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सुप्रीम कोर्ट: एनसीएलटी दिवालिया प्रक्रिया के लिए मजबूर नहीं कर सकता, कंपनी विधि न्यायाधिकरण को डिफॉल्ट तय करने का अधिकार

एजेंसी, नई दिल्ली
Published by: देव कश्यप
Updated Wed, 15 Dec 2021 07:09 AM IST

सार

सुप्रीम कोर्ट ने  ने एनसीएलटी व एनसीएलएटी के पूर्व में दिए फैसले को रद्द कर दिया। पीठ ने कहा, आईबीसी के तहत एनसीएलटी व एनसीएलएटी के पास सिर्फ दो विकल्प होते हैं कि वह किसी फर्म के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया के लिए अनुमति दे अथवा उसे निरस्त कर दे।

सुप्रीम कोर्ट
– फोटो : सोशल मीडिया

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सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) को किसी भी पक्ष को आईबीसी के तहत दिवालिया प्रक्रिया के लिए मजबूर करने का अधिकार  नहीं है। वह सिर्फ यह तय करता है कि डिफॉल्ट हुआ है अथवा नहीं।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एस बोपन्ना की पीठ ने एनसीएलटी व एनसीएलएटी के पूर्व में दिए फैसले को रद्द कर दिया। पीठ ने कहा, आईबीसी के तहत एनसीएलटी व एनसीएलएटी के पास सिर्फ दो विकल्प होते हैं कि वह किसी फर्म के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया के लिए अनुमति दे अथवा उसे निरस्त कर दे। यह फैसला भारत हाईटेक बिल्डर प्राइवेट लिमिटेड व मकान खरीदारों के बीच चल रहे विवाद पर दिया। मामले में एनसीएलटी ने बिल्डर को दिवालिया प्रक्रिया के तहत जल्द पैसा लौटाने का आदेश दिया था। शीर्ष अदालत ने इस फैसले को रद्द करते हुए नए सिरे से मामला शुरू करने का आदेश दिया है।

दिल्ली हाईकोर्ट का पर्यावरण मंजूरी से जुड़े ज्ञापन पर केंद्र को नोटिस
दिल्ली हाईकोर्ट ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के 7 जुलाई 2021 के ज्ञापन को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया है। ज्ञापन में बिना पर्यावरण मंजूरी के शुरू हो चुकी परियोजनाओं को अनुमति लेने का एक और अवसर दिया था। मंगलवार मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल व जस्टिस ज्योति सिंह की पीठ ने मंत्रालय के जरिए भारत सरकार को नोटिस जारी कर मामले की अगली सुनवाई 29 मार्च 2022 तय कर दी।

हालांकि, जजों ने ज्ञापन के संचालन पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता निष्ठा शुक्ला ने अधिवक्ता चिराग जैन और शोभित शुक्ला के जरिए कहा, कार्यालय ज्ञापन ने उल्लंघनकर्ताओं को पर्यावरण मंजूरी हासिल करने का एक और अवसर मुहैया कराया है, जो कि पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना (ईआईए) 1994 और 2006 के प्रावधानों के खिलाफ है। याचिका के मुताबिक, ज्ञापन के परिणामस्वरूप पर्यावरण को नुकसान होगा और उल्लंघन करने वालों को गतिविधियां नियमित करने का अवसर मिलेगा।  ब्यूरो

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) को किसी भी पक्ष को आईबीसी के तहत दिवालिया प्रक्रिया के लिए मजबूर करने का अधिकार  नहीं है। वह सिर्फ यह तय करता है कि डिफॉल्ट हुआ है अथवा नहीं।

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एस बोपन्ना की पीठ ने एनसीएलटी व एनसीएलएटी के पूर्व में दिए फैसले को रद्द कर दिया। पीठ ने कहा, आईबीसी के तहत एनसीएलटी व एनसीएलएटी के पास सिर्फ दो विकल्प होते हैं कि वह किसी फर्म के खिलाफ दिवालिया प्रक्रिया के लिए अनुमति दे अथवा उसे निरस्त कर दे। यह फैसला भारत हाईटेक बिल्डर प्राइवेट लिमिटेड व मकान खरीदारों के बीच चल रहे विवाद पर दिया। मामले में एनसीएलटी ने बिल्डर को दिवालिया प्रक्रिया के तहत जल्द पैसा लौटाने का आदेश दिया था। शीर्ष अदालत ने इस फैसले को रद्द करते हुए नए सिरे से मामला शुरू करने का आदेश दिया है।

दिल्ली हाईकोर्ट का पर्यावरण मंजूरी से जुड़े ज्ञापन पर केंद्र को नोटिस

दिल्ली हाईकोर्ट ने पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के 7 जुलाई 2021 के ज्ञापन को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी किया है। ज्ञापन में बिना पर्यावरण मंजूरी के शुरू हो चुकी परियोजनाओं को अनुमति लेने का एक और अवसर दिया था। मंगलवार मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल व जस्टिस ज्योति सिंह की पीठ ने मंत्रालय के जरिए भारत सरकार को नोटिस जारी कर मामले की अगली सुनवाई 29 मार्च 2022 तय कर दी।

हालांकि, जजों ने ज्ञापन के संचालन पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता निष्ठा शुक्ला ने अधिवक्ता चिराग जैन और शोभित शुक्ला के जरिए कहा, कार्यालय ज्ञापन ने उल्लंघनकर्ताओं को पर्यावरण मंजूरी हासिल करने का एक और अवसर मुहैया कराया है, जो कि पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना (ईआईए) 1994 और 2006 के प्रावधानों के खिलाफ है। याचिका के मुताबिक, ज्ञापन के परिणामस्वरूप पर्यावरण को नुकसान होगा और उल्लंघन करने वालों को गतिविधियां नियमित करने का अवसर मिलेगा।  ब्यूरो

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