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जर्मनी में उलझती जा रही है चुनावी सूरत: कौन लेगा अंगेला मैर्केल की जगह अभी तक साफ नहीं, लोग नहीं दिखा रहे उत्साह
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, बर्लिन
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Tue, 31 Aug 2021 06:34 PM IST
सार
विश्लेषकों का कहना है कि देश में मतदाताओं की ठोस गोलबंदी का फिलहाल अभाव दिख रहा है, जबकि अब मतदान में चार हफ्तों से भी कम समय बचा है। पहली बहस को आमतौर पर फीका माना गया है…
एंजेला मर्केल और ओलफ शोल्ज
– फोटो : Agency (File Photo)
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जर्मनी के सरकारी मीडिया डायचे विले की वेबसाइट पर छपी एक टिप्पणी के मुताबिक फिलहाल जर्मन मतदाताओं में चांसलर पद के उम्मीदवार किसी नेता को लेकर उत्साह नहीं दिख रहा है। इसलिए चुनावी सूरत अस्पष्ट बनी हुई है। शुरुआत में मैर्केल की पार्टी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) और उसकी सहयोगी पार्टी क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) के साझा उम्मीदवार अरमिन लैशेट सबसे आगे थे। लेकिन हाल में उनकी लोकप्रियता में गिरावट आई है। ग्रीन पार्टी की उम्मीदवार अनालेना बेयरबॉक की लोकप्रियता उनसे भी ज्यादा तेजी से गिरी है।
इसका फायदा एपसीडी के उम्मीदवार ओलफ शोल्ज को मिला है। आरंभ में उनके जीतने की कोई संभावना नहीं समझी जा रही थी। डायचे विले की टिप्पणी में कहा गया है कि शोल्ज अब सबसे आगे हैं। ये बात मानना खुद शोल्ज के लिए भी मुश्किल साबित हो रही है। शोल्ज अब लैशेट की तुलना में दो से तीन फीसदी आगे माने जा रहे हैं। उन्हें 24 फीसदी तक वोट मिलने की संभावना जताई गई है। एसपीडी को पिछले 15 साल में इतने वोट कभी नहीं मिले।
जिस दूसरी सूरत का अनुमान लगाया जा रहा है, उसके मुताबिक सीडीयू-सीएसयू गठबंधन फ्री डेमोक्रेट्स नाम की पार्टी के साथ मिल कर सरकार बना सकता है। ग्रीन पार्टी इस गठबंधन में भी शामिल हो सकती है। जर्मनी में चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर होते हैं। इसलिए अकसर किसी पार्टी के लिए पूर्ण बहुमत हासिल करना मुश्किल बना रहता है।
जर्मनी यूरोपियन यूनियन के भीतर सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। अंगेला मैर्केल के दौर में जर्मनी ने अमेरिका का पिछलग्गू रहने के बजाय स्वतंत्र नीति अपनाई। मैर्केल ने रूस और चीन के साथ जर्मनी के संबंध मजबूत किए। इसलिए विश्लेषकों ने कहा है कि 26 सितंबर को होने वाले चुनाव के नतीजे का जो बाइडन, शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन को भी बेसब्री से इंतजार रहेगा।
विस्तार
जर्मनी के सरकारी मीडिया डायचे विले की वेबसाइट पर छपी एक टिप्पणी के मुताबिक फिलहाल जर्मन मतदाताओं में चांसलर पद के उम्मीदवार किसी नेता को लेकर उत्साह नहीं दिख रहा है। इसलिए चुनावी सूरत अस्पष्ट बनी हुई है। शुरुआत में मैर्केल की पार्टी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) और उसकी सहयोगी पार्टी क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) के साझा उम्मीदवार अरमिन लैशेट सबसे आगे थे। लेकिन हाल में उनकी लोकप्रियता में गिरावट आई है। ग्रीन पार्टी की उम्मीदवार अनालेना बेयरबॉक की लोकप्रियता उनसे भी ज्यादा तेजी से गिरी है।
इसका फायदा एपसीडी के उम्मीदवार ओलफ शोल्ज को मिला है। आरंभ में उनके जीतने की कोई संभावना नहीं समझी जा रही थी। डायचे विले की टिप्पणी में कहा गया है कि शोल्ज अब सबसे आगे हैं। ये बात मानना खुद शोल्ज के लिए भी मुश्किल साबित हो रही है। शोल्ज अब लैशेट की तुलना में दो से तीन फीसदी आगे माने जा रहे हैं। उन्हें 24 फीसदी तक वोट मिलने की संभावना जताई गई है। एसपीडी को पिछले 15 साल में इतने वोट कभी नहीं मिले।