सार
अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी के प्रावधानों के मुताबिक, ओलंपिक में टॉप-3 विजेता खिलाड़ियों को गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल से नवाजा जाता है। वहीं, टॉप-8 खिलाड़ियों को डिप्लोमा दिया जाता है।
ओलंपिक में जीतने वाले खिलाड़ियों को सिर्फ पदक और सर्टिफिकेट ही दिया जाता है।
– फोटो : अमर उजाला
जापान के टोक्यो में इस साल हुए ओलंपिक और पैरालंपिक गेम्स में भारतीय दल ने अभूतपूर्व प्रदर्शन किया। टीम को ओलंपिक में एक गोल्ड समेत सात मेडल्स मिले, जबकि पैरालंपिक टीम ने पिछले सारे रिकॉर्ड्स तोड़ते हुए 19 मेडल हासिल किए। इनमें पिछले 53 साल के कुल मेडल्स से भी ज्यादा गोल्ड (5), सिल्वर (8) और ब्रॉन्ज (6) शामिल रहे। मेडल्स के लिए इतना पसीना बहाने पर जहां केंद्र और राज्य सरकार के साथ कई संस्थानों ने भी खिलाड़ियों को इनाम देने का एलान किया। इस बीच कई लोगों के मन में यह सवाल भी था कि आखिर ओलंपिक गेम्स के आयोजनकर्ता मेडल जीतने वाले और गेम्स में हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों को क्या देता है?
गौरतलब है कि टोक्यो ओलंपिक गेम्स में करीब 11 हजार एथलीट्स ने हिस्सा लिया, जबकि पैरालंपिक में 4 हजार एथलीट्स पहुंचे। लेकिन अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ के नियमों के मुताबिक, गेम्स में हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों के साथ-साथ मेडल विजेताओं को भी कोई इनामी राशि देने का प्रावधान नहीं है। टॉप-3 परफॉर्मर्स को आईओसी की तरफ से मेडल और सर्टिफिकेट तो मिलता है, लेकिन कोई रकम नहीं दी जाती। वहीं, टॉप-8 खिलाड़ियों को सिर्फ डिप्लोमा दिया जाता है। यानी हर चार साल में होने वाले इस टूर्नामेंट के लिए खिलाड़ी जमकर पसीना बहाते हैं, लेकिन कई इवेंट्स में उनका खेल दिखाकर पैसे कमाने वाले आयोजनकर्ता और आईओसी उन्हें कमाई से एक ढेला भी नहीं देते।
न्यूज एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस (एपी) के अनुमान के मुताबिक, इस बार टिकटों की बिक्री न होने की वजह से आयोजनकर्ताओं को खासा नुकसान भी हुआ है। हालांकि, इसके बावजूद अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ ने टेलीविजन और सैटेलाइट राइट्स बेचकर करीब 3 से 4 अरब डॉलर की कमाई की है। अगर अमेरिकी ब्रॉडकास्टर्स की बात करें तो 2021 से लेकर 2032 तक होने वाले गेम्स के लिए एनबीसी नेटवर्क ने 7.65 अरब डॉलर (करीब 56 हजार 201 करोड़ रुपए) चुकाए हैं। यानी सालाना के 14 करोड़ रुपए से भी ज्यादा।
वहीं, भारत में सिर्फ 2020 के ओलंपिक ब्रॉडकास्ट के लिए सोनी नेटवर्क को 1.2 करोड़ डॉलर्स (करीब 88 करोड़ रुपए) चुकाने पड़े। हालांकि, 2016 में स्टार स्पोर्ट्स ने रियो ओलंपिक के अधिकारों के लिए 2 करोड़ डॉलर (तब करीब 120 करोड़ रुपए) चुकाए थे।
आधुनिक ओलंपिक की शुरुआत करने वाले पियरे बैरन डी कूबर्टिन पर अंग्रेजी स्कूलों का काफी प्रभाव था। यहां पढ़ने वाले अधिकतर लोग अभिजात वर्ग से आने वाले थे, जहां खेलों को जीवन और शिक्षा का हिस्सा करार दिया जाता था। इसलिए जब कूबर्टिन ने ओलंपिक की शुरुआत कराई तो इससे इनामी राशि या आर्थिक मदद को दूर रखने की कोशिश की। इतना ही नहीं कमाई के लिए खेलने वाले प्रोफेशनल्स के भी ओलंपिक में हिस्सा लेने पर पाबंदी थी। ओलंपिक को सिर्फ अनुभवहीन या अव्यवसायी खिलाड़ियों के लिए ही खोला गया था। लेकिन 1990 के बाद ओलंपिक गेम्स में प्रोफेशनल खिलाड़ियों को भी मौके दिए जाने लगे।
विस्तार
जापान के टोक्यो में इस साल हुए ओलंपिक और पैरालंपिक गेम्स में भारतीय दल ने अभूतपूर्व प्रदर्शन किया। टीम को ओलंपिक में एक गोल्ड समेत सात मेडल्स मिले, जबकि पैरालंपिक टीम ने पिछले सारे रिकॉर्ड्स तोड़ते हुए 19 मेडल हासिल किए। इनमें पिछले 53 साल के कुल मेडल्स से भी ज्यादा गोल्ड (5), सिल्वर (8) और ब्रॉन्ज (6) शामिल रहे। मेडल्स के लिए इतना पसीना बहाने पर जहां केंद्र और राज्य सरकार के साथ कई संस्थानों ने भी खिलाड़ियों को इनाम देने का एलान किया। इस बीच कई लोगों के मन में यह सवाल भी था कि आखिर ओलंपिक गेम्स के आयोजनकर्ता मेडल जीतने वाले और गेम्स में हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों को क्या देता है?
