परीक्षित निर्भय, नई दिल्ली
Updated Sat, 07 Nov 2020 07:22 AM IST
कोरोना की जांच के लिए सैंपल लेता स्वास्थ्य कर्मी।
– फोटो : अमर उजाला
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कोरोना वायरस को लेकर जहां संक्रमित मरीजों की संख्या में कमी आ रही है। वहीं इस संक्रमण से मरने वालों में भी भारी कमी दिखाई दे रही है। अब स्थिति यह है कि बीते 6 महीने में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या आधी हुई है। मई से लेकर अब तक मृत्यु दर में 50 की कमी दर्ज की गई है।
बेहतर रणनीति के चलते मई से लेकर नवंबर के बीच आया बदलाव
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, बेहतर चिकित्सीय रणनीति और समय रहते निगरानी की बदौलत भारत एक समय बाद मौतों को नियंत्रण करने में कामयाब रहा है। हालांकि दुर्भाग्य है कि अभी भी रोजाना सैकड़ों की तादाद में लोगों की जान जा रही है। इसे और भी ज्यादा नियंत्रण में लाने के लिए राज्यों को जरूरी कदम उठाने की सलाह दी जा रही है। इस पूरी लड़ाई में डॉक्टर अन्य कर्मचारियों की कमी भी काफी दिक्कत भरी रही। ज्यादातर अस्पताल में पर्याप्त स्टाफ न होने की वजह से तैनात कर्मचारियों को 16 से 18 घंटे तक की ड्यूटी देनी पड़ी। कई जगह पर एक एक कर्मचारी को 24 घंटे तक ड्यूटी पर रहना पड़ा।
इलाज को लेकर स्थिति हुई स्पष्ट
दिल्ली एम्स के डॉक्टर अंजन त्रिखा का कहना है कि कोरोना महामारी आने के बाद ज्यादा जानकारी नहीं थी। उस वक्त मरीजों को उपचार देना काफी चुनौती बना हुआ था लेकिन इसके बाद अध्ययन और अनुभव मिलने लगे। इससे पहले स्वाइन फ्लू, सोर्स और मर्स जैसे संक्रमण ओं का अनुभव भी काम आया और उपचार प्रक्रिया में बदलाव करते चले गए अब काफी हद तक कोरोना संक्रमित मरीजों के उपचार को लेकर जानकारी है। अब इतना तक पता चल चुका है कि मरीजों को कौन सी दवा कब और कैसे देनी है? किस मरीज को किस तरह से प्लाज्मा दी जा सकती है?
कोरोना वायरस को लेकर जहां संक्रमित मरीजों की संख्या में कमी आ रही है। वहीं इस संक्रमण से मरने वालों में भी भारी कमी दिखाई दे रही है। अब स्थिति यह है कि बीते 6 महीने में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या आधी हुई है। मई से लेकर अब तक मृत्यु दर में 50 की कमी दर्ज की गई है।
बेहतर रणनीति के चलते मई से लेकर नवंबर के बीच आया बदलाव
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, बेहतर चिकित्सीय रणनीति और समय रहते निगरानी की बदौलत भारत एक समय बाद मौतों को नियंत्रण करने में कामयाब रहा है। हालांकि दुर्भाग्य है कि अभी भी रोजाना सैकड़ों की तादाद में लोगों की जान जा रही है। इसे और भी ज्यादा नियंत्रण में लाने के लिए राज्यों को जरूरी कदम उठाने की सलाह दी जा रही है। इस पूरी लड़ाई में डॉक्टर अन्य कर्मचारियों की कमी भी काफी दिक्कत भरी रही। ज्यादातर अस्पताल में पर्याप्त स्टाफ न होने की वजह से तैनात कर्मचारियों को 16 से 18 घंटे तक की ड्यूटी देनी पड़ी। कई जगह पर एक एक कर्मचारी को 24 घंटे तक ड्यूटी पर रहना पड़ा।
इलाज को लेकर स्थिति हुई स्पष्ट
दिल्ली एम्स के डॉक्टर अंजन त्रिखा का कहना है कि कोरोना महामारी आने के बाद ज्यादा जानकारी नहीं थी। उस वक्त मरीजों को उपचार देना काफी चुनौती बना हुआ था लेकिन इसके बाद अध्ययन और अनुभव मिलने लगे। इससे पहले स्वाइन फ्लू, सोर्स और मर्स जैसे संक्रमण ओं का अनुभव भी काम आया और उपचार प्रक्रिया में बदलाव करते चले गए अब काफी हद तक कोरोना संक्रमित मरीजों के उपचार को लेकर जानकारी है। अब इतना तक पता चल चुका है कि मरीजों को कौन सी दवा कब और कैसे देनी है? किस मरीज को किस तरह से प्लाज्मा दी जा सकती है?
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