पीटीआई, नई दिल्ली
Published by: दीप्ति मिश्रा
Updated Sun, 25 Jul 2021 11:18 AM IST
सार
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्ययन के मुताबिक, देश में 10 साल की उम्र के 37.8 फीसदी बच्चों का फेसबुक अकाउंट है। इसी आयुवर्ग के 24.3 फीसदी बच्चे इंस्टाग्राम पर सक्रिय हैं। एनसीपीसीआर का कहना है कि यह विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म द्वारा निर्धारित मानदंडों के विपरीत है।
प्रतीकात्मक तस्वीर
– फोटो : फाइल, अमर उजाला
कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन और ऑनलाइन कक्षाएं के बीच स्कूल जाने वाले बच्चों के स्मार्टफोन और इंटरनेट के यूज को लेकर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) एक अध्ययन किया है। इसमें पता चला कि देश में 10 साल से कम उम्र के बच्चे सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्ययन के मुताबिक, देश में 10 साल की उम्र के 37.8 फीसदी बच्चों का फेसबुक अकाउंट है। इसी आयुवर्ग के 24.3 फीसदी बच्चे इंस्टाग्राम पर सक्रिय हैं। एनसीपीसीआर का कहना है कि यह विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म द्वारा निर्धारित मानदंडों के विपरीत है।
अकाउंट बनाने के लिए इतनी है उम्र की सीमा
बता दें कि फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अकाउंट खोलने के लिए न्यूनतम आयु 13 साल निर्धारित है। मोबाइल फोन और दूसरे डिवाइस के इस्तेमाल का बच्चों पर होने वाले असर को लेकर एनसीपीसीआर ने यह अध्ययन करवाया है।
एनसीपीसीआर ने बताया, ‘उसके अध्ययन में पाया गया है कि 10 साल की उम्र के बहुत ज्यादा बच्चे सोशल मीडिया पर मौजूद हैं। 10 साल की उम्र के करीब 37.8 फीसदी बच्चों का फेसबुक अकाउंट है तथा इसी आयुवर्ग के 24.3 फीसदी बच्चे इंस्टाग्राम पर सक्रिय हैं। एनसीपीसीआर के इस अध्ययन में एक दिलचस्प बात यह सामने आई है कि ज्यादातर बच्चों की अपने माता-पिता के मोबाइल फोन के जरिए सोशल मीडिया और इंटरनेट तक पहुंच है। बता दें कि इस अध्ययन में कुल 5,811 लोग प्रतिभागी शामिल थे। इनमें 3,491 बच्चे, 1534 अभिभावक, 786 शिक्षक और 60 स्कूल थे
बच्चों के लिए नहीं है अच्छा कंटेंट
कोरोना महामारी के दौरान आए सर्वे में कहा गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कई तरह का कंटेंट होता है, जिनमें से बहुत सारे कंटेंट बच्चों के लिए न तो उपयुक्त होते हैं और ना ही उनके अनुकूल होते हैं। इनमें से कुछ कंटेंट हिंसक या अश्लील से लेकर ऑनलाइन दुर्व्यवहार और बच्चों को डराने-धमकाने से संबंधित भी हो सकते हैं। इसलिए, इस संबंध में, उचित निरीक्षण और कड़े नियमों की आवश्यकता है।
महामारी का पड़ा नकारात्मक प्रभाव
अध्ययन के मुताबिक, जहां 29.7 फीसदी बच्चों को लगता है कि महामारी का बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। वहीं 43.7 फीसदी का मानना है कि इससे उनकी शिक्षा पर बहुत कम नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि यह स्पष्ट है कि सभी आयु वर्ग के छात्रों को लगता है कि महामारी के कारण उनकी शिक्षा प्रभावित हुई है और कहीं ना कहीं ऑनलाइन लर्निंग काफी अच्छी नहीं हुई है।
विस्तार
कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन और ऑनलाइन कक्षाएं के बीच स्कूल जाने वाले बच्चों के स्मार्टफोन और इंटरनेट के यूज को लेकर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) एक अध्ययन किया है। इसमें पता चला कि देश में 10 साल से कम उम्र के बच्चे सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं।
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्ययन के मुताबिक, देश में 10 साल की उम्र के 37.8 फीसदी बच्चों का फेसबुक अकाउंट है। इसी आयुवर्ग के 24.3 फीसदी बच्चे इंस्टाग्राम पर सक्रिय हैं। एनसीपीसीआर का कहना है कि यह विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म द्वारा निर्धारित मानदंडों के विपरीत है।
अकाउंट बनाने के लिए इतनी है उम्र की सीमा
बता दें कि फेसबुक और इंस्टाग्राम पर अकाउंट खोलने के लिए न्यूनतम आयु 13 साल निर्धारित है। मोबाइल फोन और दूसरे डिवाइस के इस्तेमाल का बच्चों पर होने वाले असर को लेकर एनसीपीसीआर ने यह अध्ययन करवाया है।
ऐसे बनाते हैं सोशल मीडिया तक पहुंच
एनसीपीसीआर ने बताया, ‘उसके अध्ययन में पाया गया है कि 10 साल की उम्र के बहुत ज्यादा बच्चे सोशल मीडिया पर मौजूद हैं। 10 साल की उम्र के करीब 37.8 फीसदी बच्चों का फेसबुक अकाउंट है तथा इसी आयुवर्ग के 24.3 फीसदी बच्चे इंस्टाग्राम पर सक्रिय हैं। एनसीपीसीआर के इस अध्ययन में एक दिलचस्प बात यह सामने आई है कि ज्यादातर बच्चों की अपने माता-पिता के मोबाइल फोन के जरिए सोशल मीडिया और इंटरनेट तक पहुंच है। बता दें कि इस अध्ययन में कुल 5,811 लोग प्रतिभागी शामिल थे। इनमें 3,491 बच्चे, 1534 अभिभावक, 786 शिक्षक और 60 स्कूल थे
बच्चों के लिए नहीं है अच्छा कंटेंट
कोरोना महामारी के दौरान आए सर्वे में कहा गया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कई तरह का कंटेंट होता है, जिनमें से बहुत सारे कंटेंट बच्चों के लिए न तो उपयुक्त होते हैं और ना ही उनके अनुकूल होते हैं। इनमें से कुछ कंटेंट हिंसक या अश्लील से लेकर ऑनलाइन दुर्व्यवहार और बच्चों को डराने-धमकाने से संबंधित भी हो सकते हैं। इसलिए, इस संबंध में, उचित निरीक्षण और कड़े नियमों की आवश्यकता है।
महामारी का पड़ा नकारात्मक प्रभाव
अध्ययन के मुताबिक, जहां 29.7 फीसदी बच्चों को लगता है कि महामारी का बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। वहीं 43.7 फीसदी का मानना है कि इससे उनकी शिक्षा पर बहुत कम नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि यह स्पष्ट है कि सभी आयु वर्ग के छात्रों को लगता है कि महामारी के कारण उनकी शिक्षा प्रभावित हुई है और कहीं ना कहीं ऑनलाइन लर्निंग काफी अच्छी नहीं हुई है।
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