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रिदम कला महोत्सव: मनोज कुमार, ओम कटारे और कुलदीप सिंह ने शिक्षा नीति पर साझा किए अपने विचार, कला के बारे में कही ये बात

अंजना वेलफेयर सोसायटी के सहयोग से रिदम कला महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस महोत्सव के दौरान संगीत एवं नृत्य की कार्यशाला आयोजित की जा रही है। ये महोत्सव 26 जनवरी से शुरू हुआ है और यह कला महोत्सव पूरे 45 दिनों तक आयोजित किया जाएगा। अंजना वेलफेयर सोसाइटी की फाउंडर कथक नृत्यांगना माया कुलश्रेष्ठ ने बताया कि युवा कलाकारों को गुरुजनों का मार्ग दर्शन देना इस संस्था का उद्देश्य है। उन्हीं के लिए समय-समय पर इस तरह के महोत्सव का आयोजन किया जाता है।

 

इस महोत्सव में बुधवार को आयोजित हुई कार्यशाला में मनोज कुमार श्रीवास्तव (सेवानिवृत्त आईएएस अपर मुख्य सचिव, मध्य प्रदेश), ओम कटारे (संस्थापक, यात्री थिएटर) और कुलदीप सिंह (प्रधान शिक्षा निदेशालय, एनसीटी दिल्ली सरकार) शामिल हुए। इस कार्यक्रम में इन तमाम मेहमानों से नई शिक्षा प्रणाली के बारे में बात की और इसमें कला को शामिल करने पर अपने विचार रखे।

 

सवाल: मनोज कुमार जी, नई शिक्षा पॉलिसी के मुताबिक, कला और भाषा को हमारी शिक्षा पॉलिसी में बराबर हिस्से में बांट दिया गया है। क्या आपको लगता है कि ये पुरानी गुरुकुल पॉलिसी है और इसमें क्या-क्या बदलाव है। आप शिक्षा और कला से जुड़े हैं तो आपके क्या विचार है?

जवाब: मैं इस सवाल को वैश्विक स्तर पर देखना चाहूंगा। आज के समय में अमेरिका में लोग विज्ञान पर ध्यान दे रहे हैं। वहां के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा भी इसी पर ध्यान दे रहे थे। चीन में भी ऐसा ही हो रहा है। ब्रिटेन में भी साइंस और टेक्नोलॉजी जैसे विषय पर ध्यान देते हैं। सिलिकॉन वैली पर भी एक अध्ययन हुआ था, जिससे पता चला है इस वक्त कुछ ही विषयों पर पढ़ाई होती है। ऐसे में भारत में ऐसी शिक्षा नीति को लाने की कोशिश की है जो विज्ञान को महत्व देती है लेकिन कलाकारों की उपेक्षा नहीं करती। लेकिन हमारे संविधान में आर्ट का उल्लेख नहीं है। ब्राजील के संविधान में पांच पेज में संस्कृति और कला का उल्लेख है। सरस्वती के एक हाथ में किताब और दूसरे हाथ में वीणा होती है। यानी कला शिक्षा का हिस्सा है। अगर हमने आर्ट फर्म को महत्व देना कम कर दिया तो शिक्षा में भी कमी आएगी। अगर हम चाहते हैं कि शिक्षा में विज्ञान और गणित की तरह कला को भी गंभीरता से लिया जाए। जब कला सहायक शिक्षा की तरह नहीं रहेगी। तब जाकर कुछ बात बनेगी।   

 

सवाल: ओम कटारे जी, कभी भी कला को फुल टाइम करियर की तरह नहीं माना जाता है। ये विचार माता-पिता और स्कूल टीचर्स के दिमाग में भी होते हैं। क्या कला को फुल टाइम किया जा सकता है और अगर नहीं, तो इसके क्या कारण है?

