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Tokyo Paralympic: जहां चाह- वहां राह, दुनिया के वे दिव्यांग एथलीट जिन्होंने अभिशाप को वरदान में बदला

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स्पोर्ट्स डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: ओम. प्रकाश
Updated Sun, 22 Aug 2021 09:05 AM IST

सार

टोक्यो पैरालंपिक खेलों की शुरुआत होने में सिर्फ दो दिन बाकी हैं। इन खेलों में दुनिया के कई स्टार एथलीट अपनी प्रतिभा दिखाने को बेताब हैं। विश्व पटल पर नजर डाली जाए तो ऐसे कई दिव्यांग एथलीट हैं जिन्होंने अपनी कमजोरी को ताकत में बदल दिया। 

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पैरालंपिक में भी कई ऐसे दिव्यांग एथलीट हैं जिन्होंने अपनी कमजोरी को ताकत बनाते हुए दुनिया भर में अपने नाम का डंका बजा दिया। कोविड-19 के कारण दुनिया भर में खिलाड़ियों का अभ्यास प्रभावित हुआ है लेकिन बात शारीरिक रूप से मानसिक मजबूती की है और इस मामले में ये खिलाड़ी साबित कर चुके हैं कि जहां चाह वहां राह है।  

मार्कस ने 14 साल की उम्र में गंवा दिया था पांव

मार्कस रेहम  जर्मनी के 32 साल के लंबी कूद के खिलाफ एफ-44 में विश्व चैंपियन रहे हैं। उन्हें ब्लैड जंपर के नाम से जाना जाता है। वह पिछले दो पैरालंपिक 2012 लंदन और 2016 रियो में लंबी कूद में स्वर्ण पदक जीत चुके हैं। इस बार गोल्डन हैट्रिक लगा सकते हैं। उनके नाम 8.62 मीटर का विश्व रिकॉर्ड भी है।  मार्कस तब महज 14 साल के थे जब एक दुर्घटना में उन्हें अपना दायां पांव गंवाना पड़ा था। लंबी कूद ही नहीं जनाब रिले टीम में 4×100 मीटर में भी पिछले रियो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीत चुके हैं। रिले टीम में 2012 लंदन में उन्होंने कांस्य पदक हासिल किया था।

11 साल की उम्र में हादसे की शिकार  

लियनी रेतरी, बैडमिंटन- महिला वर्ग में तीन बार की विश्व चैंपियन इंडोनेशिया की इस खिलाड़ी के पास इस बार पैरालंपिक में पहली बार शामिल हुए बैडमिंटन में स्वर्ण पदक जीतने का मौका है। वह न केवल एकल बल्कि मिश्रित युगल में भी दो बार विश्व खिताब जीत चुकी हैं। उन्होंने 2019 में 12 स्वर्ण, दो रजत और एक कांस्य पदक हासिल किया। वह दो साल पहले दुनिया की श्रेष्ठ पैरा बैडमिंटन खिलाड़ी घोषित की गई थीं। लियनी 11 साल की उम्र में मोटरबाइक दुर्घटना का शिकार हो गई थीं। उनका बायां पांव क्षतिग्रस्त हो गया था।

डेविड स्मिथ (बोसिया) 

बोसिया एक बॉल स्पोर्ट्स स्पर्धा है जो विशेष रूप से पैरा खेलों का हिस्सा है जिसमें व्हीलचेयर पर खिलाड़ी विभिन्न रंगों की गेंदों को लक्ष्य की ओर लुढ़काकर अंक बटोरता है। एकल, टीम और मिश्रित तीनों वर्गों में खेला जाता है। ब्रिटेन के डेविड स्मिथ तीन साल पहले विश्व चैंपियन रहे हैं। उसी साल उन्होंने शीर्ष रैंकिंग भी हासिल की थी। वह इस बार तीसरा पैरालंपिक खिताब जीतने का लक्ष्य लेकर उतरेंगे।

