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सुप्रीम कोर्ट ने कहा: जब सभी मुद्दों पर हमें ही विचार करना पड़े, तो फिर सरकार क्यों चुनी? जानें पूरा मामला

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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: अभिषेक दीक्षित
Updated Thu, 07 Apr 2022 10:47 PM IST

सार

चीफ जस्टिस रमण ने उनसे कहा, ये राजनीतिक मुद्दे हैं। इन्हें सरकार के पास ले जाएं। अगर हमें ही आपकी सभी जनहित याचिकाओं पर विचार करना है तो हमने सरकार क्यों चुनी? राज्यसभा और लोकसभा जैसे सदन हैं।

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रोहिंग्याओं और बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचानकर उन्हें निर्वासित करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि ये शासन से जुड़े मुद्दे हैं। इन्हें सरकार के पास ले जाएं। चीफ जस्टिस एनवी रमण की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि यदि हमें ही सभी जनहित याचिकाओं पर विचार करना है तो हमने सरकार क्यों चुनी? हालांकि पीठ याचिका को सूचीबद्ध करने के लिए सहमत हो गया।

पीठ ने याचिकाकर्ता वकील एवं भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय से कहा, हर दिन हमें सिर्फ आपका केस ही सुनना होता है? आप सभी समस्याओं को लेकर अदालत में आते हैं। चुनाव सुधार, संसद, जनसंख्या नियंत्रण हो या कुछ और…। पीठ ने यह टिप्पणी तब की जब उपाध्याय ने अपनी जनहित याचिका पर सुनवाई की मांग करते हुए कहा कि अवैध प्रवासियों द्वारा करोड़ों नौकरियां छीनी जा रही हैं और इससे भारतीय नागरिकों की आजीविका के अधिकार पर प्रभाव पड़ रहा है।

चीफ जस्टिस रमण ने उनसे कहा, ये राजनीतिक मुद्दे हैं। इन्हें सरकार के पास ले जाएं। अगर हमें ही आपकी सभी जनहित याचिकाओं पर विचार करना है तो हमने सरकार क्यों चुनी? राज्यसभा और लोकसभा जैसे सदन हैं। इस पर याचिकाकर्ता ने कहा कि इस मामले मेें पिछले साल मार्च में नोटिस जारी किया गया था लेकिन अब तक मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है। वहीं कोर्ट रूम में मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें मामले की जानकारी नहीं है।

इस पर पीठ ने सॉलिसिटर जनरल से कहा, अगर आपके पास जवाबी हलफनामा तैयार है तो हम मामले को सूचीबद्ध कर सकते हैं। उपाध्याय की याचिका में केंद्र और राज्य सरकारों को एक साल के भीतर बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं सहित सभी घुसपैठियों की पहचान करने, उन्हें हिरासत में लेने और निर्वासित करने का निर्देश देने की मांग की गई है।

याचिका में दावा, केंद्र घुसपैठियों को रोकने के लिए गंभीर नहीं

  • याचिका में केंद्र और राज्य सरकारों को अवैध घुसपैठ को संज्ञेय गैर जमानती और गैर समझौतावादी अपराध बनाने के लिए संबंधित कानूनों में संशोधन करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है। याचिका में दावा किया गया है कि केंद्र सरकार न तो देश में अवैध घुसपैठियों को रोकने के लिए गंभीर है और न ही निर्वासित करने के प्रति गंभीर है। 
  • याचिका में कहा गया है कि केंद्र समेत सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया जाए कि एक वर्ष के भीतर बांग्लादेशियों, रोहिंग्याओं समेत सभी अवैध घुसपैठियों की पहचान की जाए और उन्हें हिरासत में लेकर उनके देश भेजा जाए। याचिका में कहा गया है कि फॉरेनर्स एक्ट 1946 में केंद्र व सभी राज्य सरकारों को घुसपैठियों की पहचान करने और उन्हें उनके देश भेजने के लिए प्रभावी कदम उठाने की बात कही गई है।

घुसपैठियों के चलते सीमा के कई इलाकों में जनसांख्यिकी में आया बदलाव
याचिका में यह भी कहा गया है कि अवैध घुसपैठियों के कारण सीमा से सटे कई इलाकों की जनसांख्यिकी स्थिति बदल गई है। साथ ही इससे देश के समक्ष सुरक्षा का मसला भी खड़ा हो गया है। याचिका में दावा किया गया है कि भारत में कम से कम चार करोड़ घुसपैठिये रह रहे हैं। इनमें से कई लोगों ने तो अवैध तरीके से आधार कार्ड, पहचान पत्र आदि भी बनवा लिए हैं। वोट बैंक की राजनीति के लिए कई राज्यों ने घुसपैठियों की उपस्थिति की अनदेखी की है।

