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इंसानी शरीर में नए अंग की खोज: फेफड़ों को रखेगा दुरुस्त, धूम्रपान संबंधी बीमारियों से बच पाएगी लोगों की जान 

एजेंसी, पेंसिलवेनिया। 
Published by: देव कश्यप
Updated Thu, 07 Apr 2022 04:19 AM IST

सार

वैज्ञानिकों ने इसे रेस्पिरेटरी एयरवे सेक्रेटरी का नाम दिया है। यह फेफड़ों के अंदर मौजूद नसों की शाखा ब्रॉन्किओल्स में मौजूद रहते हैं। ये वहीं अंग है जो खून के अंदर ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान करते हैं।

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वैज्ञानिकों ने इंसानी शरीर में मौजूद एक ऐसे अंग को खोजा है, जो फेफड़ों को दुरुस्त रखने का काम करता है। कोशिका की तरह दिखने वाला नया अंग मानव शरीर के फेफड़ों में मौजूद पतली और बेहद नाजुक शाखाओं में पाया जाता है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इसकी मदद से वो धूम्रपान संबंधी बीमारियों से लोगों को बचा या ठीक कर पाएंगे।

वैज्ञानिकों ने इसे रेस्पिरेटरी एयरवे सेक्रेटरी का नाम दिया है। यह फेफड़ों के अंदर मौजूद नसों की शाखा ब्रॉन्किओल्स में मौजूद रहते हैं। ये वहीं अंग है जो खून के अंदर ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान करते हैं। ‘नेचर जर्नल’ में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि आरएएस कोशिकाएं फेफड़ों पर निर्भर रहती थी। क्योंकि उनका पूरा काम फेफड़ों से संबंधित प्रणालियों से ही चलता है। इसके बाद वैज्ञानिकों ने एक स्वस्थ इंसान के फेफड़ों का ऊतक (टिश्यू) लिया। इसके बाद हर कोशिका के अंदर मौजूद जींस का विश्लेषण किया गया, तब आरएएस कोशिकाओं का पता चला।

यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिलवेनिया के पेरेलमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन के प्रोफेसर एडवर्ड मॉरिसे ने कहा कि फेरेट (नेवले की जाति के जानवर) के फेफड़ों में भी आरएएस कोशिकाएं मिली हैं, जो इंसानी कोशिकाओं से मिलती-जुलती हैं। वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि अधिकतर स्तनधारी जीवों में चाहे वह छोटे हों या बड़े उन सभी के फेफड़ों में आरएएस कोशिकाएं होती हैं।

कैसे काम करता है नया अंग (आरएएस कोशिकाएं)
आरएएस कोशिकाएं (नया अंग) किसी स्टेम सेल्स की तरह होती हैं। इन्हें ब्लैंक कैनवास कोशिकाएं कहते हैं। ये शरीर के अंदर किसी भी तरह के नए अंग या कोशिकाओं की पहचान करते हैं। जोकि  क्षतिग्रस्त एल्वियोली को सुधारती हैं और नए एल्वियोली कोशिकाओं का निर्माण करती है। ताकि खून में गैसों का बहाव सही बना रहे। 

आरएएस कोशिकाओं का काम
ये ऐसे कणों का रिसाव करती हैं, जो ब्रॉन्किओल्स में बहने वाले तरल पदार्थों के लिए परत बनाने का काम करते हैं। जिससे फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है। ये प्रोजेनिटर कोशिकाओं की तरह यानी एल्वियोलर टाइप-2 (एटी2) कोशिकाओं जैसे काम करते हैं। यह विशेष तरह की कोशिका होती है, जो क्षतिग्रस्त छोटी कोशिकाआों को ठीक करने के लिए रसायन निकालती है।

क्या कहते हैं वैज्ञानिक
सीओपीडी में फेफड़ों के अंदर पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन का निर्माण नहीं हो पाता। नतीजतन नसें सूज जाती हैं। इसके लक्षण दमा की तरह होते हैं। एडवर्ड मॉरिसे ने कहा कि भविष्य में आरएएस कोशिकाएं सीओपीडी के इलाज में मदद कर सकती हैं। भविष्य में क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीस (सीओपीडी) को रोकने में मदद कर सकती हैं। सीओपीडी धूम्रपान से या फिर वायु प्रदूषण से होता है। अगर ये इस तरह की बीमारी को ठीक कर सकती हैं, या फिर इंसान को बचा सकती है, तो लाखों लोगों का जान समय से पहले नहीं जाएगी। 

