वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, काठमांडो
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Tue, 23 Nov 2021 06:42 PM IST
सार
एक महीना से भी अधिक समय से नेपाल बार एसोसिएशन सुप्रीम कोर्ट में नुक्कड़ सभाओं का आयोजन कर रहा है, जिनमें चीफ जस्टिस राणा के खिलाफ भाषण दिए जाते हैं। कुछ दिन पहले एसोसिएशन ने अपने आंदोलन को देश भर में फैलाने का एलान किया। आरोप है कि जस्टिस राणा ने प्रधानमंत्री शेर बहादु देउबा की सरकार की तरफ से की गई नियुक्तियों के खिलाफ दायर अर्जियों पर सुनवाई रोक रखी है…
नेपाल सुप्रीम कोर्ट
– फोटो : PTI (File Photo)
नेपाल के वकीलों ने प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर जेबी राणा को हटाने के लिए चलाए जा रहे अपने आंदोलन को और तेज कर दिया है। उन्होंने इस बारे में प्रतिनिधि सभा के स्पीकर अग्नि प्रसाद सपकोटा, नेशनल असेंबली के चेयरपर्सन गणेश प्रसात तिमिलसिना और देश के प्रमुख राजनीतिक दलों को एक ज्ञापन सौंपा है। इसमें नेपाल बार एसोसिएशन ने उन कारणों का विस्तार से जिक्र किया है, जिनकी वजह से वह प्रधान न्यायाधीश के इस्तीफे की मांग कर रही है।
बार एसोसिएशन ने जिन दलों को ज्ञापन सौंपा, उनमें सीपीएन-यूएमएल, सीपीएन-माओइस्ट सेंटर, राष्ट्रीय जन मोर्चा, जनता समाजवादी पार्टी- नेपाल और डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट पार्टी- नेपाल शामिल हैं। बार एसोसिएशन की उपाध्यक्ष रक्ष्या बसयाल ने अखबार द हिमालय टाइम्स से बातचीत में कहा कि उन्हें राजनीतिक दलों की तरफ से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है।
चीफ जस्टिस पर सरकार के साथ सौदेबाजी के आरोप
बार एसोसिएशन का आरोप है कि चीफ जस्टिस राणा अपने पद की जिम्मेदारी निभाने में नाकाम रहे हैं। साथ ही वे न्यायपालिका के हितों की रक्षा भी नहीं कर पाए हैं। बार एसोसिएशन का ज्ञापन मिलने के बाद स्पीकर अग्नि प्रसाद सपकोटा ने कहा कि वे मौजूदा गतिरोध को दूर करने की पूरी कोशिश करेंगे। बार एसोसिएशन का आंदोलन एक महीने से भी ज्यादा समय से चल रहा है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही बुरी तरह प्रभावित हुई है।
ज्ञापन में आरोप लगाया गया है कि जस्टिस राणा ने सरकार के साथ सौदेबाजी की और अपने एक रिश्तेदार को मंत्री बनवाया। इसके बदले उन्होंने राजनीतिक नियुक्तियों और राजनीतिक दल अधिनियम को दी गई चुनौती से संबंधित मामलों की सुनवाई में जानबूझ कर देर की है। आरोप है कि चीफ जस्टिस ने बार एसोसिएशन की चेतावनियों को नजरअंदाज करते हुए न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है। ज्ञापन में यह इल्जाम भी लगाया गया है कि हत्या के मामले में सजायाफ्ता रंजन कोइराला के दंड को चीफ जस्टिस ने उस समय माफ कर दिया, जबकि अभी सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में सुनवाई जारी थी। वकीलों ने प्रधान न्यायाधीश पर घूस लेकर नियुक्तियां करने का आरोप भी लगाया है।
इस्तीफे तक जारी रहेगा आंदोलन
एक महीना से भी अधिक समय से नेपाल बार एसोसिएशन सुप्रीम कोर्ट में नुक्कड़ सभाओं का आयोजन कर रहा है, जिनमें चीफ जस्टिस राणा के खिलाफ भाषण दिए जाते हैं। कुछ दिन पहले एसोसिएशन ने अपने आंदोलन को देश भर में फैलाने का एलान किया। एसोसिएशन ने कहा है कि अब वह देश भर की अदालतों में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं के अलावा अन्य तमाम मामलों की सुनवाई रोक देगी। रक्ष्या बसयाल ने कहा है कि जस्टिस राणा के इस्तीफा देने तक वकीलों का आंदोलन जारी रहेगा।
एनबीए को सुप्रीम कोर्ट के कई असंतुष्ट जजों का भी समर्थन हासिल है। उन जजों ने भी चीफ जस्टिस के इस्तीफे की मांग की है। आरोप है कि जस्टिस राणा ने प्रधानमंत्री शेर बहादु देउबा की सरकार की तरफ से की गई नियुक्तियों के खिलाफ दायर अर्जियों पर सुनवाई रोक रखी है। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री देउबा से सौदेबाजी की, जिसके तहत जस्टिस राणा के एक रिश्तेदार को देउबा सरकार में मंत्री बनाया गया है।