उत्तर: मैं मध्यप्रदेश के एक ऐसी जगह से आया हूं जहां पर रंगमंच नहीं था। मैंने कभी जीवन में नहीं सोचा था कि मैं थिएटर ग्रुप चलाऊंगा। बच्चों को शिक्षा देने का भी नहीं सोचा था। मुश्किलें हुई हैं लेकिन मैं थिएटर में रहकर चीजों का सामना कर रहा हूं। मैं अकेले छोटे से शहर से आकर थिएटर पर समर्पित हो सकता हूं तो कोई भी कर सकता है। इसके लिए जुनून और पागलपन चाहिए। आज के समय में देश में हर दूसरा बच्चा थिएटर, टीवी या सिनेमा से जुड़ना चाहता है, तो क्यों न इसे शिक्षा से जोड़ दिया जाए। इसे भी मुख्य स्थान दिया जाए। ताकि लोग इसमें भी पढ़ाई करे और उन्हें भी आगे जाकर नौकरी मिले। ऐसी व्यवस्था हम लोगों को करनी होगी। मैं 10 अलग-अलग शहरों में पढ़ा चुका हूं। कई जगह वर्कशॉप भी की है। थिएटर इंसान को अनुशासन सिखाता है। थिएटर सिखाता है कि कैसे चार लोगों के सामने बात करनी है। थिएटर को एक नई दिशा मिलनी चाहिए। ताकि इसका महत्व समझा जाए। आज भी लोग पूछते हैं कि हम थिएटर सालों से कर रहे हैं लेकिन असल में काम क्या करते हैं? लोगों को लगता है कि यह शौकिया है। जब तक इसमें शिक्षा नहीं आएगी। ठीक नहीं होगा।

 

महाराष्ट्र और बंगाल में थिएटर मुख्य विषय है। यहां पर माता-पिता को ये कहने में गर्व होता है कि मेरा बेटा संगीत सीख रहा है या फिर नाटक में काम करता है। अगर दो जगह पर हो सकता है तो बाकी राज्यों में ऐसा क्यों नहीं हो सकता। लोग कोशिश कर रहे हैं लेकिन देखने वालों को, करने वालों और सरकार सबको समझना होगा कि ये भी मुख्यधारा का काम है। आज के टाइम में डॉक्टर, इंजीनियर सब एक्टिंग कर रहे हैं। चार-पांच साल उन लोगों ने पढ़ाई की है और फिर रंगमंच में आए हैं। अगर वह सीधा ही थिएटर के बारे में पढ़ाई करते तो कितना अच्छा होता। लेकिन मां-बाप की वजह से भी लोग ऐसा नहीं करते।

 

सवाल: कुलदीप सिंह, आप एक स्कूल के प्रिंसिपल हैं। आपके ऊपर जिम्मेदारी है कि नई शिक्षा पॉलिसी आई है, जिसमें कला को जोड़ना है। इसके लिए आपको क्या-क्या चुनौती मिल रही है? 

उत्तर: ये बदलाव अचानक हुआ है। नई शिक्षा पॉलिसी की वजह से अब करियर को चुनने की कई संभावनाएं हैं। हमारा ध्यान मेडिसिन, इंजीनियरिंग, मैथ्स, फिजिक्स होता है। लेकिन अब हमारा ध्यान वैल्यू सिस्टम पर है। हम बच्चों को नर्सरी से ही सिखाना शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं। स्कूल एक बच्चे के समग्र विकास की जिम्मेदारी लेता है, जिसमें न्यूट्रिशन से लेकर फिजिकल ग्रोथ तक शामिल है और यही नई शिक्षा प्रणाली है। हम अच्छा डांसर, फुटबॉलर, सिंगर और आर्टिस्ट जल्द से जल्द चाहिए। नई शिक्षा प्रणाली की एक और बात अच्छी है कि इससे रिजनल भाषा सीखने का मौका मिल रहा है, जो अच्छी बात है। पहले अगर स्टूडेंट हिंदी मीडियम में पढ़ता था तो इसे इज्जत नहीं मिलती थी। लेकिन अब ऐसा नहीं है। नई शिक्षा प्रणाली आपको ये आजादी देती है कि अगर आप क्रिएटिव है तो आगे बढ़िए। अगर आप डांस टीचर हैं और आपको अंग्रेजी नहीं होती तो कोई बात नहीं। नई शिक्षा पॉलिसी आपको आत्मविश्वास देती है। स्कूल में चीजें बदल रही हैं और ये कोई चुनौती नहीं है। चुनौती है अनुशासन, जो ग्राउंड जीरो की बात है।

 

सवाल: कुलदीप सिंह, आपके लिए नई शिक्षा पॉलिसी में क्या चुनौतियां आई हैं?

उत्तर: सबसे पहले हमें लोगों को जागरुक करना होगा। नई शिक्षा पॉलिसी के बारे में जानते नहीं हैं और इसी वजह से डर का माहौल पैदा हो रहा है। लोग सोच रहे हैं कि कला के बारे में पढ़ने से बच्चा डांसर या सिंगर बन जाएगा तो इंजीनियर कैसा बनेगा। और यही चीज उन्हें समझानी है। इसके लिए हमें वर्कशॉप करने होंगे। हम सबको मिलकर ये काम करना होगा।  

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