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अध्ययन: खिलौनों से बनने वाली सोच रहती है ताउम्र, लैंगिग पूर्वाग्रह भी बनाते हैं खिलौने

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, कोपेनहेगन
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Tue, 12 Oct 2021 03:44 PM IST

सार

‘जेंडर्ड ब्रेन’ नाम की किताब की लेखक प्रो. जी. रिपन ने द गार्जियन से कहा- ‘यह एक असमानता है। हम लड़कियों को तो लड़कों की गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, लेकिन लड़कों को ऐसी गतिविधियों में भाग नहीं लेने दिया जाता, जिन्हें लड़कियों का समझा जाता है।’

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खिलौनों के जरिए दिमाग में बैठने वाले लैंगिक पूर्वाग्रहों के बारे में हाल में जारी हुई एक अध्ययन रिपोर्ट के बाद लेगो ऐसी पहली कंपनी बनी है, जिसने अपने खिलौनों से ऐसे सभी निशानों को हटाने का फैसला किया है। लेगो डेनमार्क की खिलौना बनाने वाली कंपनी है, जिसका कारोबार दुनियाभर में है। खिलौनों से बच्चों को मिलने वाले संदेश के बारे में अध्ययन इसी कंपनी ने कराया। इस अध्ययन से सामने आया कि खिलौनों से जो सोच बच्चों को मिलती है, उसका असर उन पर जीवन भर रहता है।

अध्ययन के सिलसिले में कराए गए सर्वे से सामने यह आया कि आम तौर पर माता-पिता बेटों को बाहर जाकर खेलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जबकि बेटियों को डांस या ड्रेसिंग अप (सजने-संवरने) के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। ऑस्कर विजेता अभिनेता गीना डेविस ने इस बारे में ब्रिटिश अखबार द गार्जियन से कहा- ‘यह नजरिया इस बात पर रोशनी डालता है कि दुनियाभर में लैंगिक पूर्वाग्रह किस तरह आज भी लोगों के मन में घर जमाए हुए हैं।’ डेविस अब लैंगिक समानता के लिए काम करती हैं। उन्होंने 2004 में एक संस्था बनाई, जो लैंगिक पूर्वाग्रहों के खिलाफ अभियान चलाती है। लेगो कंपनी के लिए ये अध्ययन इसी संस्था ने किया है।

‘जेंडर्ड ब्रेन’ नाम की किताब की लेखक प्रो. जी. रिपन ने द गार्जियन से कहा- ‘यह एक असमानता है। हम लड़कियों को तो लड़कों की गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, लेकिन लड़कों को ऐसी गतिविधियों में भाग नहीं लेने दिया जाता, जिन्हें लड़कियों का समझा जाता है।’ प्रो. रिपन ने कहा कि लड़कियों को खेलने के लिए गुड़िया दी जाती है, जबकि लड़कों को नहीं दी जाती। इसका मतलब यह है कि बच्चों के पालन-पोषण का जो कौशल लड़कियां बचपन में सीख लेती हैं, लड़के उनसे वंचित रह जाते हैं।

इस सर्वे के दौरान अमेरिका, ब्रिटेन, पोलैंड, जापान, चेक रिपब्लिक, और चीन में सात हजार से ज्यादा अभिभावकों और छह से 14 वर्ष उम्र के बच्चों से बातचीत की गई। उसके निष्कर्षों के आधार पर लेगो कंपनी ने अपनी मार्केटिंग रणनीति में बदलाव किया है। कंपनी की मुख्य प्रोडक्ट एंड मार्केटिंग ऑफिसर जुलिया गोल्डिन ने कहा है- ‘हम लेगो को अधिक समावेशी बनाने की कोशिश कर रहे हैं। 2021 की शुरुआत से ही लेगो और गीना डेविस इंस्टीट्यूट लेगो के खिलौनों की ऑडिटिंग कर रहे हैं। वे बनने वाली घिसी पिटी लैंगिक धारणाओं (स्टीरियोटाइप्स) की समस्या का समाधान ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं।’

इस अध्ययन से जुड़े अनुसंधानकर्ताओं का निष्कर्ष है कि नए दौर में लड़कियां आत्मविश्वास से अधिक पूर्ण हो गई हैं और विभिन्न तरह की गतिविधियों में शामिल हो रही हैं। लेकिन लड़कों के बारे में यही बात नहीं कही जा सकती। सर्वे के दौरान 71 फीसदी लड़कों ने कहा कि वे इस बात से भयभीत रहते हैं कि अगर उन्होंने ‘लड़कियों वाले खिलौनों’ से खेला, तो उनका मजाक उड़ाया जाएगा। माता-पिता को भी यही चिंता रहती है कि ‘लड़कियों वाले खिलौनों’ वाले खिलौनों से खेलने पर उनके बेटों का मखौल उड़ेगा, जबकि लड़कियां जब ‘लड़कों वाले खिलौनों’ से खेलती हैं, तब ऐसा कोई भय नहीं रहता है।

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खिलौनों के जरिए दिमाग में बैठने वाले लैंगिक पूर्वाग्रहों के बारे में हाल में जारी हुई एक अध्ययन रिपोर्ट के बाद लेगो ऐसी पहली कंपनी बनी है, जिसने अपने खिलौनों से ऐसे सभी निशानों को हटाने का फैसला किया है। लेगो डेनमार्क की खिलौना बनाने वाली कंपनी है, जिसका कारोबार दुनियाभर में है। खिलौनों से बच्चों को मिलने वाले संदेश के बारे में अध्ययन इसी कंपनी ने कराया। इस अध्ययन से सामने आया कि खिलौनों से जो सोच बच्चों को मिलती है, उसका असर उन पर जीवन भर रहता है।

अध्ययन के सिलसिले में कराए गए सर्वे से सामने यह आया कि आम तौर पर माता-पिता बेटों को बाहर जाकर खेलने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, जबकि बेटियों को डांस या ड्रेसिंग अप (सजने-संवरने) के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। ऑस्कर विजेता अभिनेता गीना डेविस ने इस बारे में ब्रिटिश अखबार द गार्जियन से कहा- ‘यह नजरिया इस बात पर रोशनी डालता है कि दुनियाभर में लैंगिक पूर्वाग्रह किस तरह आज भी लोगों के मन में घर जमाए हुए हैं।’ डेविस अब लैंगिक समानता के लिए काम करती हैं। उन्होंने 2004 में एक संस्था बनाई, जो लैंगिक पूर्वाग्रहों के खिलाफ अभियान चलाती है। लेगो कंपनी के लिए ये अध्ययन इसी संस्था ने किया है।

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