विस्तार

वैज्ञानिकों ने इंसानी शरीर में मौजूद एक ऐसे अंग को खोजा है, जो फेफड़ों को दुरुस्त रखने का काम करता है। कोशिका की तरह दिखने वाला नया अंग मानव शरीर के फेफड़ों में मौजूद पतली और बेहद नाजुक शाखाओं में पाया जाता है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इसकी मदद से वो धूम्रपान संबंधी बीमारियों से लोगों को बचा या ठीक कर पाएंगे।

वैज्ञानिकों ने इसे रेस्पिरेटरी एयरवे सेक्रेटरी का नाम दिया है। यह फेफड़ों के अंदर मौजूद नसों की शाखा ब्रॉन्किओल्स में मौजूद रहते हैं। ये वहीं अंग है जो खून के अंदर ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान करते हैं। ‘नेचर जर्नल’ में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि आरएएस कोशिकाएं फेफड़ों पर निर्भर रहती थी। क्योंकि उनका पूरा काम फेफड़ों से संबंधित प्रणालियों से ही चलता है। इसके बाद वैज्ञानिकों ने एक स्वस्थ इंसान के फेफड़ों का ऊतक (टिश्यू) लिया। इसके बाद हर कोशिका के अंदर मौजूद जींस का विश्लेषण किया गया, तब आरएएस कोशिकाओं का पता चला।

यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिलवेनिया के पेरेलमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन के प्रोफेसर एडवर्ड मॉरिसे ने कहा कि फेरेट (नेवले की जाति के जानवर) के फेफड़ों में भी आरएएस कोशिकाएं मिली हैं, जो इंसानी कोशिकाओं से मिलती-जुलती हैं। वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे कि अधिकतर स्तनधारी जीवों में चाहे वह छोटे हों या बड़े उन सभी के फेफड़ों में आरएएस कोशिकाएं होती हैं।

कैसे काम करता है नया अंग (आरएएस कोशिकाएं)

आरएएस कोशिकाएं (नया अंग) किसी स्टेम सेल्स की तरह होती हैं। इन्हें ब्लैंक कैनवास कोशिकाएं कहते हैं। ये शरीर के अंदर किसी भी तरह के नए अंग या कोशिकाओं की पहचान करते हैं। जोकि  क्षतिग्रस्त एल्वियोली को सुधारती हैं और नए एल्वियोली कोशिकाओं का निर्माण करती है। ताकि खून में गैसों का बहाव सही बना रहे। 

आरएएस कोशिकाओं का काम

ये ऐसे कणों का रिसाव करती हैं, जो ब्रॉन्किओल्स में बहने वाले तरल पदार्थों के लिए परत बनाने का काम करते हैं। जिससे फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है। ये प्रोजेनिटर कोशिकाओं की तरह यानी एल्वियोलर टाइप-2 (एटी2) कोशिकाओं जैसे काम करते हैं। यह विशेष तरह की कोशिका होती है, जो क्षतिग्रस्त छोटी कोशिकाआों को ठीक करने के लिए रसायन निकालती है।

क्या कहते हैं वैज्ञानिक

सीओपीडी में फेफड़ों के अंदर पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन का निर्माण नहीं हो पाता। नतीजतन नसें सूज जाती हैं। इसके लक्षण दमा की तरह होते हैं। एडवर्ड मॉरिसे ने कहा कि भविष्य में आरएएस कोशिकाएं सीओपीडी के इलाज में मदद कर सकती हैं। भविष्य में क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीस (सीओपीडी) को रोकने में मदद कर सकती हैं। सीओपीडी धूम्रपान से या फिर वायु प्रदूषण से होता है। अगर ये इस तरह की बीमारी को ठीक कर सकती हैं, या फिर इंसान को बचा सकती है, तो लाखों लोगों का जान समय से पहले नहीं जाएगी। 

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