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जयललिता की मौत का मामला: सुप्रीम कोर्ट ने जांच पैनल की मदद के लिए मेडिकल बोर्ड के गठन का दिया निर्देश

सार

सुप्रीम कोर्ट ने एम्स, नई दिल्ली के निदेशक को जयललिता की बीमारियों के इलाज के क्षेत्र से जुड़े डॉक्टरों और विशेषज्ञों के एक पैनल को नामित करने के लिए कहा। कोर्ट ने कहा कि हमारा यह भी विचार है कि मामले के निपटारे में आयोग की सहायता के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन करना उचित है।

तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता (फाइल फोटो)
– फोटो : PTI

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सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की मौत पर तथ्यों को इकट्ठा करने के लिए गठित जांच आयोग की मदद के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली के निदेशक को डॉक्टरों और विशेषज्ञों का एक पैनल बनाने के लिए कहा। तमिलनाडु सरकार ने 25 सितंबर, 2017 को मद्रास उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए अरुमुघस्वामी की अध्यक्षता में जांच आयोग का गठन किया था।

न्यायमूर्ति एसए नजीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने एम्स, नई दिल्ली के निदेशक को जयललिता की बीमारियों के इलाज के क्षेत्र से जुड़े डॉक्टरों और विशेषज्ञों के एक पैनल को नामित करने के लिए कहा। कोर्ट ने कहा कि “हमारा यह भी विचार है कि मामले के निपटारे में आयोग की सहायता के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन करना उचित है।”

पीठ ने कहा, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि इस प्रकार गठित मेडिकल बोर्ड को कार्यवाही के पूरे रिकॉर्ड आयोग को सौंपने होंगे। इस प्रकार गठित मेडिकल बोर्ड को आयोग की सभी आगे की कार्यवाही में भाग लेने और रिपोर्ट की एक प्रति प्रस्तुत करने की अनुमति होगी।”

शीर्ष अदालत मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली अपोलो अस्पताल द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि आयोग उपलब्ध मेडिकल रिकॉर्ड के आधार पर अस्पताल द्वारा दिए गए उपचार की उपयुक्तता, पर्याप्तता या अपर्याप्तता पर विचार कर सकता है। उच्च न्यायालय ने यह भी माना था कि वह जांच आयोग की नियुक्ति में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है और सरकार को बोर्ड में पेशेवरों या विशेषज्ञों को शामिल करने का निर्देश देता है ताकि न्यायमूर्ति रुमुघस्वामी की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच आयोग की सहायता की जा सके।

शीर्ष अदालत ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए कहा, हमारा विचार है कि अपीलकर्ता-अस्पताल और प्रतिवादी वीके शशिकला द्वारा दिए गए आवेदन पर गौर करते हुए आयोग के रिकॉर्ड में उपलब्ध दस्तावेजों, बयानों और अभिलेखों को पेश किया जाना उचित होगा।

पीठ ने अपोलो को किसी भी गवाह या व्यक्ति से जिरह करने की अनुमति मांगने के लिए एक उपयुक्त आवेदन करने की भी अनुमति दी। इसमें वे गवाह भी शामिल हैं, जिनके साक्ष्य बंद कर दिए गए हैं और कहा गया कि वे अपना साक्ष्य पेश कर सकते हैं। आगे कहा गया है, अगर ऐसा कोई आवेदन दायर किया जाता है, तो हम आयोग से इस पर विचार करने और उस पर उचित आदेश पारित करने का अनुरोध करते हैं। शीर्ष अदालत ने आयोग से शशिकला को जांच के उचित चरण में सबूत पेश करने की अनुमति देने को भी कहा।

मद्रास उच्च न्यायालय ने चार अप्रैल, 2019 को जयललिता की मौत की जांच के लिए गठित एक जांच आयोग पर अपोलो अस्पताल की आपत्तियों को खारिज कर दिया था, जो उन्हें दिए गए उपचार के पहलुओं को देख रही थी।

अन्नाद्रमुक के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने पांच दिसंबर, 2016 को अपोलो अस्पताल में जयललिता की मौत की परिस्थितियों की जांच के लिए जांच आयोग का गठन किया था। सरकार ने विभिन्न लोगों द्वारा व्यक्त किए गए संदेह का हवाला देते हुए अन्नाद्रमुक सुप्रीमो की मृत्यु के लिए परिस्थितियों की जांच के लिए जांच आयोग का गठन किया था। बता दें कि 22 सितंबर, 2016 को जयललिता को अस्पताल में भर्ती कराया गया था और उपचार के दौरान उनकी मृत्यु हो गई थी।

