लोकसभा ने संविधान (अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2022 को चर्चा के बाद ध्वनिमत से पारित कर दिया। राज्यसभा ने बीते बुधवार (30 मार्च) को इस विधेयक को मंजूरी दी थी।
निचले सदन में चर्चा का जवाब देते हुए जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जनजातियों के विकास एवं कल्याण का कार्य प्रतिबद्धता के साथ किया जा रहा है और इन्हीं प्रयासों के तहत विसंगतियों को दूर किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव की मूल अवधारणा यह है कि जनजातियों को लेकर जो चीजें 75 साल में नहीं हो सकीं, वो 100 वर्ष पूरा करने तक हो जाएं और उन्हें मुख्यधारा में लाया जाए।
जनजातियों को लेकर राजनीति करने के कांग्रेस के एक सदस्य के आरोप पर मुंडा ने कहा कि ‘‘आपकी पार्टी ने लंबे समय तक शासन किया तब आपने ऐसा क्यों नहीं किया? आपने जनजातियों को नजरंदाज किया?’’ उन्होंने कहा कि हमने संविधान के तहत निर्धारित मानदंडों के तहत काम किया और यह ऐतिहासिक कालखंड है जब आदिवासियों के कल्याण की चिंता सरकार कर रही है।
मंत्री के जवाब के बाद लोकसभा ने ‘संविधान (अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2022’ को मंजूरी दे दी। इस विधेयक के माध्यम से झारखंड राज्य के संबंध में अनुसूचित जातियों की सूची में से भोगता समुदाय को लोप करने के लिए संविधान अनुसूचित जातियां आदेश 1950 तथा झारखंड राज्य के संबंध में अनुसूचित जनजातियों की सूचियों में कुछ समुदायों को सम्मिलित करने के लिए संविधान अनुसूचित जनजातियां आदेश 1950 का और संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया है।
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि, संशोधन के तहत संविधान अनुसूचित जनजातियां आदेश 1950 की अनुसूची के भाग 22 में झारखंड में प्रविष्टि 16 के स्थान पर खरवार, भोगता, देशवारी, गंझू, दौलतबंदी (द्वालबंदी), पटबंदी, राउत, माझिया और खैरी को रखा जाएगा। वहीं, इसकी प्रविष्टि 24 में ‘पतार’ के बाद ‘तमरिया’ अंत:स्थापित करने तथा प्रविष्टि 32 में पुरान समुदाय को शामिल करने का प्रस्ताव है।
विधेयक पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए कांग्रेस के के सुरेश ने कहा कि पहले त्रिपुरा, फिर उत्तर प्रदेश और अब झारखंड के लिए इस तरह का विधेयक लाया गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि चुनाव की दृष्टि से कई समुदायों को अनुसूचित जातियों से अनुसूचित जनजातियों में जोड़ने के लिए ऐसे विधेयक लाए जा रहे हैं।
सुरेश ने कहा कि इन समुदायों की वास्तविक समस्याओं पर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए। उन्होंने यह भी दावा किया कि सरकार वन अधिकार कानून को लागू करने के लिए भी कुछ नहीं कर रही। इस पर भाजपा के सुनील कुमार सिंह ने कहा कि इन जातियों को 74 वर्ष बाद न्याय मिल पाया है। उन्होंने कहा कि हम वोट बैंक के लिए ऐसे विधेयक नहीं ला रहे, बल्कि कांग्रेस की गलतियों को सुधार रहे हैं।
द्रमुक के वी सेंथिल कुमार ने भी आरोप लगाया कि चुनावों की रणनीति के तहत ऐसे विधेयक लाए जा रहे हैं और इनका उद्देश्य तुष्टीकरण है, उत्थान नहीं। तृणमूल कांग्रेस की प्रतिमा मंडल ने कहा कि आजादी के 74 वर्ष बाद भी जनजातीय समुदायों की दशा में खास अंतर नहीं आया है।
चर्चा में हिस्सा लेते हुए भाजपा के एस एस आहलूवालिया ने कहा कि देश की सभी जनजातियों की अपनी बोली, मातृभाषा होती है, ऐसे में इनके संरक्षण की दिशा में सरकार को कदम उठाना चाहिए।
झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के सदस्य विजय कुमार हंसदक ने कहा कि भोगता समुदाय के कुछ नेताओं और सदस्यों ने इसे अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने के कदम पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा, ”इस बात को लेकर भोगता समुदाय में काफी गुस्सा है।” उन्होंने मंत्री से समुदाय के विचारों पर विचार करने और झारखंड सरकार के साथ परामर्श करने के बाद विधेयक लाने का आग्रह किया।
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कांग्रेस और झामुमो सदस्यों पर निशाना साधते हुए कहा, “जिस तरह से उन्होंने विधेयक का विरोध किया वह निंदनीय है… झारखंड की जनता उन्हें कभी माफ नहीं करेगी।” विधेयक के पारित होने के बाद लोकसभा को अगले दिन तक के लिए स्थगित कर दिया गया।