हिंदी सिनेमा को ‘प्यासा’ जैसी फिल्म देने वाले गुरुदत्त बेहद भावुक इंसान थे। उनकी खुद की जिंदगी भी पर्दे पर चलने वाली फिल्म की ही तरह थी। वो जब किसी कहानी को पर्दे पर उतारते थे, तो वो असल जिंदगी का किरदार बन जाती थी। उनकी जिंदगी की कहानी की तरह ही मौत की कहानी भी सस्पेंस समेटे हुए है। गुरुदत्त की मौत को कोई आत्महत्या बताता है, तो कोई हत्या तो कोई सामान्य मौत। उनकी आखिरी रात को लेकर भी कई किस्से प्रचलित हैं। असल में गुरुदत्त की जिंदगी प्रेम त्रिकोण में फंसी हुई जिंदगी थी, जिसमें इंसान अपनी भावनाओं पर काबू नहीं पा पाता। अपनी मौत से पहले ही गुरुदत्त कहकर चले गये थे ”मैं रिटायर होना चाहता हूं’।