वियतनाम, हनोई, कोरोना वायरस
– फोटो : Agency (File Photo)
ओमिक्रॉन ने कोरोना के म्यूटेशन, टीकाकरण और नए वायरस स्वरूपों के खिलाफ प्रतिरक्षा को लेकर व्यापक बहस छेड़ दी है। विशेषज्ञों का कहना है, बी.1.1.529 विकासशील देशों में कम टीकाकरण का नतीजा है। दक्षिण अफ्रीका में तेज प्रसार ने इस ओर इशारा किया है। कुछ अन्य विशेषज्ञों का कहना है, मौजूदा टीकों को ओमिक्रॉन के खिलाफ निष्प्रभावी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इसके कुछ बदलाव पुराने ही हैं। टीकों में सुधार कर इसके खिलाफ सक्षम बनाया जा सकता है।
पीटर डोहर्टी इंस्टीट्यूट फॉर इन्फेक्शन एंड इम्युनिटी के सीनियर फेलो जेनिफर जूनो और मेलबर्न यूनिवर्सिटी में माइक्रोबायोलॉजी विभाग में सीनियर रिसर्च फेलो एडम व्हिटली के वैज्ञानिक दृष्टिकोण…
चिंता : कैसे पनपते हैं ऐसे स्वरूप
जब वायरस एक से दूसरे इनसान में फैलता है तो म्यूटेशन करते हुए कुछ स्वरूप पूर्ववर्तियों के मुकाबले कोशिकाओं में प्रवेश और अपनी संख्या बढ़ाने की क्षमता बेहतर कर लेते हैं। ऐसे में वह स्वरूप मुख्य वायरस बन जाता है, जो संबंधित आबादी में ज्यादा तेजी से फैल रहा होता है। 2019 में वुहान से निकला मूल सार्स-कोव2 वायरस की जगह बाद में डी614जी स्वरूप ने ले ली थी। फिर अल्फा और डेल्टा स्वरूप प्रचलित हुए। इसी क्रम में अब ओमिक्रॉन का तेजी से प्रसार हुआ है।
इसलिए अंदेशा…
वैज्ञानिकों के अनुसार, जब भी कोई शख्स सार्स-कोव2 से संक्रमित होता है तो संभावना होती हैं कि वायरस ज्यादा ताकतवर स्वरूप लेकर दूसरों में फैलेगा।
- कम टीकाकरण के चलते एक ही समुदाय में महामारी फैलने के चलते नए स्वरूपों के पैदा होने की आशंका ज्यादा होती है।
- टीकाकरण बढ़ने पर वही वायरस स्वरूप सफलतापूर्वक संक्रमण बढ़ा पाता है, जो आंशिक तौर पर टीकों से बचने में कामयाब रहता है। लिहाजा वैश्विक निगरानी के साथ ऐसे टीके बनाने पड़ते हैं, जो दीर्घावधि तक वायरस
- पर काबू रख सकें।
राहत : कुछ बदलाव पुराने बिलकुल बेअसर नहीं टीके
- प्रतिरक्षा को चकमा देने में सक्षम
- मौजूदा टीके कोरोना के डेल्टा समेत कई स्वरूपों के खिलाफ काफी प्रभावी हैं, क्योंकि वैक्सीन वायरस के स्पाइक प्रोटीन को भेदती है। लेकिन चिंताजनक बात यह है कि बीटा, गामा, लेम्डा और म्यू जैसे स्वरूप टीकों को चकमा देने में सफल रहे हैं। यानी हमारा प्रतिरक्षा तंत्र वायरस स्वरूप को पहचानने में नाकाम रहा।
- हालांकि, वायरस के प्रतिरक्षा से बचने के मामले बेहद सीमित हैं। इनका वैश्विक प्रभाव भी नहीं पड़ा। मसलन, टीके को चकमा देने वाला अग्रणी स्वरूप बीटा असल में डेल्टा जितना नहीं फैल सका।
पहले सीमित था ज्यादा म्यूटेशन वाला स्वरूप
वायरस के स्पाइक प्रोटीन में 30 से भी ज्यादा बदलाव के बाद ओमिक्रॉन के रूप में मजबूत स्वरूप सामने आया है, जो प्रतिरक्षा से बचने में कामयाब हो सकता है। ऐसे में ओमिक्रॉन के तेज प्रसार और टीके का प्रभाव घटाने का खतरा बढ़ा है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं, द.अफ्रीका समेत गरीब देशों में टीकों की कम आपूर्ति और कमजोर टीकाकरण के चलते इस स्वरूप का जन्म हुआ है। हालांकि, राहत की बात यह है कि अब तक इतने ज्यादा म्यूटेशन वाला स्वरूप ज्यादा प्रसारित नहीं हुआ है।
हाइब्रिड प्रतिरक्षा से बचाव
- ओमिक्रॉन पर टीकों के कम प्रभाव की खबरों ने चिंताएं जरूर बढ़ा दी हैं लेकिन कुछ वैज्ञानिकों की मानें तो हाइब्रिड (संकर) प्रतिरक्षा वाले लोगों को इस स्वरूप से ज्यादा खतरा नहीं है।