पिछले हफ्ते जस्टिस राणा ने बार एसोसिएशन से बातचीत की पेश की थी थी। लेकिन एसोसिएशन ने उसे ठुकरा दिया। एसोसिएशन का कहना है कि वह जस्टिस राणा के इस्तीफे से कम किसी प्रस्ताव पर राजी नहीं होगी।
विस्तार
नेपाल के वकीलों ने प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर जेबी राणा को हटाने के लिए चलाए जा रहे अपने आंदोलन को और तेज कर दिया है। उन्होंने इस बारे में प्रतिनिधि सभा के स्पीकर अग्नि प्रसाद सपकोटा, नेशनल असेंबली के चेयरपर्सन गणेश प्रसात तिमिलसिना और देश के प्रमुख राजनीतिक दलों को एक ज्ञापन सौंपा है। इसमें नेपाल बार एसोसिएशन ने उन कारणों का विस्तार से जिक्र किया है, जिनकी वजह से वह प्रधान न्यायाधीश के इस्तीफे की मांग कर रही है।
बार एसोसिएशन ने जिन दलों को ज्ञापन सौंपा, उनमें सीपीएन-यूएमएल, सीपीएन-माओइस्ट सेंटर, राष्ट्रीय जन मोर्चा, जनता समाजवादी पार्टी- नेपाल और डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट पार्टी- नेपाल शामिल हैं। बार एसोसिएशन की उपाध्यक्ष रक्ष्या बसयाल ने अखबार द हिमालय टाइम्स से बातचीत में कहा कि उन्हें राजनीतिक दलों की तरफ से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है।
चीफ जस्टिस पर सरकार के साथ सौदेबाजी के आरोप
बार एसोसिएशन का आरोप है कि चीफ जस्टिस राणा अपने पद की जिम्मेदारी निभाने में नाकाम रहे हैं। साथ ही वे न्यायपालिका के हितों की रक्षा भी नहीं कर पाए हैं। बार एसोसिएशन का ज्ञापन मिलने के बाद स्पीकर अग्नि प्रसाद सपकोटा ने कहा कि वे मौजूदा गतिरोध को दूर करने की पूरी कोशिश करेंगे। बार एसोसिएशन का आंदोलन एक महीने से भी ज्यादा समय से चल रहा है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही बुरी तरह प्रभावित हुई है।
ज्ञापन में आरोप लगाया गया है कि जस्टिस राणा ने सरकार के साथ सौदेबाजी की और अपने एक रिश्तेदार को मंत्री बनवाया। इसके बदले उन्होंने राजनीतिक नियुक्तियों और राजनीतिक दल अधिनियम को दी गई चुनौती से संबंधित मामलों की सुनवाई में जानबूझ कर देर की है। आरोप है कि चीफ जस्टिस ने बार एसोसिएशन की चेतावनियों को नजरअंदाज करते हुए न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है। ज्ञापन में यह इल्जाम भी लगाया गया है कि हत्या के मामले में सजायाफ्ता रंजन कोइराला के दंड को चीफ जस्टिस ने उस समय माफ कर दिया, जबकि अभी सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में सुनवाई जारी थी। वकीलों ने प्रधान न्यायाधीश पर घूस लेकर नियुक्तियां करने का आरोप भी लगाया है।
इस्तीफे तक जारी रहेगा आंदोलन
एक महीना से भी अधिक समय से नेपाल बार एसोसिएशन सुप्रीम कोर्ट में नुक्कड़ सभाओं का आयोजन कर रहा है, जिनमें चीफ जस्टिस राणा के खिलाफ भाषण दिए जाते हैं। कुछ दिन पहले एसोसिएशन ने अपने आंदोलन को देश भर में फैलाने का एलान किया। एसोसिएशन ने कहा है कि अब वह देश भर की अदालतों में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं के अलावा अन्य तमाम मामलों की सुनवाई रोक देगी। रक्ष्या बसयाल ने कहा है कि जस्टिस राणा के इस्तीफा देने तक वकीलों का आंदोलन जारी रहेगा।
एनबीए को सुप्रीम कोर्ट के कई असंतुष्ट जजों का भी समर्थन हासिल है। उन जजों ने भी चीफ जस्टिस के इस्तीफे की मांग की है। आरोप है कि जस्टिस राणा ने प्रधानमंत्री शेर बहादु देउबा की सरकार की तरफ से की गई नियुक्तियों के खिलाफ दायर अर्जियों पर सुनवाई रोक रखी है। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री देउबा से सौदेबाजी की, जिसके तहत जस्टिस राणा के एक रिश्तेदार को देउबा सरकार में मंत्री बनाया गया है।
पिछले हफ्ते जस्टिस राणा ने बार एसोसिएशन से बातचीत की पेश की थी थी। लेकिन एसोसिएशन ने उसे ठुकरा दिया। एसोसिएशन का कहना है कि वह जस्टिस राणा के इस्तीफे से कम किसी प्रस्ताव पर राजी नहीं होगी।
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