उत्तर प्रदेश स्वयं भी 2007, 2012, 2014, 2017 और 2019 के चुनावों में इसी तरह के संकेत देता रहा है। इस कारण माना जा रहा था कि गैर-भाजपाई सरकार की चाहत करने वाले मतदाता स्वयं ही मजबूत विकल्प देने के लिए सपा के पीछे लामबंद हो सकते हैं। वहीं, मायावती की चुप्पी ने इन चर्चाओं को और ज्यादा बढ़ाने का काम किया। मायावती अब तक के चुनाव में लगभग शांत रही हैं…
उत्तर प्रदेश की चुनावी लड़ाई को पहले दिन से ही ‘भाजपा बनाम सपा’ के बीच देखा जा रहा था। इसके पीछे एक कारण तो यही माना जा रहा था कि अब मतदाता विभिन्न दलों में बंटने की बजाय उस दल को वोट देना ज्यादा पसंद कर रहे हैं जो उनके पसंद की सरकार बनाने में सक्षम हो। सत्ता बरकरार रखनी हो या सत्ता में परिवर्तन करना हो, मतदाताओं का यह ट्रेंड पश्चिम बंगाल सहित हाल ही में संपन्न हुए सभी विधानसभा चुनावों में साफ दिखाई पड़ा है।
उत्तर प्रदेश स्वयं भी 2007, 2012, 2014, 2017 और 2019 के चुनावों में इसी तरह के संकेत देता रहा है। इस कारण माना जा रहा था कि गैर-भाजपाई सरकार की चाहत करने वाले मतदाता स्वयं ही मजबूत विकल्प देने के लिए सपा के पीछे लामबंद हो सकते हैं।
वहीं, मायावती की चुप्पी ने इन चर्चाओं को और ज्यादा बढ़ाने का काम किया। मायावती अब तक के चुनाव में लगभग शांत रही हैं। उनकी इस चुप्पी को इस विधानसभा चुनाव में बसपा की कमजोर ताकत के रूप में देखा जा रहा है। सपा और भाजपा दोनों राजनीतिक दलों के नेताओं ने यह घोषणा करने में देरी नहीं की कि यह लड़ाई उन्हीं दोनों के बीच में है। बसपा, कांग्रेस और एआईएमआईएम को ‘वोट कटवा पार्टी’ के रूप में प्रचारित करने की कोशिश की गई।
क्या चुनाव को त्रिकोणात्मक बनाने की कोशिश है?
लेकिन चौथे चरण के मतदान खत्म होने के समय गृहमंत्री अमित शाह ने बसपा को इस चुनाव की ‘मजबूत ताकत’ बताकर एक नई बहस छेड़ दी। माना जा रहा है कि अमित शाह द्वारा अपने प्रतिद्वंदी दल के नेता की तारीफ अकारण तो नहीं हो सकती। तो अमित शाह के द्वारा मायावती और बसपा की तारीफ के क्या मायने हो सकते हैं?
क्या अमित शाह बसपा को इस चुनाव की तीसरी बड़ी ताकत बताकर यूपी चुनाव को त्रिकोणात्मक बनाने की कोशिश कर रहे हैं? यदि ऐसा है तो शाह ऐसा क्यों चाहेंगे कि यूपी चुनाव त्रिकोणात्मक हो जाए। इससे भाजपा का क्या हित सध सकता है?