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करीब 15 हजार एथलीट्स ने लिया था हिस्सा
गौरतलब है कि टोक्यो ओलंपिक गेम्स में करीब 11 हजार एथलीट्स ने हिस्सा लिया, जबकि पैरालंपिक में 4 हजार एथलीट्स पहुंचे। लेकिन अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ के नियमों के मुताबिक, गेम्स में हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों के साथ-साथ मेडल विजेताओं को भी कोई इनामी राशि देने का प्रावधान नहीं है। टॉप-3 परफॉर्मर्स को आईओसी की तरफ से मेडल और सर्टिफिकेट तो मिलता है, लेकिन कोई रकम नहीं दी जाती। वहीं, टॉप-8 खिलाड़ियों को सिर्फ डिप्लोमा दिया जाता है। यानी हर चार साल में होने वाले इस टूर्नामेंट के लिए खिलाड़ी जमकर पसीना बहाते हैं, लेकिन कई इवेंट्स में उनका खेल दिखाकर पैसे कमाने वाले आयोजनकर्ता और आईओसी उन्हें कमाई से एक ढेला भी नहीं देते।
कहां-कहां से होती है आईओसी की कमाई?
न्यूज एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस (एपी) के अनुमान के मुताबिक, इस बार टिकटों की बिक्री न होने की वजह से आयोजनकर्ताओं को खासा नुकसान भी हुआ है। हालांकि, इसके बावजूद अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ ने टेलीविजन और सैटेलाइट राइट्स बेचकर करीब 3 से 4 अरब डॉलर की कमाई की है। अगर अमेरिकी ब्रॉडकास्टर्स की बात करें तो 2021 से लेकर 2032 तक होने वाले गेम्स के लिए एनबीसी नेटवर्क ने 7.65 अरब डॉलर (करीब 56 हजार 201 करोड़ रुपए) चुकाए हैं। यानी सालाना के 14 करोड़ रुपए से भी ज्यादा।
वहीं, भारत में सिर्फ 2020 के ओलंपिक ब्रॉडकास्ट के लिए सोनी नेटवर्क को 1.2 करोड़ डॉलर्स (करीब 88 करोड़ रुपए) चुकाने पड़े। हालांकि, 2016 में स्टार स्पोर्ट्स ने रियो ओलंपिक के अधिकारों के लिए 2 करोड़ डॉलर (तब करीब 120 करोड़ रुपए) चुकाए थे।
ओलंपिक में क्यों नहीं है खिलाड़ियों को इनामी राशि देने का प्रावधान?
आधुनिक ओलंपिक की शुरुआत करने वाले पियरे बैरन डी कूबर्टिन पर अंग्रेजी स्कूलों का काफी प्रभाव था। यहां पढ़ने वाले अधिकतर लोग अभिजात वर्ग से आने वाले थे, जहां खेलों को जीवन और शिक्षा का हिस्सा करार दिया जाता था। इसलिए जब कूबर्टिन ने ओलंपिक की शुरुआत कराई तो इससे इनामी राशि या आर्थिक मदद को दूर रखने की कोशिश की। इतना ही नहीं कमाई के लिए खेलने वाले प्रोफेशनल्स के भी ओलंपिक में हिस्सा लेने पर पाबंदी थी। ओलंपिक को सिर्फ अनुभवहीन या अव्यवसायी खिलाड़ियों के लिए ही खोला गया था। लेकिन 1990 के बाद ओलंपिक गेम्स में प्रोफेशनल खिलाड़ियों को भी मौके दिए जाने लगे।
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