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स्नबिंगः दोस्तों का साथ लेकिन नजरें मोबाइल पर…यानी आप हैं बीमार

एजेंसी, जॉर्जिया। 
Published by: Amit Mandal
Updated Wed, 11 Aug 2021 07:43 AM IST

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दोस्तों के साथ बैठे हुए भी अपना ध्यान मोबाइल स्क्रीन पर लगाए रखना किसी की आदत बन चुकी हो, तो वह सचेत हो जाए। जॉर्जिया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का दावा है कि यह मानसिक रोग हो सकता है। दोस्तों को अनदेखा कर फोन देखना गहरे तनाव व सामाजिक व्याकुलता सहित कई मानसिक समस्याओं का लक्षण हो सकता है। इस व्यवहार को फोन ‘स्नबिंग’ (रूखा बर्ताव) या ‘फबिंग’ कहा जाता है।

अध्ययन में शामिल वैज्ञानिक जूहयंग सन के अनुसार कई बार सामाजिक उत्कंठा या घबराहट रखने वाले लोग ऐसा करते हैं। कुछ में अवसाद भी वजह हो सकती है। न्यूरोटिसिज्म या कहें मानसिक तौर पर असंतुलित व गुस्सैल लोग भी ऐसा करने लगते हैं। यहां तक कि उन्हें फेस-टू-फेस बात करने के बजाय सोशल मीडिया पर बातचीत करना ज्यादा सहूलियत भरा लगने लगता है।

जानते हैं कि फबिंग गलत, फिर भी करते हैं 
बातचीत के दौरान फोन देखना अशिष्टता है, लेकिन ऐसे लोग खुद को रोक नहीं पाते। ज्यादा दोस्त साथ हों, तो उन्हें लगता है कि उन्हें नोटिस नहीं किया जा रहा। एजेंसी

नोटिफिकेशन को लेकर बेचैनी व्यवहार का हिस्सा
कई लोग फोन के नोटिफिकेशन को लेकर बेहद संवेदनशील होते हैं। इसकी आवाज सुनते ही वे चाहे किसी से बात कर रहे हों या कुछ काम कर रहे हों, जाने-अनजाने फोन चेक करने की कोशिश जरूर करते हैं। यह उनके व्यवहार का हिस्सा बन चुका है।

जो फोन नहीं देखते, वे हैं सच्चे दोस्त
रिपोर्ट में दावा है कि जो दोस्तों की मौजूदगी में फोन कम से कम देखते हैं, वे संबंध को ज्यादा महत्व देते हैं। यही नहीं, वे ज्यादा सहयोगी, विनम्र व दोस्ताना भी हैं।

महामारी के बाद पेश आएंगी अजीब स्थितियां
सन कहती हैं कि महामारी के बाद आम जीवन शुरू होने पर मुश्किल हो सकती है। कितना असर होगा, यह समय बताएगा।
 

विस्तार

दोस्तों के साथ बैठे हुए भी अपना ध्यान मोबाइल स्क्रीन पर लगाए रखना किसी की आदत बन चुकी हो, तो वह सचेत हो जाए। जॉर्जिया विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का दावा है कि यह मानसिक रोग हो सकता है। दोस्तों को अनदेखा कर फोन देखना गहरे तनाव व सामाजिक व्याकुलता सहित कई मानसिक समस्याओं का लक्षण हो सकता है। इस व्यवहार को फोन ‘स्नबिंग’ (रूखा बर्ताव) या ‘फबिंग’ कहा जाता है।

अध्ययन में शामिल वैज्ञानिक जूहयंग सन के अनुसार कई बार सामाजिक उत्कंठा या घबराहट रखने वाले लोग ऐसा करते हैं। कुछ में अवसाद भी वजह हो सकती है। न्यूरोटिसिज्म या कहें मानसिक तौर पर असंतुलित व गुस्सैल लोग भी ऐसा करने लगते हैं। यहां तक कि उन्हें फेस-टू-फेस बात करने के बजाय सोशल मीडिया पर बातचीत करना ज्यादा सहूलियत भरा लगने लगता है।

जानते हैं कि फबिंग गलत, फिर भी करते हैं 

बातचीत के दौरान फोन देखना अशिष्टता है, लेकिन ऐसे लोग खुद को रोक नहीं पाते। ज्यादा दोस्त साथ हों, तो उन्हें लगता है कि उन्हें नोटिस नहीं किया जा रहा। एजेंसी

नोटिफिकेशन को लेकर बेचैनी व्यवहार का हिस्सा

कई लोग फोन के नोटिफिकेशन को लेकर बेहद संवेदनशील होते हैं। इसकी आवाज सुनते ही वे चाहे किसी से बात कर रहे हों या कुछ काम कर रहे हों, जाने-अनजाने फोन चेक करने की कोशिश जरूर करते हैं। यह उनके व्यवहार का हिस्सा बन चुका है।

जो फोन नहीं देखते, वे हैं सच्चे दोस्त

रिपोर्ट में दावा है कि जो दोस्तों की मौजूदगी में फोन कम से कम देखते हैं, वे संबंध को ज्यादा महत्व देते हैं। यही नहीं, वे ज्यादा सहयोगी, विनम्र व दोस्ताना भी हैं।

महामारी के बाद पेश आएंगी अजीब स्थितियां

सन कहती हैं कि महामारी के बाद आम जीवन शुरू होने पर मुश्किल हो सकती है। कितना असर होगा, यह समय बताएगा।

 

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