मतदाताओं के इकट्ठे होने का दावा
समाजवादी पार्टी के एक नेता ने अमर उजाला से कहा कि यूपी चुनाव शुरू से अब तक ‘भाजपा बनाम सपा’ का रहा है। पश्चिमी यूपी में भी जाट-मुस्लिम-यादव वोटरों ने एकजुट होकर सपा के पक्ष में मतदान किया है तो अब चौथे चरण में किसानों का गुस्सा साइकिल के बैनर तले इकट्ठा हो रहा है। चूंकि भाजपा नेतृत्व ने देख लिया है कि पश्चिमी यूपी में मतदाताओं में विभाजन नहीं हुआ है, वह अब किसी भी कीमत पर चुनाव को त्रिकोणात्मक बनाने की कोशिश कर रहा है, क्योंकि इसी रास्ते उसके लिए पूर्वांचल-अवध में कुछ संभावना बन सकती है।
गैर-जाटव दलित पर फोकस
लेकिन इसका अर्थ केवल यहीं तक सीमित नहीं है। सपा नेता के मुताबिक भाजपा चाहती है कि बसपा को कमजोर समझकर जो गैर-जाटव दलित मतदाता समाजवादी पार्टी की तरफ मुड़ने लगे थे, उनके मन में बसपा को लेकर विश्वास पैदा किया जा सके। जिससे वे सपा की ओर जाने की बजाय बसपा के पास ही रुक जाएं और भाजपा की राह आसान हो सके। हालांकि, इस नेता का दावा है कि दलित मतदाता अब किसी भ्रम में नहीं हैं और वे एक मजबूत सरकार के लिए सपा के साथ खड़े हो रहे हैं।
सपा नेता का दावा है कि 2019 में सपा-बसपा का गठबंधन लोकसभा चुनाव में बड़ा फेरबदल लाने में भले ही नाकाम साबित हुआ, लेकिन उसने एक बड़ा जमीनी बदलाव करने का काम किया है। उसने इन मतदाताओं में यह भरोसा पैदा करने का काम किया है कि यदि बसपा उसके सामाजिक अधिकारों की लड़ाई लड़ने में नाकाम रही, तो सपा इस आंदोलन को आगे बढ़ाएगी। नेता के अनुसार, मतदाताओं का यही भरोसा इस चुनाव में अखिलेश यादव की ताकत बन रहा है। आरोप है कि अमित शाह इसी वर्ग को खींचने के लिए बसपा के मजबूत होने वाला बयान दे रहे हैं।
भाजपा भी इसी वोट बैंक की चाह में
दरअसल, नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय राजनीतिक पारी में गैर-यादव पिछड़ा और गैर-जाटल दलित वोट बैंक ने बड़ी भूमिका निभाई है। माना जाता है कि 2014 और 2019 में भाजपा को मिली शानदार सफलता में इसी वोटर वर्ग की भूमिका सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण रही है। लेकिन कथित तौर पर यह मतदाता अब भाजपा से वापस लौटने के मूड में है, भाजपा चाहती है कि यह वोट बैंक सपा को मजबूती देने की बजाय बसपा के पास वापस जाए जिससे मामला त्रिकोणात्मक बने और उसकी राह आसान हो सके।
हालांकि, भाजपा का दावा है कि जातीय राजनीति करने वाले दलों ने इन वर्गों से वोट लेकर केवल अपनी जातियों और अपने परिवार का हित साधने का काम किया है, जबकि भाजपा ने हर वर्ग, हर जाति और हर धर्म के गरीब मतदाताओं के लिए काम किया है। लिहाजा हर वर्ग में उसके समर्थक मतदाता बन रहे हैं और यही भाजपा की ताकत है।
सत्य को स्वीकार करना सीखें अखिलेश- भाजपा
