वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, काबुल
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Thu, 12 Aug 2021 07:16 PM IST
सार
तालिबान के आक्रामक नजरिए को देखते हुए अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी दोहा वार्ता से उम्मीद छोड़ चुके हैं। इसके विपरीत वे मुख्य शहरों में नागरिकों को हथियारों से लैस करने और क्षेत्रीय युद्ध सरदारों को अपनी तरफ करने की अपनी योजना में ज्यादा ध्यान लगा रहे हैं…
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे वाले इलाकों में तेजी से बढ़ोतरी के बीच बुधवार को अफगानिस्तान से संबंधित दोहा वार्ता का अगला दौर हुआ। वहां मौजूद संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपियन यूनियन, चीन और पाकिस्तान के प्रतिनिधि इस बात पर फिर सहमत हुए अफगान समस्या का हल शांतिपूर्ण ढंग से और बातचीत के जरिए निकलना चाहिए। लेकिन अफगानिस्तान में फिलहाल जो जमीनी हालात हैं, उसके बीच ऐसी इच्छा का कोई ठोस आधार नजर नहीं आता। तालिबान एकतरफा ढंग से सैनिक कार्रवाइयों के जरिए देश में एक के बाद दूसरे प्रांत पर कब्जा जमाता जा रहा है।
इस बीच निमरुज प्रांत की राजधानी जरानी पर भी उसका कब्जा हो गया है। इसे उसकी बहुत बड़ी कामयाबी माना गया है, क्योंकि ज़रानी को अफगानिस्तान में भारत के लिए प्रवेश द्वार समझा जाता है। अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर के तहत यह मध्य एशिया तक भारत की पहुंच के रास्ते में भी पड़ता है। दरअसल, तालिबान के आक्रामक नजरिए को देखते हुए अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी दोहा वार्ता से उम्मीद छोड़ चुके हैं। इसके विपरीत वे मुख्य शहरों में नागरिकों को हथियारों से लैस करने और क्षेत्रीय युद्ध सरदारों को अपनी तरफ करने की अपनी योजना में ज्यादा ध्यान लगा रहे हैं।
तालिबान का ईरान-अफगानिस्तान सीमा पर स्थित व्यापार मार्ग पर भी कब्जा हो गया है। उसके बाद ईरान ने अपनी सीमा बंद कर दी है। रणनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि तालिबान सोची-समझी रणनीति के तहत अपनी योजना पर आगे बढ़ रहा है। अब ये कयास भी लगाए जा रहे हैं कि तालिबान की इन कामयाबियों के पीछे क्या पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का भी हाथ है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि बिना आईएसआई के समर्थन के तालिबान इतनी तेजी से आगे नहीं बढ़ पाता।
तालिबान की रणनीति यह दिखती है कि पहले देश के पूरे ग्रामीण क्षेत्र पर कब्जा जमा लिया जाए। ये हिस्सा अफगानिस्तान के कुल क्षेत्रफल का 85 फीसदी है। तालिबान इसमें पूरी तरह सफल हो गया, तो उसका ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ईरान, और पाकिस्तान के बलूचिस्तान से लगी सीमा चौकियों पर पूरा नियंत्रण हो जाएगा। इसी के साथ तालिबान ने प्रांतीय राजधानियों पर कब्जा करना शुरू कर दिया है। जानकारों के मुताबिक अपने कब्जे में आ रही राजधानियों में अपने कदम जमाने के बाद वह काबुल पर कब्जे की लड़ाई छेड़ेगा।
हालांकि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने कहा है कि काबुल पर कब्जा करने में तालिबान को 90 दिन लगेंगे, लेकिन कई जानकार मानते हैं कि महीने भर के अंदर भी तालिबान इसमें सफल हो सकता है। मुमकिन है कि 9/11 (2001 में 11 सितंबर को अमेरिका पर हुए आतंकवादी हमलों) की बीसवीं बरसी तक ही तालिबान काबुल को अपने नियंत्रण में ले ले। उसी आतंकवादी हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान को अल-कायदा और तालिबान से मुक्ति दिलाने के लिए वहां हमला किया था। लेकिन 20 साल बाद अब तालिबान विजयी होता दिख रहा है।