विस्तार

रोहिंग्याओं और बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचानकर उन्हें निर्वासित करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि ये शासन से जुड़े मुद्दे हैं। इन्हें सरकार के पास ले जाएं। चीफ जस्टिस एनवी रमण की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि यदि हमें ही सभी जनहित याचिकाओं पर विचार करना है तो हमने सरकार क्यों चुनी? हालांकि पीठ याचिका को सूचीबद्ध करने के लिए सहमत हो गया।

पीठ ने याचिकाकर्ता वकील एवं भाजपा नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय से कहा, हर दिन हमें सिर्फ आपका केस ही सुनना होता है? आप सभी समस्याओं को लेकर अदालत में आते हैं। चुनाव सुधार, संसद, जनसंख्या नियंत्रण हो या कुछ और…। पीठ ने यह टिप्पणी तब की जब उपाध्याय ने अपनी जनहित याचिका पर सुनवाई की मांग करते हुए कहा कि अवैध प्रवासियों द्वारा करोड़ों नौकरियां छीनी जा रही हैं और इससे भारतीय नागरिकों की आजीविका के अधिकार पर प्रभाव पड़ रहा है।

चीफ जस्टिस रमण ने उनसे कहा, ये राजनीतिक मुद्दे हैं। इन्हें सरकार के पास ले जाएं। अगर हमें ही आपकी सभी जनहित याचिकाओं पर विचार करना है तो हमने सरकार क्यों चुनी? राज्यसभा और लोकसभा जैसे सदन हैं। इस पर याचिकाकर्ता ने कहा कि इस मामले मेें पिछले साल मार्च में नोटिस जारी किया गया था लेकिन अब तक मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है। वहीं कोर्ट रूम में मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें मामले की जानकारी नहीं है।

इस पर पीठ ने सॉलिसिटर जनरल से कहा, अगर आपके पास जवाबी हलफनामा तैयार है तो हम मामले को सूचीबद्ध कर सकते हैं। उपाध्याय की याचिका में केंद्र और राज्य सरकारों को एक साल के भीतर बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं सहित सभी घुसपैठियों की पहचान करने, उन्हें हिरासत में लेने और निर्वासित करने का निर्देश देने की मांग की गई है।

याचिका में दावा, केंद्र घुसपैठियों को रोकने के लिए गंभीर नहीं

  • याचिका में केंद्र और राज्य सरकारों को अवैध घुसपैठ को संज्ञेय गैर जमानती और गैर समझौतावादी अपराध बनाने के लिए संबंधित कानूनों में संशोधन करने का निर्देश देने की भी मांग की गई है। याचिका में दावा किया गया है कि केंद्र सरकार न तो देश में अवैध घुसपैठियों को रोकने के लिए गंभीर है और न ही निर्वासित करने के प्रति गंभीर है। 
  • याचिका में कहा गया है कि केंद्र समेत सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया जाए कि एक वर्ष के भीतर बांग्लादेशियों, रोहिंग्याओं समेत सभी अवैध घुसपैठियों की पहचान की जाए और उन्हें हिरासत में लेकर उनके देश भेजा जाए। याचिका में कहा गया है कि फॉरेनर्स एक्ट 1946 में केंद्र व सभी राज्य सरकारों को घुसपैठियों की पहचान करने और उन्हें उनके देश भेजने के लिए प्रभावी कदम उठाने की बात कही गई है।


घुसपैठियों के चलते सीमा के कई इलाकों में जनसांख्यिकी में आया बदलाव

याचिका में यह भी कहा गया है कि अवैध घुसपैठियों के कारण सीमा से सटे कई इलाकों की जनसांख्यिकी स्थिति बदल गई है। साथ ही इससे देश के समक्ष सुरक्षा का मसला भी खड़ा हो गया है। याचिका में दावा किया गया है कि भारत में कम से कम चार करोड़ घुसपैठिये रह रहे हैं। इनमें से कई लोगों ने तो अवैध तरीके से आधार कार्ड, पहचान पत्र आदि भी बनवा लिए हैं। वोट बैंक की राजनीति के लिए कई राज्यों ने घुसपैठियों की उपस्थिति की अनदेखी की है।

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