वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, मास्को
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Wed, 24 Nov 2021 05:50 PM IST
सार
रूसी मीडिया में आरोप लगाया गया है कि अमेरिकी नेतृत्व वाला संगठन नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) ‘सलामी टैक्टिक्स’ पर चल रहा है। यानी वह धीरे-धीरे रूस के क्षेत्र या उसके प्रभाव क्षेत्र को काट कर उसे अपने प्रभाव क्षेत्र में शामिल करने की रणनीति पर चल रहा है…
यूक्रेन के मसले पर रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ये चेतावनी दी है कि पश्चिमी देश उनके देश की ‘लक्ष्मण रेखाओं’ को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। इससे दोनों पक्षों के बीच खतरनाक टकराव की स्थिति बन सकती है।
पुतिन के ‘लक्ष्मण रेखाओं’ (रेड लाइंस) का जिक्र करने के बाद पश्चिमी राजधानियों में और नाराजगी पैदा होने के संकेत हैं। जबकि मास्को में विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि पुतिन ने जिन रेखाओं की बात की है, उन्हें लांघना रूस बर्दाश्त नहीं करेगा। रशिया इन ग्लोबल अफेयर्स जर्नल के संपादक ग्लेन दियेसेन ने एक टिप्पणी में लिखा है- ‘अगर लक्ष्मण रेखाएं लांघी गईं, तो उसका जवाब देने की रूस के पास सैन्य शक्ति है। इसके लिए उसने अपनी तैयारी का प्रदर्शन भी कर दिया है। अब उसने ये बात साफ-साफ पश्चिमी देशों को बता दी है, ताकि वे किसी भ्रम में ना रहें।’
नाचो की सलामी टैक्सिस नीति
रूसी मीडिया में आरोप लगाया गया है कि अमेरिकी नेतृत्व वाला संगठन नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) ‘सलामी टैक्टिक्स’ पर चल रहा है। यानी वह धीरे-धीरे रूस के क्षेत्र या उसके प्रभाव क्षेत्र को काट कर उसे अपने प्रभाव क्षेत्र में शामिल करने की रणनीति पर चल रहा है। वेबसाइट रशिया टुडे पर छपी एक टिप्पणी में कहा गया है- ‘नाटो सलामी टैक्टिक्स में माहिर है। पहले उसने कहा था कि पूर्वी यूरोप में वह अपना प्रसार नहीं करेगा। लेकिन उसने उस क्षेत्र के देशों के साथ पहले पार्टनरशिप फॉर पीस समझौता किया। तब रूस को बताया गया कि यह उसका शांतिपूर्ण कदम है। लेकिन बाद में मध्य और पूर्वी यूरोप देशों के साथ सैन्य सहयोग भी शुरू कर दिया गया।’
पोलैंड, हंगरी, और चेक रिपब्लिक पहले सोवियत खेमे के देश थे। इसलिए रूस उन्हें अपने प्रभाव क्षेत्र में समझता था। लेकिन 1999 में इन तीनों देशों को नाटो की सदस्यता दे दी गई। उसके बाद से कई और देशों में नाटो की पहुंच बन गई है। रूस का आरोप है कि अब नाटो यूक्रेन को भी अपना सदस्य बनाने की कोशिश में है। ऐसा होने पर नाटो की पहुंच रूस की सीमा तक बन जाएगी। पर्यवेक्षकों के मुताबिक इसीलिए रूस ने नाटो को बताया है कि ऐसा करना उसकी लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन करना होगा।
रूस और नाटो के बीच युद्ध होने का अंदेशा
कुछ विश्लेषकों ने कहा है कि यूक्रेन के सवाल पर रूस और नाटो के बीच युद्ध होने का अंदेशा वास्तविक है। यूक्रेन के दोनबास इलाके में रूसी मूल के लोग हैं, जो यूक्रेन सरकार के खिलाफ आंदोलन चला रहे हैं। आशंका है कि रूस सैनिक कार्रवाई के जरिए कभी इस क्षेत्र को उसी तरह अपने मिला ले सकता है, जैसा 2014 में उसने क्राइमिया में किया था। पश्चिमी देशों के बयानों से साफ है कि रूस का ऐसा कदम उनकी नजर में उनकी लक्ष्मण रेखा को पार करना होगा।