- न्यूयॉर्क में रॉकफेलर यूनिवर्सिटी के प्रतिरक्षाविद माइकल नजेनबर्ग के मुताबिक, कोरोना से ठीक होकर खुराक लेने वालों में हाइब्रिड इम्यूनिटी का निर्माण होता है, जो प्रतिरक्षा तंत्र को टीका लगवाने वालों के मुकाबले वायरस के विभिन्न स्वरूपों को पहचाने में ज्यादा सक्षम बनाती है। यही वजह है, ऐसे लोगों मे मौजूद एंटीबॉडी ओमिक्रॉन से उनका बचाव अच्छे ढंग से कर सकती है।
बीटा और डेल्टा का मिश्रण
ओमिक्रॉन के म्यूटेशन देख वैज्ञानिकों ने मोटे तौर पर साफ कर दिया कि मौजूदा टीके कम प्रभावी रहेंगे। द. अफ्रीका में संक्रामक रोग संस्थान में वायरसविद पेनी मूर के मुताबिक, ओमिक्रॉन में बीटा स्वरूप की टीकों से बचने और डेल्टा के तेज प्रसार की क्षमता समाहित है।
स्पाइक प्रोटीन में डेल्टा से ढाई बीटा से चार गुना म्यूटेशन
इसके स्पाइक प्रोटीन में 26 विशेष म्यूटेशन मिले हैं, जबकि डेल्टा में यह संख्या 10 व बीटा में छह ही थी। इसलिए कुछ शोधकर्ता जोर दे रहे हैं कि हमारा प्रतिरक्षा तंत्र इस स्वरूप को पहचानकर रोकने में ज्यादा सफल नहीं हो पाएगा।
ओमिक्रॉन के खिलाफ फौरन प्रयोगशालाओं में जुटें वैज्ञानिक
विकासवादी जीवविज्ञानी डॉ जेसी ब्लूम का कहना है, पहले के मुकाबले ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। संभवतः कुछ हफ्तों में ज्यादा पुख्ता तौर पर बता पाएंगे कि ओमिक्रॉन किस तरह फैल रहा है? अलग से टीके कितने जरूरी हैं? डरबन में वैज्ञानिक बचाव के लिए फौरन जुट गए हैं। शोधकर्ताओं ने 100 से ज्यादा सैंपल लेकर अध्ययन शुरू कर दिया। टीकों का असर जानने की कवायद भी शुरू हो गई, जिसके दो सप्ताह में नतीजे मिलेंगे।
ओमिक्रॉन ने कोरोना के म्यूटेशन, टीकाकरण और नए वायरस स्वरूपों के खिलाफ प्रतिरक्षा को लेकर व्यापक बहस छेड़ दी है। विशेषज्ञों का कहना है, बी.1.1.529 विकासशील देशों में कम टीकाकरण का नतीजा है। दक्षिण अफ्रीका में तेज प्रसार ने इस ओर इशारा किया है। कुछ अन्य विशेषज्ञों का कहना है, मौजूदा टीकों को ओमिक्रॉन के खिलाफ निष्प्रभावी नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इसके कुछ बदलाव पुराने ही हैं। टीकों में सुधार कर इसके खिलाफ सक्षम बनाया जा सकता है।
पीटर डोहर्टी इंस्टीट्यूट फॉर इन्फेक्शन एंड इम्युनिटी के सीनियर फेलो जेनिफर जूनो और मेलबर्न यूनिवर्सिटी में माइक्रोबायोलॉजी विभाग में सीनियर रिसर्च फेलो एडम व्हिटली के वैज्ञानिक दृष्टिकोण…
चिंता : कैसे पनपते हैं ऐसे स्वरूप
जब वायरस एक से दूसरे इनसान में फैलता है तो म्यूटेशन करते हुए कुछ स्वरूप पूर्ववर्तियों के मुकाबले कोशिकाओं में प्रवेश और अपनी संख्या बढ़ाने की क्षमता बेहतर कर लेते हैं। ऐसे में वह स्वरूप मुख्य वायरस बन जाता है, जो संबंधित आबादी में ज्यादा तेजी से फैल रहा होता है। 2019 में वुहान से निकला मूल सार्स-कोव2 वायरस की जगह बाद में डी614जी स्वरूप ने ले ली थी। फिर अल्फा और डेल्टा स्वरूप प्रचलित हुए। इसी क्रम में अब ओमिक्रॉन का तेजी से प्रसार हुआ है।
इसलिए अंदेशा…
वैज्ञानिकों के अनुसार, जब भी कोई शख्स सार्स-कोव2 से संक्रमित होता है तो संभावना होती हैं कि वायरस ज्यादा ताकतवर स्वरूप लेकर दूसरों में फैलेगा।
- कम टीकाकरण के चलते एक ही समुदाय में महामारी फैलने के चलते नए स्वरूपों के पैदा होने की आशंका ज्यादा होती है।
