एजेंसी, काबुल।
Published by: Jeet Kumar
Updated Wed, 06 Oct 2021 05:06 AM IST
सार
अरियाना न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान ने यह घोषणा अफगानिस्तान में पर्यटन बढ़ावा देने के मकसद से की है।
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विस्तार
अब यहां इनके अवशेष बचे हैं। पहाड़ियों में गांधार शैली में उकेरी गईं इन विशाल मूर्तियां का निर्माण छठी सदी किया गया था। इन्हें बुद्ध की प्रतिमाओं के तौर पर जाना जाता है, लेकिन स्थानीय लोग इन्हें सलसल (पुरुष)व शमामा (महिला) के तौर पर जानते हैं।
खुदाई में मिले पुरावशेषों को लूटा
इस वर्ष अगस्त में ही यूनेस्को विश्व विरासत स्थल पर पुरातत्वविद खुदाई कर रहे थे, वहां निकले पुरावशेषों को एक गोदाम में रखा गया था, जिसे तालिबान ने लूट लिया है।
बेशर्मी और गलती का इल्म ही नहीं
2001 में मूर्तियों को तोड़ने के सवाल बामियान के सूचना व संस्कृति निदेशालय के प्रमुख सैफ-उल-रहमान मोहम्मदी ने कहा कि तालिबान ने यह फैसला जल्दबाजी नहीं लिया था बल्कि अध्ययन के बाद धार्मिक विश्वास के आधार पर इस्लामिक कानूनों के मुताबिक इन मूर्तियों को तोड़ा गया था।
दफ्तर तो खुल गए पर नहीं बन रहा पासपोर्ट
अफगानिस्तान में तालिबान राज के बाद काबुल में बंद हो गए पासपोर्ट कार्यालय अब खोले दिए गए हैं लेकिन अफगान लोग पासपोर्ट न बन पाने से परेशान हैं। आंतरिक मंत्रालय के प्रवक्ता कारी सैय्यद खोस्ती ने बताया कि पासपोर्ट के आए करीब एक लाख आवेदन में से 25 हजार आवेदन अपनी अंतिम प्रक्रिया में है। कार्यालय के कार्यवाहक प्रमुख अलम गुल हक्कानी ने बताया कि मंगलवार से पांच से छह हजार पासपोर्ट रोजाना जारी करने की योजना है।