तालिबान की सफलताएं पश्चिमी देशों के अलावा भारत, रूस, चीन, ईरान और अन्य पड़ोसी देशों के लिए भी गहरी चिंता का विषय हैं। मगर ये देश मिल कर भी अफगानिस्तान के लिए कोई ऐसा समाधान ढूंढने में अब तक नाकाम हैं, जिससे वहां फिर से तालिबानी राज कायम ना हो सके।
विस्तार
अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे वाले इलाकों में तेजी से बढ़ोतरी के बीच बुधवार को अफगानिस्तान से संबंधित दोहा वार्ता का अगला दौर हुआ। वहां मौजूद संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपियन यूनियन, चीन और पाकिस्तान के प्रतिनिधि इस बात पर फिर सहमत हुए अफगान समस्या का हल शांतिपूर्ण ढंग से और बातचीत के जरिए निकलना चाहिए। लेकिन अफगानिस्तान में फिलहाल जो जमीनी हालात हैं, उसके बीच ऐसी इच्छा का कोई ठोस आधार नजर नहीं आता। तालिबान एकतरफा ढंग से सैनिक कार्रवाइयों के जरिए देश में एक के बाद दूसरे प्रांत पर कब्जा जमाता जा रहा है।
इस बीच निमरुज प्रांत की राजधानी जरानी पर भी उसका कब्जा हो गया है। इसे उसकी बहुत बड़ी कामयाबी माना गया है, क्योंकि ज़रानी को अफगानिस्तान में भारत के लिए प्रवेश द्वार समझा जाता है। अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर के तहत यह मध्य एशिया तक भारत की पहुंच के रास्ते में भी पड़ता है। दरअसल, तालिबान के आक्रामक नजरिए को देखते हुए अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी दोहा वार्ता से उम्मीद छोड़ चुके हैं। इसके विपरीत वे मुख्य शहरों में नागरिकों को हथियारों से लैस करने और क्षेत्रीय युद्ध सरदारों को अपनी तरफ करने की अपनी योजना में ज्यादा ध्यान लगा रहे हैं।
तालिबान का ईरान-अफगानिस्तान सीमा पर स्थित व्यापार मार्ग पर भी कब्जा हो गया है। उसके बाद ईरान ने अपनी सीमा बंद कर दी है। रणनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि तालिबान सोची-समझी रणनीति के तहत अपनी योजना पर आगे बढ़ रहा है। अब ये कयास भी लगाए जा रहे हैं कि तालिबान की इन कामयाबियों के पीछे क्या पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का भी हाथ है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि बिना आईएसआई के समर्थन के तालिबान इतनी तेजी से आगे नहीं बढ़ पाता।
तालिबान की रणनीति यह दिखती है कि पहले देश के पूरे ग्रामीण क्षेत्र पर कब्जा जमा लिया जाए। ये हिस्सा अफगानिस्तान के कुल क्षेत्रफल का 85 फीसदी है। तालिबान इसमें पूरी तरह सफल हो गया, तो उसका ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ईरान, और पाकिस्तान के बलूचिस्तान से लगी सीमा चौकियों पर पूरा नियंत्रण हो जाएगा। इसी के साथ तालिबान ने प्रांतीय राजधानियों पर कब्जा करना शुरू कर दिया है। जानकारों के मुताबिक अपने कब्जे में आ रही राजधानियों में अपने कदम जमाने के बाद वह काबुल पर कब्जे की लड़ाई छेड़ेगा।
हालांकि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने कहा है कि काबुल पर कब्जा करने में तालिबान को 90 दिन लगेंगे, लेकिन कई जानकार मानते हैं कि महीने भर के अंदर भी तालिबान इसमें सफल हो सकता है। मुमकिन है कि 9/11 (2001 में 11 सितंबर को अमेरिका पर हुए आतंकवादी हमलों) की बीसवीं बरसी तक ही तालिबान काबुल को अपने नियंत्रण में ले ले। उसी आतंकवादी हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान को अल-कायदा और तालिबान से मुक्ति दिलाने के लिए वहां हमला किया था। लेकिन 20 साल बाद अब तालिबान विजयी होता दिख रहा है।
तालिबान की सफलताएं पश्चिमी देशों के अलावा भारत, रूस, चीन, ईरान और अन्य पड़ोसी देशों के लिए भी गहरी चिंता का विषय हैं। मगर ये देश मिल कर भी अफगानिस्तान के लिए कोई ऐसा समाधान ढूंढने में अब तक नाकाम हैं, जिससे वहां फिर से तालिबानी राज कायम ना हो सके।
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