इसके साथ ही तमिलनाडु ऐसा करने वाला देश का आठवां राज्य बन गया। इससे पहले केरल, पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना इस अधिनियम के विरोध में अपनी विधानसभा में प्रस्ताव पारित कर चुके हैं।
विधानसभा में प्रस्ताव पेश करने के दौरान मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सीएए पर टिप्पणी करते हुए कहा कि केंद्र को राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर)और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) तैयार करने की अपनी कोशिशों पर पूर्ण रूप से विराम लगाना चाहिए।
स्टालिन ने कहा कि श्रीलंकाई शरणार्थियों के लिए सीएए एक बड़ा धोखा है। यह उन लोगों के अधिकार छीनता है जो वापस न जाकर भारत में ही बसना चाहते हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि जब पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से लोग भारत आ सकते हैं तो श्रलंकाई लोगों के लिए ऐसी रोक क्यों लगाई जा रही है। केंद्र सरकार ऐसा करके तमिल शरणार्थियों के बीच भेदभाव करना चाहती है, इसीलिए सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया।
उन्होंने सीएए को संविधान के मूलभूत ढांचे के खिलाफ करार देते हुए इसे विभाजनकारी बताया। सीएए ने कुछ पंथ के लोगों के लिए नागरिकता के रास्ते खोल लिए लेकिन मुस्लिमों को सख्ती से नजरअंदाज किया गया। इसे धर्म के आधार पर विभाजनकारी मानते हुए उनकी पार्टी ने संसद में इसके शुरुआती प्रस्ताव वाले चरण में मुखाल्फत भी की थी। जनता में भेदभाव करने वाले इस अधिनियम को रद्द कर दिया जाना चाहिए। प्रस्ताव को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया।
हालांकि इस दौरान प्रमुख विपक्षी दल एआईएडीएमके के सदस्यों ने वॉकआउट किया। इसके अलावा भाजपा विधायकों ने भी वाकऑउट किया लेकिन बाद में मीडिया से उनके नेता नैनार नागेंद्रन ने कहा कि सीएए किसी भी रूप में मुस्लिमों के खिलाफ नहीं है। स्टालिन सामुदायिक सौहार्द की बात करते हैं लेकिन वे हिंदू त्योहारों पर जनता को बधाई तक नहीं देते। हालांकि सदन में एआईएडीएमके के गठबंधन वाली पीएमके के सदस्यों ने प्रस्ताव का समर्थन किया।
नेता प्रतिपक्ष के पलिनिस्वामी ने कहा कि वे स्पीकर की सहमति नहीं मिलने के कारण कुछ मुद्दे नहीं उठा पाए। अनुमति मिलने पर कुछ मुद्दों पर आवाज उठाई भी तो उसे स्वीकार नहीं किया गया। इस पर पार्टी ने वाकऑउट किया।
उन्होंने कहा कि डीएमके सरकार ने महिलाओं के लिए लाभकारी दो पहिया वाहन स्कीम को समाप्त कर दिया और एआईएडीएमके के कार्यकाल के दौरान लागू की गई लाभकारी योजनाओं को विफल कर दिया।
मालूम रहे कि सीएए के खिलाफ सबसे पहले केरल और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी ने प्रस्ताव पारित किया था। बाद में दिल्ली, आंध्रप्रदेश और झारखंड की विधानसभाओं में एनआरसी और एनपीआर के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए गए। वहीं गुजरात और गोवा ने सीएए से समर्थन में धन्यवाद रूपी प्रस्ताव पारित किए थे।