रीढ़ की हड्डी में निकला ट्यूमर

शिंगो कुनिदा, व्हीलचेयर टेनिस – अपने ही देश में होने वाले खेलों में शिंगो इस बार एकल में स्वर्ण जीतना चाहेंगे। 2008 बीजिंग और 2012 लंदन में उन्होंने लगातार दो बार खिताब जीते थे लेकिन 2016 रियो में वह कोहनी की चोट के कारण खास प्रदर्शन नहीं कर पाए और युगल में केवल एक कांस्य पदक जीता। जब वह नौ साल के थे तो उनकी रीढ़ की हड्डी में ट्यूमर निकल आया था। वह चलने-फिरने में असमर्थ हो गए। जिंदगी व्हीलचेयर पर आ गई लेकिन उन्होंने अभिशाप को वरदान में बदल दिया। पिछले साल उन्होंने यूएस ओपन जीता था जो उनका कुल 45वां ग्रैंडस्लैम खिताब था

जन्म से है बायां हाथ छोटा

हुसना कुकुनदवाके, तैराकी- इस खिलाड़ी का कोहनी से नीचे का दायां हाथ जन्म से नहीं है। बाएं हाथ में भी हल्की दुर्बलता है। हो सकता है 14 साल की यह तैराक कोई पदक न जीते लेकिन यूगांडा के लिए उनका भाग लेना ही दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए बड़ी प्रेरणा है। एक समय वह था कि वह लोगों की सहानुभूति से बचने के लिए भरी गर्मी में पूरी बाजू के कपड़े पहनती थीं। स्कूल में टीचर के समझाने पर तैराकी में उतरीं तो फिर दुनिया बदल गई। वह युगांडा की ओर से एकमात्र खिलाड़ी हैं जो टोक्यो में हिस्सा ले रही हैं।

रग्बी से कैनोइंग का सफर

स्कॉट मार्टले- न्यूजीलैंड के दो बार के विश्व चैंपियन स्कॉट मार्टले का यह दूसरा पैरालंपिक है। सोलह साल की उम्र से पहले उनका सपना ओलंपिक में खेलना था। सोलह साल की उम्र में रग्बी खेलते समय वह गंभीर रूप से चोटग्रस्त हो गए। उनकी जान बचाने को पांव काटना पड़ा। स्कॉट ने खेलना नहीं छोड़ा वह वाटर स्पोर्ट्स की ओर मुड़ गए और आज पैरालंपिक में न्यूजीलैंड के पदक की उम्मीद हैं।

60 साल की उम्र में स्वर्ण की दावेदारी  

कैरोल कुक, रोड साइक्लिंग- कनाडा में जन्मीं 60 साल की ऑस्ट्रेलियाई महिला खिलाड़ी ने लंदन में हुए 2012 खेलों में स्वर्ण जीता था और उसके बाद रियो में भी स्वर्णिम सफलता हासिल की। बढ़ती उम्र के बावजूद कभी न हार मानने का जज्बा उनकी सबसे बड़ी ताकत है। कभी वह तैराकी करती थीं और 1980 मास्को ओलंपिक में खेलने का सपना संजो रही थीं लेकिन उन खेलों का कनाडा ने बहिष्कार किया। फिर वह ऐसी बीमारी से ग्रस्त हो गईं जिससे उनकी रीढ़ की हड्डी पर असर पड़ा। आंखों की रोशनी भी प्रभावित हुईं। वह पैरा खेलों की ओर मुड़ गईं और आज पैरालंपिक में लगातार तीसरे स्वर्ण की दावेदार हैं।  

विस्तार

पैरालंपिक में भी कई ऐसे दिव्यांग एथलीट हैं जिन्होंने अपनी कमजोरी को ताकत बनाते हुए दुनिया भर में अपने नाम का डंका बजा दिया। कोविड-19 के कारण दुनिया भर में खिलाड़ियों का अभ्यास प्रभावित हुआ है लेकिन बात शारीरिक रूप से मानसिक मजबूती की है और इस मामले में ये खिलाड़ी साबित कर चुके हैं कि जहां चाह वहां राह है।  

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