उत्सर्जन सुनिश्चित करने के लिए वित्तीय संसाधन मुहैया कराने के लिए तैयार करना है।
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2050 तक काॅर्बन उत्सर्जन का शून्य लक्ष्य हासिल करना। यानी जितना काॅर्बन उत्सर्जित हो उतना वातावरण में पेड़ों या तकनीक के द्वारा अवशोषित कर लिया जाए। इसके अलावा वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस की अधिकतम वृद्धि तक सीमित रखना।
- सदस्यों और प्राकृतिक आवासीय क्षेत्रों के संरक्षण के लिए सदस्य देशों को एकजुट करना।
- विकसित देशों को वादे के अनुसार 2020 तक सालाना कम से कम 100 अरब डॉलर जलवायु वित्त उपलब्ध कराने के लिए प्रेरित करना
- अंतरराष्ट्रीय वित्त संस्थाओं को वैश्विक स्तर पर शून्य उत्सर्जन सुनिश्चित करने के लिए वित्तीय संसाधन मुहैया कराने के लिए तैयार करना।
- पेरिस समझौते को सक्रिय बनाने वाले पेरिस नियमावली को अंतिम रूप देना।
- सरकारों, उद्योगों और सिविल सोसायटी के बीच साझेदारी बढ़ाना।
आईपीसीसी की छठी रिपोर्ट…
- काॅर्बन और अन्य ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में व्यापक कटौती न होने पर वैश्विक तापमान बढ़ोतरी 2 डिग्री से ज्यादा हो जाएगी।
- ग्लोबल वार्मिंग जारी रहने से मौसम का चरम रुख और उग्र होने की आशंका
- ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री से 2 डिग्री सेल्सियस होने पर जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों में होने वाले बदलाव व्यापक होंगे।
- मानव जनित ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए काॅर्बन उत्सर्जन को शून्य पर लाना होगा।
- मीथेन उत्सर्जन में ठोस कटौती से एयरसोल प्रदूषण गिरेगा, इससे तापमान में बढ़ोतरी रुकेगी और हवा की गुणवत्ता सुधर जाएगी।
इस सम्मेलन से क्या उम्मीदें?
जलवायु परिवर्तन रोकने के लक्ष्यों और सदस्य देशों की नीतियों में मौजूद अंतर दूर करने के प्रयास हो सकते हैं।
- काॅर्बन क्रेडिट की खरीद-फरोख्त के लिए काॅर्बन मार्केट मशीनरी बनाना।
- सर्वाधिक जोखिम वाले देशों की क्षतिपूर्ति को वित्तीय आवंटन सुनिश्चित करना।
कॉप-26 सम्मेलन में विकसित और विकासशील देशों के बीच बढ़ते अविश्वास पर क्लाइमेट ट्रेंड की संस्थापक और डायरेक्टर आरती खोसला कहती हैं, जलवायु परिवर्तन की समस्या के लिए विकसित देश ही जिम्मेदार हैं। जो पैसा और तकनीक देने को कहा था वो तो आया नहीं। इससे विकासशील देशों का भरोसा टूटने लगा है।
आरती खोसला कहती हैं, अभी भारत में विकास के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता है। इसलिए ‘नेट जीरो’ घोषित करना संभव नहीं होगा। भारत को कम समय का लक्ष्य तय करके आगे बढ़ना ज्यादा सही है।
पेरिस समझौते पर अमल के हाल
- 12 दिसंबर 2015 को 196 देशों ने बाध्यकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। 4 नवंबर 2016 से लागू।
- इसके तहत ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस और आदर्श स्थिति में 1.5 डिग्री तक सीमित करना।
- समझौते में शामिल देशों को काॅर्बन उत्सर्जन कटौती के लिए पांच और दस साल के राष्ट्रीय कार्यक्रम बनाने होंगे और नियमित रूप से इसकी समीक्षा करने होगी। आर्थिक रूप से कमजोर देशों को ये लक्ष्य हासिल करने के लिए विकसित देश आर्थिक भार वहन करेंगे।
