Sports

गरीबी की मार: मुफलिसी में जीवन बिता रहे ओडिशा के पूर्व हॉकी खिलाड़ी संतोष

Posted on

सार

ओडिशा के पूर्व हॉकी खिलाड़ी संतोष माझी गरीबी में जीवन बिता रहे हैं। हॉकी खिलाड़ी संतोष ने सीनियर नेशनल मेन्स चैंपियनशिप में राज्य का प्रतिनिधित्व  कर चुके हैं। लेकिन मौजूदा समय में वह प्रवासी मजदूर के तौर पर काम कर रहे हैं। 

ख़बर सुनें

ख़बर सुनें

टोक्यो ओलंपिक में हाल ही में भारतीय हॉकी पुरुष टीम ने जर्मनी को 5-4 से हराकर कांस्य पदक जीता। पुरुष हॉकी टीम को ओलंपिक में मिली इस सफलता के बाद ऐसा कहा जा रहा है कि भारतीय हॉकी अपनी सुपर पावर वाली स्थिति में लौट रही है। लेकिन दूसरी तरफ हॉकी का एक स्याह पक्ष भी है जिसके बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है। दरअसल ओडिशा के एक 26 वर्षीय पूर्व हॉकी खिलाड़ी जिन्होंने सीनियर नेशनल मेन्स चैंपियनशिप में राज्य का प्रतिनिधित्व किया वह इन दिनों प्रवास मजूदर के तौर पर काम करके अपनी गुजर-बसर कर रहे हैं। 

ओ़डिशा के सुंदरगढ़ जिले के लुलकिडीही गांव के रहने वाले आदिवासी हॉकी खिलाड़ी संतोष माझी गंगपुर-ओडिशा के लिए 2013 और 2014 में सीनियर मेन्स हॉकी चैंपियनशिप में खेल चुके हैं। इस दौरान उन्होंने कई बार बेहरीन प्रदर्शन करते हुए टीम को हार से बचाया। लेकिन सात साल बाद संतोष की दुनिया हॉकी की दुनिया से बहुत दूर हो गई। क्योंकि बीते साल वह गोवा चले गए जहां संतोष मछली पकड़ने के जहाजों में काम करते हैं जिसके बदले उन्हें 6,000 रुपये प्रति माह मिलते हैं। 

संतोष के मुताबिक, मेरे पास काम करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है, हॉकी में मेरा भविष्य नहीं बचा है, हालांकि मैं खेलना पसंद करता हूं। लुलकिडीही गांव एक ऐसी जगह है जहां दीपग्रेस इक्का और इग्नेस ट्रिकी जैसे हॉकी खिला़ड़ियों ने जन्म लिया।  लुलुलकिडीही को सौनामारा गांव के साथ ओडिशा में हॉकी की नर्सरी माना जाता है, जहां से भारत के पूर्व कप्तान दिलीप टिर्की का ताल्लुक है। 

सुंदरगढ़ जिले में रहने वाले अधिकांश आदिवासियों के बच्चों की तरह संतोष माझी ने भी 11 साल की उम्र में हाथ में हॉकी पकड़ ली और पनपोश जाकर स्पोर्ट्स हॉस्टल ज्वाइन कर लिया। संतोष ने जब हॉकी खेलना शुरू किया तो उन्होंने अपने पिता से वादा किया था कि वह उन्हें दैनिक मजदूरी करने से मुक्ति दिलाएंगे। छात्रावास में वह एक डिफेंडर के रूप में उभरे और 2013 और 2014 में हॉकी गंगपुर टीम के लिए खेले। 2015 में स्पोर्ट्स हॉस्टल छोड़ने के बाद उन्होंने 2016, 2017 और 2018 में अखिल भारतीय मेजर पोर्ट्स हॉकी चैंपियनशिप में पारादीप पोर्ट ट्रस्ट का प्रतिनिधित्व किया। लेकिन उन्हें इस दौरान नौकरी नहीं मिली। 

संतोष माझी कहते हैं कि उन्होंने साल 2016 में खेल कोटे से भारतीय सेना में शामिल होने की कोशिश की लेकिन मेडिकल टेस्ट के दौरान उन्हें डिस्क्वालीफाई कर दिया गया। इसके अलावा उनकी एक और समस्या थी कि हाथ में फ्रैक्चर होने की वजह से साल 2016 में वह हायर सेकेंडरी की परीक्षा पूरी नहीं कर पाए। इसके बाद उनकी समस्याएं बढ़ती चली गईं। जिसके बाद वह मजदूरी करने पर मजबूर हो गए। 

विस्तार

टोक्यो ओलंपिक में हाल ही में भारतीय हॉकी पुरुष टीम ने जर्मनी को 5-4 से हराकर कांस्य पदक जीता। पुरुष हॉकी टीम को ओलंपिक में मिली इस सफलता के बाद ऐसा कहा जा रहा है कि भारतीय हॉकी अपनी सुपर पावर वाली स्थिति में लौट रही है। लेकिन दूसरी तरफ हॉकी का एक स्याह पक्ष भी है जिसके बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है। दरअसल ओडिशा के एक 26 वर्षीय पूर्व हॉकी खिलाड़ी जिन्होंने सीनियर नेशनल मेन्स चैंपियनशिप में राज्य का प्रतिनिधित्व किया वह इन दिनों प्रवास मजूदर के तौर पर काम करके अपनी गुजर-बसर कर रहे हैं। 

Source link

Click to comment

Most Popular