एजेंसी, नई दिल्ली।
Published by: योगेश साहू
Updated Wed, 20 Oct 2021 06:52 AM IST
सार
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश से जुड़े एक अन्य मामले में कहा कि है सार्वजनिक सेवा का काम कर रहे अधिकारियों को कोर्ट में समन करना गैर जरूरी है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निस्तारण आयोग के एक फैसले को रद्द करते हुए बीमा कंपनी को हादसे में ट्रक को हुए नुकसान पर ग्राहक को 3.25 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है। आयोग ने ट्रक मालिक की मुआवजे की अर्जी को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि अधिक संख्या में यात्रियों के कारण हादसा नहीं हुआ।
जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यन की पीठ ने आयोग के तर्क को स्पष्ट रूप से गलत बताया और बीमा कंपनी न्यू इंडिया एश्योरेंस को ट्रक के मालिक को 3.25 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया। पीठ ने अपने 30 सितंबर के आदेश में कहा, लापरवाही से वाहन चलाने के कारण यात्री को देय मुआवजे के लिए तीसरे पक्ष के दावे के बीच स्पष्ट अंतर है, जबकि वर्तमान मामला खुद को हुए नुकसान का है। यह ट्रक में सवार यात्रियों की संख्या पर किसी तरह निर्भर नहीं है। ऐसे में आयोग का फैसला कानून संगत नहीं है और इसे रद्द किया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश को खारिज करते हुए कहा है कि सार्वजनिक सेवा का काम कर रहे अधिकारियों को कोर्ट में समन करना गैर जरूरी है। मामला प्रथम यूपी ग्रामीण बैंक के एक कर्मचारी की बर्खास्तगी से जुड़ा है। इस कर्मचारी की याचिका पर बैंक के चेयरमैन और क्षेत्रीय प्रबंधक को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समन भेज कर तलब किया था।
जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामासुब्रह्मण्यन की पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश पर नाखुशी जताते हुए कहा कि हमें इन दोनों अधिकारियों को समन करने का कोई कारण नहीं दिखता। यदि हाईकोर्ट को लगता है कि संबंधित कर्मचारी की बर्खास्तगी सही नहीं है तो कोर्ट इस बारे में आदेश पारित करने में सक्षम है। इसके लिए सार्वजनिक सेवा में रत अधिकारियों को तलब करना गैर जरूरी है। आठ अक्तूबर के अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया।
विस्तार
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निस्तारण आयोग के एक फैसले को रद्द करते हुए बीमा कंपनी को हादसे में ट्रक को हुए नुकसान पर ग्राहक को 3.25 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है। आयोग ने ट्रक मालिक की मुआवजे की अर्जी को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि अधिक संख्या में यात्रियों के कारण हादसा नहीं हुआ।
जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यन की पीठ ने आयोग के तर्क को स्पष्ट रूप से गलत बताया और बीमा कंपनी न्यू इंडिया एश्योरेंस को ट्रक के मालिक को 3.25 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया। पीठ ने अपने 30 सितंबर के आदेश में कहा, लापरवाही से वाहन चलाने के कारण यात्री को देय मुआवजे के लिए तीसरे पक्ष के दावे के बीच स्पष्ट अंतर है, जबकि वर्तमान मामला खुद को हुए नुकसान का है। यह ट्रक में सवार यात्रियों की संख्या पर किसी तरह निर्भर नहीं है। ऐसे में आयोग का फैसला कानून संगत नहीं है और इसे रद्द किया जाता है।
अपना काम कर रहे अधिकारियों को कोर्ट बुलाना गैर जरूरी: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश को खारिज करते हुए कहा है कि सार्वजनिक सेवा का काम कर रहे अधिकारियों को कोर्ट में समन करना गैर जरूरी है। मामला प्रथम यूपी ग्रामीण बैंक के एक कर्मचारी की बर्खास्तगी से जुड़ा है। इस कर्मचारी की याचिका पर बैंक के चेयरमैन और क्षेत्रीय प्रबंधक को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समन भेज कर तलब किया था।
जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी रामासुब्रह्मण्यन की पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश पर नाखुशी जताते हुए कहा कि हमें इन दोनों अधिकारियों को समन करने का कोई कारण नहीं दिखता। यदि हाईकोर्ट को लगता है कि संबंधित कर्मचारी की बर्खास्तगी सही नहीं है तो कोर्ट इस बारे में आदेश पारित करने में सक्षम है। इसके लिए सार्वजनिक सेवा में रत अधिकारियों को तलब करना गैर जरूरी है। आठ अक्तूबर के अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को खारिज कर दिया।
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