Desh
शोध में दावा: कम प्रतिरोधक क्षमता होने पर जरूर लेनी चाहिए कोरोना वैक्सीन की तीसरी डोज
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: Amit Mandal
Updated Fri, 04 Mar 2022 10:56 PM IST
सार
एक शोध के अनुसार कोविड-19 वैक्सीन की अतिरिक्त डोज से उन लोगों को फायदा हो सकता है जिनकी प्रतिरोधक क्षमता काफी कम है।
ख़बर सुनें
ख़बर सुनें
यूनिवर्सिटी आफ सिंगापुर का शोध
बीएमजे में प्रकाशित एक शोध के अनुसार कोविड-19 वैक्सीन की अतिरिक्त डोज से उन लोगों को फायदा हो सकता है जिनकी प्रतिरोधक क्षमता काफी कम है। नेशनल यूनिवर्सिटी आफ सिंगापुर के शोधकर्ताओं ने बताया कि 82 शोधों के विश्लेषण के बाद यह साफ हो गया है कि जिन लोगों में प्रतिरोधक क्षमता पहले से ही कम है या फिर अचानक कम हो गई है, उन्हें तीसरी डोज जरूर लेनी चाहिए। इस शोध में 77 मामलों में एमआरएनए वैक्सीन का इस्तेमाल किया गया था जबकि 16 में वायरल वेक्टर वैक्सीन का इस्तेमाल हुआ।
कोविड-19 की एक वैक्सीन डोज के बाद जिन लोगों में प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई है उनमें सेरोकनवर्जन कम होना पाया गया है। सेरोकनवर्जन संक्रमण या वैक्सीन लगने के बाद एंटीबाडीज बनाने की प्रक्रिया है। इससे प्रतिरोधक क्षमता प्रणाली वायरस से मुकाबला करने में सक्षम होती है। शोध में यह भी बताया गया है कि सॉलिड कैंसर के मुकाबले ब्लड कैंसर के मरीजों में प्रतिरोधक क्षमता काफी कम हो जाती है। जबकि जिन लोगों में अंग प्रत्यारोपण होना होता है उनमें प्रतिरोधक क्षमता 16 गुना कम हो जाती है।
विस्तार
यूनिवर्सिटी आफ सिंगापुर का शोध
बीएमजे में प्रकाशित एक शोध के अनुसार कोविड-19 वैक्सीन की अतिरिक्त डोज से उन लोगों को फायदा हो सकता है जिनकी प्रतिरोधक क्षमता काफी कम है। नेशनल यूनिवर्सिटी आफ सिंगापुर के शोधकर्ताओं ने बताया कि 82 शोधों के विश्लेषण के बाद यह साफ हो गया है कि जिन लोगों में प्रतिरोधक क्षमता पहले से ही कम है या फिर अचानक कम हो गई है, उन्हें तीसरी डोज जरूर लेनी चाहिए। इस शोध में 77 मामलों में एमआरएनए वैक्सीन का इस्तेमाल किया गया था जबकि 16 में वायरल वेक्टर वैक्सीन का इस्तेमाल हुआ।
कोविड-19 की एक वैक्सीन डोज के बाद जिन लोगों में प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई है उनमें सेरोकनवर्जन कम होना पाया गया है। सेरोकनवर्जन संक्रमण या वैक्सीन लगने के बाद एंटीबाडीज बनाने की प्रक्रिया है। इससे प्रतिरोधक क्षमता प्रणाली वायरस से मुकाबला करने में सक्षम होती है। शोध में यह भी बताया गया है कि सॉलिड कैंसर के मुकाबले ब्लड कैंसर के मरीजों में प्रतिरोधक क्षमता काफी कम हो जाती है। जबकि जिन लोगों में अंग प्रत्यारोपण होना होता है उनमें प्रतिरोधक क्षमता 16 गुना कम हो जाती है।