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यूएपीए: जांच का समय बढ़ाने का अधिकार मजिस्ट्रेट को नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- विशेष अदालत ही कर सकती है ऐसा

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: सुरेंद्र जोशी
Updated Fri, 10 Sep 2021 11:07 PM IST

सार

गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के मामले में शीर्ष कोर्ट की यह राय अहम है। भोपाल के एक मामले में निचली कोर्ट ने 90 दिन में आरोप पत्र दायर नहीं होने पर जमानत देने से इनकार कर दिया था। सीजेएम कोर्ट जांच की अवधि भी बढ़ाकर 180 दिन कर दी थी। 
 

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी भी मजिस्ट्रेट को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) से जुड़े मामलों की जांच का समय बढ़ाने का अधिकार नहीं होता है।

जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस. रविंद्र भट्ट और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, केवल राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम (एनआईए एक्ट) के तहत गठित विशेष अदालतों के पास ही जांच का समय बढ़ाने के आवेदन पर विचार करने का प्राधिकार होता है। यह बात यूएपीए अधिनियम की धारा 43-डी (2) (बी) में यह प्राधिकार पूरी तरह स्पष्ट किया गया है।

पीठ ने यह फैसला 7 सितंबर को सादिक व अन्य के मामले में सुनवाई के दौरान सुनाया, जिन्होंने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। सादिक और अन्य आरोपियों को भोपाल के एसटीएफ/एटीएस पुलिस थाने में दर्ज एक अपराध में शस्त्र अधिनियम और यूपीपीए के विभिन्न प्रावधानों के तहत गिरफ्तार किया गया था।

यूएपीए की धारा 43-डी(2)(बी) के तहत जांच टीम की ओर से दाखिल आवेदन पर भोपाल के चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट (सीजेएम) ने जांच पूरी करने की अवधि बढ़ा दी थी। अपनी हिरासत के 90 दिन पूरे होने पर आरोपियों ने आरोप पत्र दाखिल नहीं होने के आधार पर जमानत के लिए सीजेएम कोर्ट में याचिका दाखिल की, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया। सादिक व अन्य ने इसके खिलाफ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में अपील दाखिल की, लेकिन वहां भी सीजेएम कोर्ट के फैसले को सही मानते हुए जांच पूरी करने के लिए 180 दिन का समय माना गया और याचिका खारिज कर दी गई। सादिक व अन्य ने हाईकोर्ट के इस फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी।

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी भी मजिस्ट्रेट को गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) से जुड़े मामलों की जांच का समय बढ़ाने का अधिकार नहीं होता है।

जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस. रविंद्र भट्ट और जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, केवल राष्ट्रीय जांच एजेंसी अधिनियम (एनआईए एक्ट) के तहत गठित विशेष अदालतों के पास ही जांच का समय बढ़ाने के आवेदन पर विचार करने का प्राधिकार होता है। यह बात यूएपीए अधिनियम की धारा 43-डी (2) (बी) में यह प्राधिकार पूरी तरह स्पष्ट किया गया है।

पीठ ने यह फैसला 7 सितंबर को सादिक व अन्य के मामले में सुनवाई के दौरान सुनाया, जिन्होंने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी। सादिक और अन्य आरोपियों को भोपाल के एसटीएफ/एटीएस पुलिस थाने में दर्ज एक अपराध में शस्त्र अधिनियम और यूपीपीए के विभिन्न प्रावधानों के तहत गिरफ्तार किया गया था।

यूएपीए की धारा 43-डी(2)(बी) के तहत जांच टीम की ओर से दाखिल आवेदन पर भोपाल के चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट (सीजेएम) ने जांच पूरी करने की अवधि बढ़ा दी थी। अपनी हिरासत के 90 दिन पूरे होने पर आरोपियों ने आरोप पत्र दाखिल नहीं होने के आधार पर जमानत के लिए सीजेएम कोर्ट में याचिका दाखिल की, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया। सादिक व अन्य ने इसके खिलाफ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में अपील दाखिल की, लेकिन वहां भी सीजेएम कोर्ट के फैसले को सही मानते हुए जांच पूरी करने के लिए 180 दिन का समय माना गया और याचिका खारिज कर दी गई। सादिक व अन्य ने हाईकोर्ट के इस फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी।

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