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सुप्रीम कोर्ट की चिंता: 'क्लीनिकल ट्रायल के आंकड़े सामने आने से टीका लगवा चुके 50 करोड़ लोगों के मन में संदेह तो पैदा नहीं होगा?'

राजीव सिन्हा, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: संजीव कुमार झा
Updated Mon, 09 Aug 2021 12:29 PM IST

सार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिका में कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को उठाया लेकिन हम अब वैक्सीन की प्रभावशीलता पर संदेह नहीं करना चाहते।

सर्वोच्च न्यायालय
– फोटो : पीटीआई

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 सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस जनहित याचिका पर केंद्र सरकार, आईसीएमआर समेत अन्य को नोटिस जारी किया है जिसमें कोविड टीकों के क्लीनिकल ट्रायल के आंकड़े और टीकाकरण के बाद पड़ने वाले प्रभावों के आंकड़े को सार्वजनिक करने की मांग की गई है। याचिका में विभिन्न सरकारों द्वारा अनिवार्य रूप से टीकाकरण के निर्णय पर रोक लगाने की भी मांग की गई है।

जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने टीकाकरण के राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह के पूर्व सदस्य डॉ जैकब पुलियेल द्वारा दायर इस याचिका पर केंद्र भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया और वैक्सीन निर्माता भारत बायोटेक लिमिटेड और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।

इससे पहले सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से वकील प्रशांत भूषण से कहा कि याचिका में कुछ प्रासंगिक बिंदु उठाए गए हैं। पीठ ने कहा है कि टीकाकरण के बाद के प्रभावों के आंकड़े पारदर्शिता लाने की चिंताओं की वह सराहना करती है।

आंकड़े सामने आने से 50 करोड़ लोगों के मन में संदेह तो पैदा नहीं होगा: अदालत
हालांकि पीठ ने चिंता व्यक्त की कि इस स्तर पर इस मसले पर विचार करने से 50 करोड़ से अधिक लोगों के मन में संदेह पैदा होगा, जिन्होंने टीके लिए हैं। इससे टीका लेने को लेकर लोगों में हिचकिचाहट बढ़ेगी। इस पर भूषण ने स्पष्ट किया कि याचिका ‘एंटी-वैक्सीन याचिका’ नहीं है और वह केवल क्लिनिकल परीक्षण और टीकाकरण के बाद के प्रभावों का खुलासा करने को लेकर है। आईसीएमआर द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार ऐसा करना आवश्यक है।

भूषण ने यह भी कहा कि विभिन्न सरकारों ने अनिवार्य टीकाकरण के लिए निर्देश जारी किया है। इनमें कहा गया है कि जिन लोगों ने टीकाकरण नहीं लिया है उन्हें सेवाओं से वंचित कर दिया जाएगा। इस पर पीठ ने सवाल किया कि क्या सार्वजनिक स्वास्थ्य हित पर व्यक्तिगत स्वायत्तता को प्राथमिकता दी जा सकती है। न्यायमूर्ति राव ने कहा, ‘हम आपकी बात को स्वीकार नहीं कर सकते। आप जनहित की बजाए व्यक्तिगत स्वायत्तता पर जोर दे रहे हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि जब तक सभी का टीकाकरण नहीं हो जाता, तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं है।’

सुप्रीम कोर्ट ने अनिवार्य टीकाकरण पर रोक लगाने की मांग पर किसी तरह का अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘टीकाकरण जारी है और हम इसे रोकना नहीं चाहते हैं। हम आपके द्वारा उठाए गए बिंदुओं का परीक्षण करेंगे

विस्तार

 सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस जनहित याचिका पर केंद्र सरकार, आईसीएमआर समेत अन्य को नोटिस जारी किया है जिसमें कोविड टीकों के क्लीनिकल ट्रायल के आंकड़े और टीकाकरण के बाद पड़ने वाले प्रभावों के आंकड़े को सार्वजनिक करने की मांग की गई है। याचिका में विभिन्न सरकारों द्वारा अनिवार्य रूप से टीकाकरण के निर्णय पर रोक लगाने की भी मांग की गई है।

जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने टीकाकरण के राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह के पूर्व सदस्य डॉ जैकब पुलियेल द्वारा दायर इस याचिका पर केंद्र भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया और वैक्सीन निर्माता भारत बायोटेक लिमिटेड और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।

इससे पहले सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से वकील प्रशांत भूषण से कहा कि याचिका में कुछ प्रासंगिक बिंदु उठाए गए हैं। पीठ ने कहा है कि टीकाकरण के बाद के प्रभावों के आंकड़े पारदर्शिता लाने की चिंताओं की वह सराहना करती है।

आंकड़े सामने आने से 50 करोड़ लोगों के मन में संदेह तो पैदा नहीं होगा: अदालत

हालांकि पीठ ने चिंता व्यक्त की कि इस स्तर पर इस मसले पर विचार करने से 50 करोड़ से अधिक लोगों के मन में संदेह पैदा होगा, जिन्होंने टीके लिए हैं। इससे टीका लेने को लेकर लोगों में हिचकिचाहट बढ़ेगी। इस पर भूषण ने स्पष्ट किया कि याचिका ‘एंटी-वैक्सीन याचिका’ नहीं है और वह केवल क्लिनिकल परीक्षण और टीकाकरण के बाद के प्रभावों का खुलासा करने को लेकर है। आईसीएमआर द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार ऐसा करना आवश्यक है।

भूषण ने यह भी कहा कि विभिन्न सरकारों ने अनिवार्य टीकाकरण के लिए निर्देश जारी किया है। इनमें कहा गया है कि जिन लोगों ने टीकाकरण नहीं लिया है उन्हें सेवाओं से वंचित कर दिया जाएगा। इस पर पीठ ने सवाल किया कि क्या सार्वजनिक स्वास्थ्य हित पर व्यक्तिगत स्वायत्तता को प्राथमिकता दी जा सकती है। न्यायमूर्ति राव ने कहा, ‘हम आपकी बात को स्वीकार नहीं कर सकते। आप जनहित की बजाए व्यक्तिगत स्वायत्तता पर जोर दे रहे हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि जब तक सभी का टीकाकरण नहीं हो जाता, तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं है।’

सुप्रीम कोर्ट ने अनिवार्य टीकाकरण पर रोक लगाने की मांग पर किसी तरह का अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘टीकाकरण जारी है और हम इसे रोकना नहीं चाहते हैं। हम आपके द्वारा उठाए गए बिंदुओं का परीक्षण करेंगे

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