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कुदरत का अजूबा : रोज अपने 20 दांत बदलती है यह मछली, अमेरिकी वैज्ञानिकों ने तलाशा

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सार

नई खोज के मुताबिक, पैसिफिक लिंकोड मछली के सुई जैसे तीखे 500 दांत होते हैं। वह इनसे समुद्री जीवों को चबा जाती है। दांतों को नुकीला बनाए रखने का रहस्य भी रोचक है।

पैसिफिक लिंकोड मछली
– फोटो : अमर उजाला

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पैसिफिक लिंकोड मछली के मुंह में कोई अंगुली डालने की हिम्मत नहीं करता। वजह, 5 फुट और 80 पाउंड की इस मछली के जबड़ों में 500 सुई जैसे दांत होते हैं। इनसे वह सख्त समुद्री जीव चबा जाती है। दांतों को नुकीला बनाए रखने का रहस्य भी रोचक है।

रॉयल सोसायटी बी की रिपोर्ट के अनुसार, लिंकोड के नुकीले दांतों का रहस्य रोज उगने वाले नए सेट में छिपा है। यह 20 नए दांत रोज उगाती है, जो पुरानी दांतों की जगह लेते हैं। वाशिंगटन विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ताओं की रिपोर्ट के अनुसार, अगर मनुष्य में भी ऐसी खासियत हो तो हमारा एक दांत रोज टूटे और उसकी जगह नया आ जाए।

अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, शार्क में भी दांतों के कई सेट होते हैं, जो पुराने दांतों की जगह निरंतर लेते रहते हैं। लेकिन शार्क के दांत लिंकोड से काफी अलग होते हैं। लिंकोड की 20% आबादी चमकदार हरे या नीले रंग की होती है। इसका कारण भी अब तक वैज्ञानिक नहीं जान पाए हैं। इसे एक अच्छा सी-फूड माना जाता है।

इस प्रकार किया अध्ययन
कारले कोहन और उनके साथियों ने 20 दिन लिंकोड के दांतो की वृद्धि पर यह अध्ययन किया। उन्होंने मछलियों को पहले लाल रंग की डाई के टैंक में रखा जिससे उनके दांत लाल हो गए। 10 दिन दूसरे टैंक में रखा गया। फिर हरे रंग की डाई के टैंक में छोड़ा गया। विश्लेषण में पाया कि पहले दिन से इन मछलियों में मौजूद दांत लाल और हरे यही दोनों रंगों के हो चुके थे। वहीं, नए दांत केवल हरे रंग के थे।

10,000 दांतों का विश्लेषण
अध्ययन के दौरान शोधार्थियों ने लिंकोड के करीब 10,000 दांतों का विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि ये दांत तेजी से बदलते और उगते हैं। शोधार्थियों में शामिल दक्षिण फ्लोरिडा विश्वविद्यालय की एमिली कार के अनुसार यह बेहद अनोखी बात है। इन मछलियों में दो प्रकार के जबड़ों के सेट होते हैं। पहला मुंह में, जो शिकार पकड़ने व कुचलने में काम आता है। दूसरा गले में, जिसमें लगे दांत शिकार चबाने और पेट में पहुंचाने के काम आते हैं। भीतरी जबड़े में मौजूद दांत सबसे ज्यादा बदलते हैं।

मनुष्य की तरह आते हैं बदलाव
लिंकोड के दांतों की एक और अनूठी बात सामने आई कि इनके बदलाव बहुत कुछ मनुष्य के दांतों जैसे हैं। यानी जो दांत टूटता है, उसकी जगह, उसी श्रेणी का नया दांत आता है। कोई भी दांत अपनी पूर्व निर्धारित अवस्था से बड़ा नहीं होता।

विस्तार

पैसिफिक लिंकोड मछली के मुंह में कोई अंगुली डालने की हिम्मत नहीं करता। वजह, 5 फुट और 80 पाउंड की इस मछली के जबड़ों में 500 सुई जैसे दांत होते हैं। इनसे वह सख्त समुद्री जीव चबा जाती है। दांतों को नुकीला बनाए रखने का रहस्य भी रोचक है।

रॉयल सोसायटी बी की रिपोर्ट के अनुसार, लिंकोड के नुकीले दांतों का रहस्य रोज उगने वाले नए सेट में छिपा है। यह 20 नए दांत रोज उगाती है, जो पुरानी दांतों की जगह लेते हैं। वाशिंगटन विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ताओं की रिपोर्ट के अनुसार, अगर मनुष्य में भी ऐसी खासियत हो तो हमारा एक दांत रोज टूटे और उसकी जगह नया आ जाए।

अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, शार्क में भी दांतों के कई सेट होते हैं, जो पुराने दांतों की जगह निरंतर लेते रहते हैं। लेकिन शार्क के दांत लिंकोड से काफी अलग होते हैं। लिंकोड की 20% आबादी चमकदार हरे या नीले रंग की होती है। इसका कारण भी अब तक वैज्ञानिक नहीं जान पाए हैं। इसे एक अच्छा सी-फूड माना जाता है।

इस प्रकार किया अध्ययन

कारले कोहन और उनके साथियों ने 20 दिन लिंकोड के दांतो की वृद्धि पर यह अध्ययन किया। उन्होंने मछलियों को पहले लाल रंग की डाई के टैंक में रखा जिससे उनके दांत लाल हो गए। 10 दिन दूसरे टैंक में रखा गया। फिर हरे रंग की डाई के टैंक में छोड़ा गया। विश्लेषण में पाया कि पहले दिन से इन मछलियों में मौजूद दांत लाल और हरे यही दोनों रंगों के हो चुके थे। वहीं, नए दांत केवल हरे रंग के थे।

10,000 दांतों का विश्लेषण

अध्ययन के दौरान शोधार्थियों ने लिंकोड के करीब 10,000 दांतों का विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि ये दांत तेजी से बदलते और उगते हैं। शोधार्थियों में शामिल दक्षिण फ्लोरिडा विश्वविद्यालय की एमिली कार के अनुसार यह बेहद अनोखी बात है। इन मछलियों में दो प्रकार के जबड़ों के सेट होते हैं। पहला मुंह में, जो शिकार पकड़ने व कुचलने में काम आता है। दूसरा गले में, जिसमें लगे दांत शिकार चबाने और पेट में पहुंचाने के काम आते हैं। भीतरी जबड़े में मौजूद दांत सबसे ज्यादा बदलते हैं।

मनुष्य की तरह आते हैं बदलाव

लिंकोड के दांतों की एक और अनूठी बात सामने आई कि इनके बदलाव बहुत कुछ मनुष्य के दांतों जैसे हैं। यानी जो दांत टूटता है, उसकी जगह, उसी श्रेणी का नया दांत आता है। कोई भी दांत अपनी पूर्व निर्धारित अवस्था से बड़ा नहीं होता।

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