युद्ध की आशंका को टालने के लिए कई हलकों से मांग की गई है कि यूक्रेन सरकार दोनबास के प्रतिनिधियों से बातचीत शुरू करे। लेकिन यूक्रेन ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया है। इससे स्थिति अधिक जटिल हो गई है।
विस्तार
यूक्रेन के मसले पर रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनाव लगातार बढ़ रहा है। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ये चेतावनी दी है कि पश्चिमी देश उनके देश की ‘लक्ष्मण रेखाओं’ को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। इससे दोनों पक्षों के बीच खतरनाक टकराव की स्थिति बन सकती है।
पुतिन के ‘लक्ष्मण रेखाओं’ (रेड लाइंस) का जिक्र करने के बाद पश्चिमी राजधानियों में और नाराजगी पैदा होने के संकेत हैं। जबकि मास्को में विश्लेषकों ने ध्यान दिलाया है कि पुतिन ने जिन रेखाओं की बात की है, उन्हें लांघना रूस बर्दाश्त नहीं करेगा। रशिया इन ग्लोबल अफेयर्स जर्नल के संपादक ग्लेन दियेसेन ने एक टिप्पणी में लिखा है- ‘अगर लक्ष्मण रेखाएं लांघी गईं, तो उसका जवाब देने की रूस के पास सैन्य शक्ति है। इसके लिए उसने अपनी तैयारी का प्रदर्शन भी कर दिया है। अब उसने ये बात साफ-साफ पश्चिमी देशों को बता दी है, ताकि वे किसी भ्रम में ना रहें।’
नाचो की सलामी टैक्सिस नीति
रूसी मीडिया में आरोप लगाया गया है कि अमेरिकी नेतृत्व वाला संगठन नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) ‘सलामी टैक्टिक्स’ पर चल रहा है। यानी वह धीरे-धीरे रूस के क्षेत्र या उसके प्रभाव क्षेत्र को काट कर उसे अपने प्रभाव क्षेत्र में शामिल करने की रणनीति पर चल रहा है। वेबसाइट रशिया टुडे पर छपी एक टिप्पणी में कहा गया है- ‘नाटो सलामी टैक्टिक्स में माहिर है। पहले उसने कहा था कि पूर्वी यूरोप में वह अपना प्रसार नहीं करेगा। लेकिन उसने उस क्षेत्र के देशों के साथ पहले पार्टनरशिप फॉर पीस समझौता किया। तब रूस को बताया गया कि यह उसका शांतिपूर्ण कदम है। लेकिन बाद में मध्य और पूर्वी यूरोप देशों के साथ सैन्य सहयोग भी शुरू कर दिया गया।’
पोलैंड, हंगरी, और चेक रिपब्लिक पहले सोवियत खेमे के देश थे। इसलिए रूस उन्हें अपने प्रभाव क्षेत्र में समझता था। लेकिन 1999 में इन तीनों देशों को नाटो की सदस्यता दे दी गई। उसके बाद से कई और देशों में नाटो की पहुंच बन गई है। रूस का आरोप है कि अब नाटो यूक्रेन को भी अपना सदस्य बनाने की कोशिश में है। ऐसा होने पर नाटो की पहुंच रूस की सीमा तक बन जाएगी। पर्यवेक्षकों के मुताबिक इसीलिए रूस ने नाटो को बताया है कि ऐसा करना उसकी लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन करना होगा।
रूस और नाटो के बीच युद्ध होने का अंदेशा
कुछ विश्लेषकों ने कहा है कि यूक्रेन के सवाल पर रूस और नाटो के बीच युद्ध होने का अंदेशा वास्तविक है। यूक्रेन के दोनबास इलाके में रूसी मूल के लोग हैं, जो यूक्रेन सरकार के खिलाफ आंदोलन चला रहे हैं। आशंका है कि रूस सैनिक कार्रवाई के जरिए कभी इस क्षेत्र को उसी तरह अपने मिला ले सकता है, जैसा 2014 में उसने क्राइमिया में किया था। पश्चिमी देशों के बयानों से साफ है कि रूस का ऐसा कदम उनकी नजर में उनकी लक्ष्मण रेखा को पार करना होगा।
युद्ध की आशंका को टालने के लिए कई हलकों से मांग की गई है कि यूक्रेन सरकार दोनबास के प्रतिनिधियों से बातचीत शुरू करे। लेकिन यूक्रेन ने ऐसा करने से साफ इनकार कर दिया है। इससे स्थिति अधिक जटिल हो गई है।
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