- टीकाकरण बढ़ने पर वही वायरस स्वरूप सफलतापूर्वक संक्रमण बढ़ा पाता है, जो आंशिक तौर पर टीकों से बचने में कामयाब रहता है। लिहाजा वैश्विक निगरानी के साथ ऐसे टीके बनाने पड़ते हैं, जो दीर्घावधि तक वायरस
- पर काबू रख सकें।
राहत : कुछ बदलाव पुराने बिलकुल बेअसर नहीं टीके
- प्रतिरक्षा को चकमा देने में सक्षम
- मौजूदा टीके कोरोना के डेल्टा समेत कई स्वरूपों के खिलाफ काफी प्रभावी हैं, क्योंकि वैक्सीन वायरस के स्पाइक प्रोटीन को भेदती है। लेकिन चिंताजनक बात यह है कि बीटा, गामा, लेम्डा और म्यू जैसे स्वरूप टीकों को चकमा देने में सफल रहे हैं। यानी हमारा प्रतिरक्षा तंत्र वायरस स्वरूप को पहचानने में नाकाम रहा।
- हालांकि, वायरस के प्रतिरक्षा से बचने के मामले बेहद सीमित हैं। इनका वैश्विक प्रभाव भी नहीं पड़ा। मसलन, टीके को चकमा देने वाला अग्रणी स्वरूप बीटा असल में डेल्टा जितना नहीं फैल सका।
पहले सीमित था ज्यादा म्यूटेशन वाला स्वरूप
वायरस के स्पाइक प्रोटीन में 30 से भी ज्यादा बदलाव के बाद ओमिक्रॉन के रूप में मजबूत स्वरूप सामने आया है, जो प्रतिरक्षा से बचने में कामयाब हो सकता है। ऐसे में ओमिक्रॉन के तेज प्रसार और टीके का प्रभाव घटाने का खतरा बढ़ा है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं, द.अफ्रीका समेत गरीब देशों में टीकों की कम आपूर्ति और कमजोर टीकाकरण के चलते इस स्वरूप का जन्म हुआ है। हालांकि, राहत की बात यह है कि अब तक इतने ज्यादा म्यूटेशन वाला स्वरूप ज्यादा प्रसारित नहीं हुआ है।
हाइब्रिड प्रतिरक्षा से बचाव
- ओमिक्रॉन पर टीकों के कम प्रभाव की खबरों ने चिंताएं जरूर बढ़ा दी हैं लेकिन कुछ वैज्ञानिकों की मानें तो हाइब्रिड (संकर) प्रतिरक्षा वाले लोगों को इस स्वरूप से ज्यादा खतरा नहीं है।
- न्यूयॉर्क में रॉकफेलर यूनिवर्सिटी के प्रतिरक्षाविद माइकल नजेनबर्ग के मुताबिक, कोरोना से ठीक होकर खुराक लेने वालों में हाइब्रिड इम्यूनिटी का निर्माण होता है, जो प्रतिरक्षा तंत्र को टीका लगवाने वालों के मुकाबले वायरस के विभिन्न स्वरूपों को पहचाने में ज्यादा सक्षम बनाती है। यही वजह है, ऐसे लोगों मे मौजूद एंटीबॉडी ओमिक्रॉन से उनका बचाव अच्छे ढंग से कर सकती है।
बीटा और डेल्टा का मिश्रण
ओमिक्रॉन के म्यूटेशन देख वैज्ञानिकों ने मोटे तौर पर साफ कर दिया कि मौजूदा टीके कम प्रभावी रहेंगे। द. अफ्रीका में संक्रामक रोग संस्थान में वायरसविद पेनी मूर के मुताबिक, ओमिक्रॉन में बीटा स्वरूप की टीकों से बचने और डेल्टा के तेज प्रसार की क्षमता समाहित है।
स्पाइक प्रोटीन में डेल्टा से ढाई बीटा से चार गुना म्यूटेशन
इसके स्पाइक प्रोटीन में 26 विशेष म्यूटेशन मिले हैं, जबकि डेल्टा में यह संख्या 10 व बीटा में छह ही थी। इसलिए कुछ शोधकर्ता जोर दे रहे हैं कि हमारा प्रतिरक्षा तंत्र इस स्वरूप को पहचानकर रोकने में ज्यादा सफल नहीं हो पाएगा।
ओमिक्रॉन के खिलाफ फौरन प्रयोगशालाओं में जुटें वैज्ञानिक
विकासवादी जीवविज्ञानी डॉ जेसी ब्लूम का कहना है, पहले के मुकाबले ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। संभवतः कुछ हफ्तों में ज्यादा पुख्ता तौर पर बता पाएंगे कि ओमिक्रॉन किस तरह फैल रहा है? अलग से टीके कितने जरूरी हैं? डरबन में वैज्ञानिक बचाव के लिए फौरन जुट गए हैं। शोधकर्ताओं ने 100 से ज्यादा सैंपल लेकर अध्ययन शुरू कर दिया। टीकों का असर जानने की कवायद भी शुरू हो गई, जिसके दो सप्ताह में नतीजे मिलेंगे।
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