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कोरोना के साइड इफेक्ट : घबराहट खराब करने लगी बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, महामारी में दोगुने हुए मामले
अमर उजाला रिसर्च टीम, नई दिल्ली।
Published by: योगेश साहू
Updated Tue, 19 Oct 2021 05:44 AM IST
सार
घबराहट की वजह से शरीर में धड़कन तेज होना, पेट में कुछ घुमड़ने का एहसास होना, चिंता और बेचैनी का अनुभव होने लगता है। बच्चों को इम्तिहान देने से पहले या ऐसी ही किसी तनाव वाली स्थिति में इस समस्या से जूझना पड़ सकता है।
स्कूली बच्चे (फाइल फोटो)
– फोटो : अमर उजाला
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क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी ब्रिस्बेन में शिक्षा विभाग की वरिष्ठ प्राध्यापक एलिजाबेथ जे एडवर्ड्स के मुताबिक, अकेले ऑस्ट्रेलिया में हर सात में से एक नागरिक बेचैनी से गुजर रहा है। वहीं, बच्चों में तो यह स्थिति ज्यादा चिंताजनक हो गई है। देशभर में 6.1 फीसदी लड़कियां और 7.6 फीसदी लड़के यह नकारात्मक एहसास झेल रहे हैं।
क्या है घबराहट
घबराहट की वजह से शरीर में धड़कन तेज होना, पेट में कुछ घुमड़ने का एहसास होना, चिंता और बेचैनी का अनुभव होने लगता है। बच्चों को इम्तिहान देने से पहले या ऐसी ही किसी तनाव वाली स्थिति में इस समस्या से जूझना पड़ सकता है। जब घबराहट असहनीय हो जाए तो यह हमारे रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करते हुए बड़ी समस्या बन जाती है।
घबराहट के केस दोगुने
अध्ययनों का कहना है कि बच्चों में घबराहट शुरू होने की औसतन आयु 11 वर्ष देखी गई है। गौर करने वाली बात है कि ये आंकड़े महामारी से पहले के हैं। लेकिन जर्नल फॉर द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (जामा) द्वारा इस साल अगस्त में प्रकाशित शोध का कहना है, दुनियाभर में 25 फीसदी युवा अत्यधिक घबराहट से पीड़ित हैं। अध्ययन में बताया गया कि पहले के आंकड़ों की तुलना में कोरोना काल में अवसाद और घबराहट के मामले दोगुने हो गए हैं।
अकादमिक प्रदर्शन पर यूं डालती है असर
ध्यान देने वाले विषयों के चयन (अटेंशन कंट्रोल) के सिद्धांत के अनुसार, घबराहट मानसिक क्षमताओं को प्रभावित करती है। वयस्कों में कामकाज के स्तर पर इसका बुरा प्रभाव होता है, तो बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर। अधिक घबराहट का सामना कर रहे बच्चों का ध्यान कक्षा में अपने काम के बजाय चिंताजनक विचारों की ओर बना रह सकता है।
इन उपायों से करें बच्चों की मदद
- घबराहट से गुजर रहे बच्चों का हौसला बढ़ाएं
- विफलताओं के बाद नया करने में ध्यान लगाएं
- उनकी छोटी-छोटी सफलताओं या प्रयासों की प्रशंसा करें और आगामी सुधार से अवगत कराएं
- उनके विचार और भावनाओं पर गौर करें, उनकी बातें सुनें और लचीला रवैया अपनाएं
विस्तार
क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी ब्रिस्बेन में शिक्षा विभाग की वरिष्ठ प्राध्यापक एलिजाबेथ जे एडवर्ड्स के मुताबिक, अकेले ऑस्ट्रेलिया में हर सात में से एक नागरिक बेचैनी से गुजर रहा है। वहीं, बच्चों में तो यह स्थिति ज्यादा चिंताजनक हो गई है। देशभर में 6.1 फीसदी लड़कियां और 7.6 फीसदी लड़के यह नकारात्मक एहसास झेल रहे हैं।
क्या है घबराहट
घबराहट की वजह से शरीर में धड़कन तेज होना, पेट में कुछ घुमड़ने का एहसास होना, चिंता और बेचैनी का अनुभव होने लगता है। बच्चों को इम्तिहान देने से पहले या ऐसी ही किसी तनाव वाली स्थिति में इस समस्या से जूझना पड़ सकता है। जब घबराहट असहनीय हो जाए तो यह हमारे रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करते हुए बड़ी समस्या बन जाती है।
घबराहट के केस दोगुने
अध्ययनों का कहना है कि बच्चों में घबराहट शुरू होने की औसतन आयु 11 वर्ष देखी गई है। गौर करने वाली बात है कि ये आंकड़े महामारी से पहले के हैं। लेकिन जर्नल फॉर द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (जामा) द्वारा इस साल अगस्त में प्रकाशित शोध का कहना है, दुनियाभर में 25 फीसदी युवा अत्यधिक घबराहट से पीड़ित हैं। अध्ययन में बताया गया कि पहले के आंकड़ों की तुलना में कोरोना काल में अवसाद और घबराहट के मामले दोगुने हो गए हैं।
अकादमिक प्रदर्शन पर यूं डालती है असर
ध्यान देने वाले विषयों के चयन (अटेंशन कंट्रोल) के सिद्धांत के अनुसार, घबराहट मानसिक क्षमताओं को प्रभावित करती है। वयस्कों में कामकाज के स्तर पर इसका बुरा प्रभाव होता है, तो बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर। अधिक घबराहट का सामना कर रहे बच्चों का ध्यान कक्षा में अपने काम के बजाय चिंताजनक विचारों की ओर बना रह सकता है।
इन उपायों से करें बच्चों की मदद
- घबराहट से गुजर रहे बच्चों का हौसला बढ़ाएं
- विफलताओं के बाद नया करने में ध्यान लगाएं
- उनकी छोटी-छोटी सफलताओं या प्रयासों की प्रशंसा करें और आगामी सुधार से अवगत कराएं
- उनके विचार और भावनाओं पर गौर करें, उनकी बातें सुनें और लचीला रवैया अपनाएं