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Boxing: परिवार की गरीबी देख पिथौरागढ़ के बड़ालू की निकिता को घर ले आए थे कोच, दूसरी बार बनी एशियाई चैंपियन

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स्पोर्ट्स डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: शक्तिराज सिंह
Updated Mon, 14 Mar 2022 11:15 PM IST

सार

सेना से सेवानिवृत्त विजेंदर 1986 में राष्ट्रीय चैंपियन बने थे। मंगलवार को वह खुद निकिता को लेने दिल्ली आ रहे हैं। विजेंदर कहते हैं कि इस बार उसे 10वीं की परीक्षाएं देनी हैं। अब वह इनकी तैयारियों में जुटेगी। 
 

निकिता
– फोटो : सोशल मीडिया


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साले के परिवार की गरीबी देख पूर्व राष्ट्रीय चैंपियन बॉक्सर विजेंदर मल पांच साल पहले उनकी बड़ी बेटी निकिता को अपने साथ घर ले आए। घर की छत पर ही उन्होंने छोटी निकिता को इस तरह बॉक्सिंग सिखाई कि एक साल में वह राज्य विजेता बन गईं। पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) के गांव बड़ालू की इस बॉक्सर ने यहां से पीछे मुड़कर नहीं देखा बीते वर्ष जूनियर राष्ट्रीय और जूनियर एशियाई चैंपियन बनने के बाद रविवार को अम्मान (जॉर्डन) में वह लगातार दूसरा जूनियर एशियाई खिताब जीतने में सफल रहीं। पिछली बार जब वह विजेता बनीं थी तो ग्राम प्रधान ने हर गांव वासी को अपने घर की नेम प्लेट बड़ी बेटी के नाम पर लगाने का फरमान सुनाया था।

छोटे भाई-बहन भी सीख रहे बॉक्सिंग
विजेंदर अमर उजाला से खुलासा करते हैं कि उनके साले की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। छोटी-मोटी खेतीबाड़ी के अलावा परिवार का पेट पालने के लिए वह एक छोटी सी किराने की दुकान चलाते हैं। यही कारण था वह निकिता को 10 साल की उम्र में अपने पास ले आए और बॉक्सिंग सिखाना शुरू कर दिया। अब वह उसके एक छोटे भाई और बहन को भी साथ ले आए हैं और उन्हें भी बॉक्सिंग सिखा रहे हैं। निकिता की सफलता से प्रेरित होकर उन्होंने घर की छत पर ही हॉल बनवाकर उसे छोटी अकादमी का रूप दे दिया। निकिता का प्रदर्शन पहाड़ में प्रेरणा बन गया है और अब उनके पास यहां 35 के करीब बच्चे हैं। 

अब 10वीं की परीक्षाएं देंगी निकिता
सेना से सेवानिवृत्त विजेंदर 1986 में राष्ट्रीय चैंपियन बने थे। मंगलवार को वह खुद निकिता को लेने दिल्ली आ रहे हैं। विजेंदर कहते हैं कि इस बार उसे 10वीं की परीक्षाएं देनी हैं। अब वह इनकी तैयारियों में जुटेगी। 

विस्तार

साले के परिवार की गरीबी देख पूर्व राष्ट्रीय चैंपियन बॉक्सर विजेंदर मल पांच साल पहले उनकी बड़ी बेटी निकिता को अपने साथ घर ले आए। घर की छत पर ही उन्होंने छोटी निकिता को इस तरह बॉक्सिंग सिखाई कि एक साल में वह राज्य विजेता बन गईं। पिथौरागढ़ (उत्तराखंड) के गांव बड़ालू की इस बॉक्सर ने यहां से पीछे मुड़कर नहीं देखा बीते वर्ष जूनियर राष्ट्रीय और जूनियर एशियाई चैंपियन बनने के बाद रविवार को अम्मान (जॉर्डन) में वह लगातार दूसरा जूनियर एशियाई खिताब जीतने में सफल रहीं। पिछली बार जब वह विजेता बनीं थी तो ग्राम प्रधान ने हर गांव वासी को अपने घर की नेम प्लेट बड़ी बेटी के नाम पर लगाने का फरमान सुनाया था।

छोटे भाई-बहन भी सीख रहे बॉक्सिंग

विजेंदर अमर उजाला से खुलासा करते हैं कि उनके साले की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। छोटी-मोटी खेतीबाड़ी के अलावा परिवार का पेट पालने के लिए वह एक छोटी सी किराने की दुकान चलाते हैं। यही कारण था वह निकिता को 10 साल की उम्र में अपने पास ले आए और बॉक्सिंग सिखाना शुरू कर दिया। अब वह उसके एक छोटे भाई और बहन को भी साथ ले आए हैं और उन्हें भी बॉक्सिंग सिखा रहे हैं। निकिता की सफलता से प्रेरित होकर उन्होंने घर की छत पर ही हॉल बनवाकर उसे छोटी अकादमी का रूप दे दिया। निकिता का प्रदर्शन पहाड़ में प्रेरणा बन गया है और अब उनके पास यहां 35 के करीब बच्चे हैं। 

अब 10वीं की परीक्षाएं देंगी निकिता

सेना से सेवानिवृत्त विजेंदर 1986 में राष्ट्रीय चैंपियन बने थे। मंगलवार को वह खुद निकिता को लेने दिल्ली आ रहे हैं। विजेंदर कहते हैं कि इस बार उसे 10वीं की परीक्षाएं देनी हैं। अब वह इनकी तैयारियों में जुटेगी। 

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