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ला ने अमर उजाला से कहा कि उनके नेता अमित शाह सत्य की राजनीति करते हैं। सहयोगी दल हों या विपक्षी दल, वे सभी दलों की राजनीतिक हैसियत की सच्चाई को स्वीकार करना भी जानते हैं। चूंकि सभी राजनीतिक विश्लेषक यह जानते हैं कि बसपा कमजोर रहने की स्थिति में भी लगभग हर चुनाव में 20-22 फीसदी वोट शेयर हासिल करती रही है, उसे पूरी तरह नजरअंदाज करना किसी भी तरह सही नहीं होगा और अमित शाह ने अपने साक्षात्कार में इसी सत्य को स्वीकार किया है।
प्रेम शुक्ला ने कहा कि अखिलेश यादव को सत्य और तथ्य को स्वीकार करना सीखना चाहिए। उन्हें यह पता होना चाहिए कि वे जिस बसपा को खारिज करने की कोशिश कर रहे हैं वह अभी भी लोकसभा में उनसे दोगुनी ताकत रखती है। भाजपा नेता ने कहा कि जो अखिलेश यादव 2019 में मायावती के साथ गठबंधन कर अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए प्रयास कर रहे थे, उन्हें अब उसी बसपा को खत्म नहीं समझना चाहिए। उन्हें सभी राजनीतिक दलों और नेताओं का सम्मान करना सीखना चाहिए। भाजपा नेता ने दावा किया कि उनकी पार्टी इस विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ सरकार 300 से ज्यादा सीटें जीतकर एक इतिहास रचेगी।
विस्तार
उत्तर प्रदेश की चुनावी लड़ाई को पहले दिन से ही ‘भाजपा बनाम सपा’ के बीच देखा जा रहा था। इसके पीछे एक कारण तो यही माना जा रहा था कि अब मतदाता विभिन्न दलों में बंटने की बजाय उस दल को वोट देना ज्यादा पसंद कर रहे हैं जो उनके पसंद की सरकार बनाने में सक्षम हो। सत्ता बरकरार रखनी हो या सत्ता में परिवर्तन करना हो, मतदाताओं का यह ट्रेंड पश्चिम बंगाल सहित हाल ही में संपन्न हुए सभी विधानसभा चुनावों में साफ दिखाई पड़ा है।
उत्तर प्रदेश स्वयं भी 2007, 2012, 2014, 2017 और 2019 के चुनावों में इसी तरह के संकेत देता रहा है। इस कारण माना जा रहा था कि गैर-भाजपाई सरकार की चाहत करने वाले मतदाता स्वयं ही मजबूत विकल्प देने के लिए सपा के पीछे लामबंद हो सकते हैं।
वहीं, मायावती की चुप्पी ने इन चर्चाओं को और ज्यादा बढ़ाने का काम किया। मायावती अब तक के चुनाव में लगभग शांत रही हैं। उनकी इस चुप्पी को इस विधानसभा चुनाव में बसपा की कमजोर ताकत के रूप में देखा जा रहा है। सपा और भाजपा दोनों राजनीतिक दलों के नेताओं ने यह घोषणा करने में देरी नहीं की कि यह लड़ाई उन्हीं दोनों के बीच में है। बसपा, कांग्रेस और एआईएमआईएम को ‘वोट कटवा पार्टी’ के रूप में प्रचारित करने की कोशिश की गई।
क्या चुनाव को त्रिकोणात्मक बनाने की कोशिश है?
लेकिन चौथे चरण के मतदान खत्म होने के समय गृहमंत्री अमित शाह ने बसपा को इस चुनाव की ‘मजबूत ताकत’ बताकर एक नई बहस छेड़ दी। माना जा रहा है कि अमित शाह द्वारा अपने प्रतिद्वंदी दल के नेता की तारीफ अकारण तो नहीं हो सकती। तो अमित शाह के द्वारा मायावती और बसपा की तारीफ के क्या मायने हो सकते हैं?
क्या अमित शाह बसपा को इस चुनाव की तीसरी बड़ी ताकत बताकर यूपी चुनाव को त्रिकोणात्मक बनाने की कोशिश कर रहे हैं? यदि ऐसा है तो शाह ऐसा क्यों चाहेंगे कि यूपी चुनाव त्रिकोणात्मक हो जाए। इससे भाजपा का क्या हित सध सकता है?