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की मौत पर तथ्यों को इकट्ठा करने के लिए गठित जांच आयोग की मदद के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), नई दिल्ली के निदेशक को डॉक्टरों और विशेषज्ञों का एक पैनल बनाने के लिए कहा। तमिलनाडु सरकार ने 25 सितंबर, 2017 को मद्रास उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए अरुमुघस्वामी की अध्यक्षता में जांच आयोग का गठन किया था।

न्यायमूर्ति एसए नजीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने एम्स, नई दिल्ली के निदेशक को जयललिता की बीमारियों के इलाज के क्षेत्र से जुड़े डॉक्टरों और विशेषज्ञों के एक पैनल को नामित करने के लिए कहा। कोर्ट ने कहा कि “हमारा यह भी विचार है कि मामले के निपटारे में आयोग की सहायता के लिए एक मेडिकल बोर्ड का गठन करना उचित है।”

पीठ ने कहा, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि इस प्रकार गठित मेडिकल बोर्ड को कार्यवाही के पूरे रिकॉर्ड आयोग को सौंपने होंगे। इस प्रकार गठित मेडिकल बोर्ड को आयोग की सभी आगे की कार्यवाही में भाग लेने और रिपोर्ट की एक प्रति प्रस्तुत करने की अनुमति होगी।”

शीर्ष अदालत मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली अपोलो अस्पताल द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि आयोग उपलब्ध मेडिकल रिकॉर्ड के आधार पर अस्पताल द्वारा दिए गए उपचार की उपयुक्तता, पर्याप्तता या अपर्याप्तता पर विचार कर सकता है। उच्च न्यायालय ने यह भी माना था कि वह जांच आयोग की नियुक्ति में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है और सरकार को बोर्ड में पेशेवरों या विशेषज्ञों को शामिल करने का निर्देश देता है ताकि न्यायमूर्ति रुमुघस्वामी की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच आयोग की सहायता की जा सके।

शीर्ष अदालत ने मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए कहा, हमारा विचार है कि अपीलकर्ता-अस्पताल और प्रतिवादी वीके शशिकला द्वारा दिए गए आवेदन पर गौर करते हुए आयोग के रिकॉर्ड में उपलब्ध दस्तावेजों, बयानों और अभिलेखों को पेश किया जाना उचित होगा।

पीठ ने अपोलो को किसी भी गवाह या व्यक्ति से जिरह करने की अनुमति मांगने के लिए एक उपयुक्त आवेदन करने की भी अनुमति दी। इसमें वे गवाह भी शामिल हैं, जिनके साक्ष्य बंद कर दिए गए हैं और कहा गया कि वे अपना साक्ष्य पेश कर सकते हैं। आगे कहा गया है, अगर ऐसा कोई आवेदन दायर किया जाता है, तो हम आयोग से इस पर विचार करने और उस पर उचित आदेश पारित करने का अनुरोध करते हैं। शीर्ष अदालत ने आयोग से शशिकला को जांच के उचित चरण में सबूत पेश करने की अनुमति देने को भी कहा।

मद्रास उच्च न्यायालय ने चार अप्रैल, 2019 को जयललिता की मौत की जांच के लिए गठित एक जांच आयोग पर अपोलो अस्पताल की आपत्तियों को खारिज कर दिया था, जो उन्हें दिए गए उपचार के पहलुओं को देख रही थी।

अन्नाद्रमुक के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने पांच दिसंबर, 2016 को अपोलो अस्पताल में जयललिता की मौत की परिस्थितियों की जांच के लिए जांच आयोग का गठन किया था। सरकार ने विभिन्न लोगों द्वारा व्यक्त किए गए संदेह का हवाला देते हुए अन्नाद्रमुक सुप्रीमो की मृत्यु के लिए परिस्थितियों की जांच के लिए जांच आयोग का गठन किया था। बता दें कि 22 सितंबर, 2016 को जयललिता को अस्पताल में भर्ती कराया गया था और उपचार के दौरान उनकी मृत्यु हो गई थी।

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