नौसेना में नया डिस्ट्रॉयर आईएनएस विशाखापट्टनम शामिल किए जाने के अवसर पर मुंबई के नेवल डॉकयार्ड पर रविवार को हुए आयोजन में रक्षामंत्री ने कहा, हिंद-प्रशांत क्षेत्र वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए अहम जलमार्ग है। यहां से विश्व के दो-तिहाई तेल और एक-तिहाई अन्य उत्पादों का परिवहन होता है। दुनिया के करीब आधे कंटेनर यहां से गुजरते हैं।
भारत इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण राष्ट्र है, हमारी नौसेना यहां की सुरक्षा में अहम भूमिका रखती है। उसके सामने समुद्री लुटेरों, आतंकवाद, हथियारों व मादक पदार्थों की तस्करी, मानव तस्करी, अवैध मछली पकड़ने और पर्यावरण को नुकसान रोकने जैसी चुनौतियां भी हैं।
इन जलमार्गों को सुरक्षित व शांतिपूर्ण रखना नौसेना के प्रमुख लक्ष्यों में से एक है। भारत चाहता है कि यहां से संचालित वैश्विक अर्थव्यवस्था और सभी देशों के हितों को सुरक्षित रखा जाए, वैश्विक कानूनों का पालन हो। लेकिन मनमानी से कानूनों के मतलब निकाले जाएंगे तो सामुद्रिक कानूनों के पालन में बाधाएं खड़ी होंगी।
कई गुना बढ़ेगा रक्षा खर्च
रक्षा मंत्री ने बताया, दुनिया में रक्षा, सीमा विवादों और सामुद्रिक वर्चस्व बनाए रखने के लिए सैन्य आधुनिकीकरण से उन्हें मजबूत किया जा रहा है। सैन्य उपकरणों की मांग तेजी से बढ़ी है।
अनुमान है, विश्व में रक्षा पर 2.1 लाख करोड़ डॉलर यानी 15.60 लाख करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं। अगले दशक में यह कई गुना बढ़ सकता है।
इसलिए हिमाकत कर रहा चीन
चीन समुद्र के जिन हिस्सों पर दावा कर रहा है, उन्हें हाइड्रोकार्बन की प्रचुरता वाला क्षेत्र माना जाता है। यहां 770 करोड़ बैरल कच्चा तेल होने की पुष्टि हुई है और अनुमान 2,800 करोड़ बैरल का है। 226 लाख करोड़ क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस का भंडार भी है। चीन ने इन्हें निकालना शुरू कर दिया है। यहां बड़ी मात्रा में कारोबारी आवाजाही होती है। इस पर नियंत्रण के जरिए चीन जापान, वियतनाम, लाओस, मलयेशिया, सहित कई अन्य देशों की अर्थव्यवस्था नियंत्रित करना चाह रहा है।
रक्षा उत्पादन में अवसर, जलपोत निर्माण हब बनेंगे
रक्षामंत्री सिंह कहा कि भारत के पास अपनी पूरी क्षमता उपयोग करने के अवसर हैं। वर्तमान में नौसेना द्वारा दिए गए 41 जलपोत निर्माण के ऑर्डर में से 38 पोत भारत में ही बन रहे हैं। आगे भी हमें अपनी नीतियों के जरिए देश को जलपोत निर्माण का हब बनाना होगा।
‘मेक इन इंडिया और मेक फॉर वर्ल्ड’ के विचार के साथ काम करना होगा। भारत में आईएनएस विशाखापट्टनम के 75 प्रतिशत हिस्से बनाए गए हैं। उन्हाेंने कहा कि आईएनएस विशाखापट्टनम से नौसेना को महासागर में गति, लंबी पहुंची और अपने कार्य अंजाम देने में सहायता मिलेगी।
2016 में अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण में मिली थी चीन को हार
दक्षिण व पूर्वी चीन सागर में किए जा रहे चीन के कब्जे के दावे को 2016 में अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण नकार चुका है। चीन ने इस आदेश को अमान्य करार देते हुए अपने पर लागू करने से ही इनकार कर दिया।
मुख्य भूमि से 22 किमी आगे का समुद्र चीन का नहीं
1982 में हुई समुद्र कानून संधि के अनुसार, चीन की मुख्य भूमि से 22 किमी आगे समुद्र पर उसका अधिकार नहीं है, इसे अंतरराष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र कहा जाता है। मुख्य भूमि से 44.4 किमी आगे चीन आवाजाही नियंत्रित कर सकता है और 370 किमी समुद्र के संसाधनों पर नियंत्रण रख सकता है, लेकिन किसी अन्य देश के पोत को गुजरने से रोक नहीं सकता। संधि पर चीन सहित 160 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं।