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रिपोर्ट: 2021 में एशियाई मुद्राओं में रुपये का प्रदर्शन सबसे खराब, आम आदमी की जेब पर होगा असर
बिजनेस डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: दीपक चतुर्वेदी
Updated Tue, 21 Dec 2021 05:36 PM IST
सार
Rupee Set to Be Asias Worst Currency: भारतीय रुपये में गिरावट का दौर जारी है। एक रिपोर्ट के अनुसार, रुपया एशियाई बाजार में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली करेंसी बन गया है। इसके पीछे मुख्य वजह विदेशी निवेशकों की ओर से जारी बिकवाली है।
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विदेशी निवेशक निकाल रहे पैसा
गौरतलब है कि बिकवाली हावी होने का मतलब है कि घरेलू शेयर बाजार से विदेशी निवेशक अपना पैसा तेजी से निकाल रहे हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अक्तूबर दिसंबर तिमाही में भारतीय रुपया 1.9 फीसदी कमजोर हो चुका है। इस अवधि में भारतीय मुद्रा 74 रुपये प्रति डॉलर के मुकाबले अब 76 रुपये प्रति डॉलर के पार पहुंच गई है। यहां तक कि पाकिस्तानी रुपये और श्रीलंकाई मुद्रा जैसी दक्षिण एशिया की छोटी करेंसियों के मुकाबले भी रुपये का प्रदर्शन कमजोर दिख सकता है। इसके विपरीत, पिछले 12 महीनों के दौरान अधिकतर एशियाई मुद्राओं ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले बढ़त दर्ज की है। अन्य करेंसियों की बात करें चीन की मुद्रा रेनमिंबी, फिलिपींस की मुद्रा पेसो, दक्षिण कोरिया की मुद्रा वोन, मलेशिया की मुद्रा रिंगित और थाइलैंड की मुद्रा बाट में मजबूती दर्ज की गई।
420 करोड़ डॉलर की निकासी
रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से 420 करोड़ अमेरिकी डॉलर (करीब 31,920 करोड़ रुपये) निकाले हैं। एशिया में ये किसी भी शेयर बाज़ार से निकाली गई सबसे ज्यादा पूंजी है। इसके अलावा कोरोना वायरस के नए संक्रमण ओमिक्रॉन के कारण भारतीय शेयर बाजार पर लगातार दबाव दिख रहा है। ऐसे में निवेशकों की चिंताएं बढ़ी हैं।
ताइवान का डॉलर सबसे अच्छी मुद्रा
ताइवान का डॉलर इस वर्ष एशिया में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली मुद्रा रही। इसने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 6.4 फीसदी की बढ़त दर्ज की। इसके बाद चीन की मुद्रा रेनमिंबी साल के दौरान अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 6.2 फीसदी मजबूत हुई। इसी प्रकार फिलिपींस की मुद्रा पेसो में साल के दौरान 5.2 फीसदी की मजबूती दर्ज की गई, जबकि दक्षिण कोरियाई मुद्रा वोन (4.2 फीसदी) और मलेशियाई रिंगित (1.0 फीसदी) में बढ़त दर्ज की गई। दूसरी ओर, थाइलैंड की मुद्रा बाट, बांग्लादेश की टका और वियतनामी डोंग ने पिछले 12 महीनों के दौरान डॉलर के मुकाबले अपने मूल्य को बनाए रखा।
आम आदमी की जेब पर सीधा असर
बता दें कि भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से आयात करता है। अमेरिकी डॉलर के महंगा होने से रुपया ज्यादा खर्च होगा, क्योंकि विदेशों से सामान खरीदने के लिए रुपये को पहले डॉलर में बदला जाता है। रुपये में कमजोरी से पेट्रोल, डीजल और अन्य पेट्रोलियम उत्पाद महंगे होंगे, जो सीधे तौर पर आपकी जेब पर असर डालेंगे। रुपये में कमजोरी से पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत बढ़ेगी तो माल ढुलाई, यातायात महंगा होगा और इससे आम आदमी के उपयोग के सामनों पर महंगाई भी बढ़ेगी।
विस्तार
विदेशी निवेशक निकाल रहे पैसा
गौरतलब है कि बिकवाली हावी होने का मतलब है कि घरेलू शेयर बाजार से विदेशी निवेशक अपना पैसा तेजी से निकाल रहे हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अक्तूबर दिसंबर तिमाही में भारतीय रुपया 1.9 फीसदी कमजोर हो चुका है। इस अवधि में भारतीय मुद्रा 74 रुपये प्रति डॉलर के मुकाबले अब 76 रुपये प्रति डॉलर के पार पहुंच गई है। यहां तक कि पाकिस्तानी रुपये और श्रीलंकाई मुद्रा जैसी दक्षिण एशिया की छोटी करेंसियों के मुकाबले भी रुपये का प्रदर्शन कमजोर दिख सकता है। इसके विपरीत, पिछले 12 महीनों के दौरान अधिकतर एशियाई मुद्राओं ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले बढ़त दर्ज की है। अन्य करेंसियों की बात करें चीन की मुद्रा रेनमिंबी, फिलिपींस की मुद्रा पेसो, दक्षिण कोरिया की मुद्रा वोन, मलेशिया की मुद्रा रिंगित और थाइलैंड की मुद्रा बाट में मजबूती दर्ज की गई।
420 करोड़ डॉलर की निकासी
रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से 420 करोड़ अमेरिकी डॉलर (करीब 31,920 करोड़ रुपये) निकाले हैं। एशिया में ये किसी भी शेयर बाज़ार से निकाली गई सबसे ज्यादा पूंजी है। इसके अलावा कोरोना वायरस के नए संक्रमण ओमिक्रॉन के कारण भारतीय शेयर बाजार पर लगातार दबाव दिख रहा है। ऐसे में निवेशकों की चिंताएं बढ़ी हैं।
ताइवान का डॉलर सबसे अच्छी मुद्रा
ताइवान का डॉलर इस वर्ष एशिया में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली मुद्रा रही। इसने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 6.4 फीसदी की बढ़त दर्ज की। इसके बाद चीन की मुद्रा रेनमिंबी साल के दौरान अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 6.2 फीसदी मजबूत हुई। इसी प्रकार फिलिपींस की मुद्रा पेसो में साल के दौरान 5.2 फीसदी की मजबूती दर्ज की गई, जबकि दक्षिण कोरियाई मुद्रा वोन (4.2 फीसदी) और मलेशियाई रिंगित (1.0 फीसदी) में बढ़त दर्ज की गई। दूसरी ओर, थाइलैंड की मुद्रा बाट, बांग्लादेश की टका और वियतनामी डोंग ने पिछले 12 महीनों के दौरान डॉलर के मुकाबले अपने मूल्य को बनाए रखा।
आम आदमी की जेब पर सीधा असर
बता दें कि भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से आयात करता है। अमेरिकी डॉलर के महंगा होने से रुपया ज्यादा खर्च होगा, क्योंकि विदेशों से सामान खरीदने के लिए रुपये को पहले डॉलर में बदला जाता है। रुपये में कमजोरी से पेट्रोल, डीजल और अन्य पेट्रोलियम उत्पाद महंगे होंगे, जो सीधे तौर पर आपकी जेब पर असर डालेंगे। रुपये में कमजोरी से पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत बढ़ेगी तो माल ढुलाई, यातायात महंगा होगा और इससे आम आदमी के उपयोग के सामनों पर महंगाई भी बढ़ेगी।