एजेंसी, सियोल
Published by: Kuldeep Singh
Updated Wed, 24 Nov 2021 01:54 AM IST
सार
दक्षिण कोरिया के पूर्व सैन्य शासक चुन डू-ह्वान ने 1979 के तख्तापलट के बाद सत्ता संभाली थी और गलत कार्यों के लिए जेल जाने से पहले, पद पर रहते हुए लोकतंत्र समर्थक विरोध को बेरहमी से कुचल दिया था। आपात सेवाओं से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि चुन का निधन उनके घर पर ही हुआ। उन्हें दिल का दौरा पड़ा था।
दक्षिण कोरिया का झंडा
– फोटो : social media
दक्षिण कोरिया के पूर्व सैन्य शासक चुन डू-ह्वान का 90 वर्ष की उम्र में मंगलवार को निधन हो गया। उन्होंने 1979 के तख्तापलट के बाद सत्ता संभाली थी और गलत कार्यों के लिए जेल जाने से पहले, पद पर रहते हुए लोकतंत्र समर्थक विरोध को बेरहमी से कुचल दिया था। आपात सेवाओं से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि चुन का निधन उनके घर पर ही हुआ। उन्हें दिल का दौरा पड़ा था।
1979 में सैन्य तख्तापलट के बाद संभाली थी सत्ता, कई आरोप लगे
चुन के 1980 के दशक के शासन के दौरान सैकड़ों लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारी मारे गए थे और हजारों को जेल में डाल दिया गया था, लेकिन वर्षों के तानाशाही शासन के बाद उन्होंने कुछ उदारीकरण की अनुमति दी।
1988 में पद छोड़ने के बाद उन्हें भारी आलोचना का सामना करना पड़ा और गिरफ्तार होने से पहले उन्होंने एक बौद्ध मंदिर में दो साल तक शरण ली। उन पर भ्रष्टाचार, विद्रोह और राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया और उन्हें दोषी ठहराए जाने पर मौत की सजा सुनाई गई।
1997 में राष्ट्रीय सुलह की कोशिश में उनकी मौत की सजा माफ कर दी गई थी। वे सेना में मेजर जनरल थे, जब उन्होंने दिसंबर 1979 में अपने सैन्य साथियों के साथ सत्ता पर कब्जा कर लिया था। टैंक और सैनिकों को सियोल में उतारकर उन्होंने तख्तापलट को अंजाम दिया था।
विस्तार
दक्षिण कोरिया के पूर्व सैन्य शासक चुन डू-ह्वान का 90 वर्ष की उम्र में मंगलवार को निधन हो गया। उन्होंने 1979 के तख्तापलट के बाद सत्ता संभाली थी और गलत कार्यों के लिए जेल जाने से पहले, पद पर रहते हुए लोकतंत्र समर्थक विरोध को बेरहमी से कुचल दिया था। आपात सेवाओं से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि चुन का निधन उनके घर पर ही हुआ। उन्हें दिल का दौरा पड़ा था।
1979 में सैन्य तख्तापलट के बाद संभाली थी सत्ता, कई आरोप लगे
चुन के 1980 के दशक के शासन के दौरान सैकड़ों लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारी मारे गए थे और हजारों को जेल में डाल दिया गया था, लेकिन वर्षों के तानाशाही शासन के बाद उन्होंने कुछ उदारीकरण की अनुमति दी।
1988 में पद छोड़ने के बाद उन्हें भारी आलोचना का सामना करना पड़ा और गिरफ्तार होने से पहले उन्होंने एक बौद्ध मंदिर में दो साल तक शरण ली। उन पर भ्रष्टाचार, विद्रोह और राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया और उन्हें दोषी ठहराए जाने पर मौत की सजा सुनाई गई।
1997 में राष्ट्रीय सुलह की कोशिश में उनकी मौत की सजा माफ कर दी गई थी। वे सेना में मेजर जनरल थे, जब उन्होंने दिसंबर 1979 में अपने सैन्य साथियों के साथ सत्ता पर कब्जा कर लिया था। टैंक और सैनिकों को सियोल में उतारकर उन्होंने तख्तापलट को अंजाम दिया था।
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