- जलवायु परिवर्तन रोकने में मददगार तकनीक सभी देश एक दूसरे से साझा करेंगे।
विस्तार
2050 तक काॅर्बन उत्सर्जन का शून्य लक्ष्य हासिल करना। यानी जितना काॅर्बन उत्सर्जित हो उतना वातावरण में पेड़ों या तकनीक के द्वारा अवशोषित कर लिया जाए। इसके अलावा वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस की अधिकतम वृद्धि तक सीमित रखना।
- सदस्यों और प्राकृतिक आवासीय क्षेत्रों के संरक्षण के लिए सदस्य देशों को एकजुट करना।
- विकसित देशों को वादे के अनुसार 2020 तक सालाना कम से कम 100 अरब डॉलर जलवायु वित्त उपलब्ध कराने के लिए प्रेरित करना
- अंतरराष्ट्रीय वित्त संस्थाओं को वैश्विक स्तर पर शून्य उत्सर्जन सुनिश्चित करने के लिए वित्तीय संसाधन मुहैया कराने के लिए तैयार करना।
- पेरिस समझौते को सक्रिय बनाने वाले पेरिस नियमावली को अंतिम रूप देना।
- सरकारों, उद्योगों और सिविल सोसायटी के बीच साझेदारी बढ़ाना।
आईपीसीसी की छठी रिपोर्ट…
- काॅर्बन और अन्य ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में व्यापक कटौती न होने पर वैश्विक तापमान बढ़ोतरी 2 डिग्री से ज्यादा हो जाएगी।
- ग्लोबल वार्मिंग जारी रहने से मौसम का चरम रुख और उग्र होने की आशंका
- ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री से 2 डिग्री सेल्सियस होने पर जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों में होने वाले बदलाव व्यापक होंगे।
- मानव जनित ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए काॅर्बन उत्सर्जन को शून्य पर लाना होगा।
- मीथेन उत्सर्जन में ठोस कटौती से एयरसोल प्रदूषण गिरेगा, इससे तापमान में बढ़ोतरी रुकेगी और हवा की गुणवत्ता सुधर जाएगी।
इस सम्मेलन से क्या उम्मीदें?
जलवायु परिवर्तन रोकने के लक्ष्यों और सदस्य देशों की नीतियों में मौजूद अंतर दूर करने के प्रयास हो सकते हैं।
- काॅर्बन क्रेडिट की खरीद-फरोख्त के लिए काॅर्बन मार्केट मशीनरी बनाना।
- सर्वाधिक जोखिम वाले देशों की क्षतिपूर्ति को वित्तीय आवंटन सुनिश्चित करना।
कॉप-26 सम्मेलन में विकसित और विकासशील देशों के बीच बढ़ते अविश्वास पर क्लाइमेट ट्रेंड की संस्थापक और डायरेक्टर आरती खोसला कहती हैं, जलवायु परिवर्तन की समस्या के लिए विकसित देश ही जिम्मेदार हैं। जो पैसा और तकनीक देने को कहा था वो तो आया नहीं। इससे विकासशील देशों का भरोसा टूटने लगा है।
आरती खोसला कहती हैं, अभी भारत में विकास के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता है। इसलिए ‘नेट जीरो’ घोषित करना संभव नहीं होगा। भारत को कम समय का लक्ष्य तय करके आगे बढ़ना ज्यादा सही है।
पेरिस समझौते पर अमल के हाल
- 12 दिसंबर 2015 को 196 देशों ने बाध्यकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। 4 नवंबर 2016 से लागू।
- इसके तहत ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस और आदर्श स्थिति में 1.5 डिग्री तक सीमित करना।
- समझौते में शामिल देशों को काॅर्बन उत्सर्जन कटौती के लिए पांच और दस साल के राष्ट्रीय कार्यक्रम बनाने होंगे और नियमित रूप से इसकी समीक्षा करने होगी। आर्थिक रूप से कमजोर देशों को ये लक्ष्य हासिल करने के लिए विकसित देश आर्थिक भार वहन करेंगे।
- जलवायु परिवर्तन रोकने में मददगार तकनीक सभी देश एक दूसरे से साझा करेंगे।