मतदाताओं के इकट्ठे होने का दावा
समाजवादी पार्टी के एक नेता ने अमर उजाला से कहा कि यूपी चुनाव शुरू से अब तक ‘भाजपा बनाम सपा’ का रहा है। पश्चिमी यूपी में भी जाट-मुस्लिम-यादव वोटरों ने एकजुट होकर सपा के पक्ष में मतदान किया है तो अब चौथे चरण में किसानों का गुस्सा साइकिल के बैनर तले इकट्ठा हो रहा है। चूंकि भाजपा नेतृत्व ने देख लिया है कि पश्चिमी यूपी में मतदाताओं में विभाजन नहीं हुआ है, वह अब किसी भी कीमत पर चुनाव को त्रिकोणात्मक बनाने की कोशिश कर रहा है, क्योंकि इसी रास्ते उसके लिए पूर्वांचल-अवध में कुछ संभावना बन सकती है।
गैर-जाटव दलित पर फोकस
लेकिन इसका अर्थ केवल यहीं तक सीमित नहीं है। सपा नेता के मुताबिक भाजपा चाहती है कि बसपा को कमजोर समझकर जो गैर-जाटव दलित मतदाता समाजवादी पार्टी की तरफ मुड़ने लगे थे, उनके मन में बसपा को लेकर विश्वास पैदा किया जा सके। जिससे वे सपा की ओर जाने की बजाय बसपा के पास ही रुक जाएं और भाजपा की राह आसान हो सके। हालांकि, इस नेता का दावा है कि दलित मतदाता अब किसी भ्रम में नहीं हैं और वे एक मजबूत सरकार के लिए सपा के साथ खड़े हो रहे हैं।
सपा नेता का दावा है कि 2019 में सपा-बसपा का गठबंधन लोकसभा चुनाव में बड़ा फेरबदल लाने में भले ही नाकाम साबित हुआ, लेकिन उसने एक बड़ा जमीनी बदलाव करने का काम किया है। उसने इन मतदाताओं में यह भरोसा पैदा करने का काम किया है कि यदि बसपा उसके सामाजिक अधिकारों की लड़ाई लड़ने में नाकाम रही, तो सपा इस आंदोलन को आगे बढ़ाएगी। नेता के अनुसार, मतदाताओं का यही भरोसा इस चुनाव में अखिलेश यादव की ताकत बन रहा है। आरोप है कि अमित शाह इसी वर्ग को खींचने के लिए बसपा के मजबूत होने वाला बयान दे रहे हैं।
भाजपा भी इसी वोट बैंक की चाह में
दरअसल, नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय राजनीतिक पारी में गैर-यादव पिछड़ा और गैर-जाटल दलित वोट बैंक ने बड़ी भूमिका निभाई है। माना जाता है कि 2014 और 2019 में भाजपा को मिली शानदार सफलता में इसी वोटर वर्ग की भूमिका सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण रही है। लेकिन कथित तौर पर यह मतदाता अब भाजपा से वापस लौटने के मूड में है, भाजपा चाहती है कि यह वोट बैंक सपा को मजबूती देने की बजाय बसपा के पास वापस जाए जिससे मामला त्रिकोणात्मक बने और उसकी राह आसान हो सके।
हालांकि, भाजपा का दावा है कि जातीय राजनीति करने वाले दलों ने इन वर्गों से वोट लेकर केवल अपनी जातियों और अपने परिवार का हित साधने का काम किया है, जबकि भाजपा ने हर वर्ग, हर जाति और हर धर्म के गरीब मतदाताओं के लिए काम किया है। लिहाजा हर वर्ग में उसके समर्थक मतदाता बन रहे हैं और यही भाजपा की ताकत है।
सत्य को स्वीकार करना सीखें अखिलेश- भाजपा
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रेम शुक्ला ने अमर उजाला से कहा कि उनके नेता अमित शाह सत्य की राजनीति करते हैं। सहयोगी दल हों या विपक्षी दल, वे सभी दलों की राजनीतिक हैसियत की सच्चाई को स्वीकार करना भी जानते हैं। चूंकि सभी राजनीतिक विश्लेषक यह जानते हैं कि बसपा कमजोर रहने की स्थिति में भी लगभग हर चुनाव में 20-22 फीसदी वोट शेयर हासिल करती रही है, उसे पूरी तरह नजरअंदाज करना किसी भी तरह सही नहीं होगा और अमित शाह ने अपने साक्षात्कार में इसी सत्य को स्वीकार किया है।
प्रेम शुक्ला ने कहा कि अखिलेश यादव को सत्य और तथ्य को स्वीकार करना सीखना चाहिए। उन्हें यह पता होना चाहिए कि वे जिस बसपा को खारिज करने की कोशिश कर रहे हैं वह अभी भी लोकसभा में उनसे दोगुनी ताकत रखती है। भाजपा नेता ने कहा कि जो अखिलेश यादव 2019 में मायावती के साथ गठबंधन कर अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए प्रयास कर रहे थे, उन्हें अब उसी बसपा को खत्म नहीं समझना चाहिए। उन्हें सभी राजनीतिक दलों और नेताओं का सम्मान करना सीखना चाहिए। भाजपा नेता ने दावा किया कि उनकी पार्टी इस विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ सरकार 300 से ज्यादा सीटें जीतकर एक इतिहास रचेगी।