अमर उजाला रिसर्च डेस्क, नई दिल्ली।
Published by: देव कश्यप
Updated Sun, 30 Jan 2022 05:40 AM IST
सार
आमतौर पर श्वसन पथ में बिना कोई नुकसान पहुंचाए छिपे रहने वाला यह बैक्टीरिया मौका पाकर अपना व्यवहार बदल लेता है और निमोनिया व कान में संक्रमण पैदा कर देता है। इससे भी खतरनाक बात यह है कि ये बैक्टीरिया अस्थमा और ब्रोंकाइटिस की स्थिति को जानलेवा बना देता है।
फेफड़ों में संक्रमण (सांकेतिक तस्वीर)
– फोटो : सोशल मीडिया
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विस्तार
क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इस बैक्टीरिया को मारने का तरीका खोज लिया है। शोध से जुड़े एसोसिएट प्रोफेसर अलरिके कैप्लर बताते हैं कि आमतौर पर श्वसन पथ में बिना कोई नुकसान पहुंचाए छिपे रहने वाला यह बैक्टीरिया मौका पाकर अपना व्यवहार बदल लेता है और निमोनिया व कान में संक्रमण पैदा कर देता है। इससे भी खतरनाक बात यह है कि ये बैक्टीरिया अस्थमा और ब्रोंकाइटिस की स्थिति को जानलेवा बना देता है। यहां तक कि इसकी वजह से कोविड के कुछ मरीज बहुत धीमी गति से ठीक हो पाते हैं।
करीब सौ फीसदी कारगर है मारने का तरीका
डॉ. कैप्लर बताते हैं कि उन्होंने शोध में पाया कि यह बैक्टीरिया अपने पोषण और अस्तित्व के लिए जीवाणु कोशिका झिल्ली में एक विशेष प्रोटीन ‘एलएलडीडी’ पर बहुत अधिक निर्भर रहता है। अगर एलएलडीडी प्रोटीन को निष्क्रिय कर दिया जाए तो बैक्टीरिया भूखा रहकर खत्म होने लगेगा। शोध के दौरान ऐसा करने पर 99.9 फीसदी बैक्टीरिया खत्म हो गया था।
बच पाएगी लाखों लोगों की जान
शोधकर्ता जेनिफर होस्मर कहती हैं कि यह शोध गंभीर श्वसन संक्रमण वाले लोगों के लिए नए उपचार की दिशा में महत्वपूर्ण पहला कदम है। इसकी मदद से भविष्य में हेमोफिलस सहित श्वसन पथ में अन्य रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया के इलाज और उन्मूलन के रास्ते खोजे जाएंगे, जिससे दुनियाभर में लाखों लोगों को श्वसन रोगों और संक्रमणों का इलाज मिल पाएगा।
प्रतिरक्षण प्रणाली कर देती है अनदेखा
शोध में पता चला कि असल में बैक्टीरिया ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए ग्लूकोज के उपयोग के लिए लैक्टेट जैसे अपशिष्ट उत्पादों का उपयोग करते हैं, जो मानव कोशिकाएं बड़ी मात्रा में उत्पादन करती हैं। इस तरह से कह सकते हैं कि हीमोफिल्स मानव शरीर के खिलाफ इसके कोशकीय अपशिष्ट का इस्तेमाल करते हैं, जाहिर है हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली इसे अनदेखा कर देती है।