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कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा तो देख ली: अब जानें उन्हें बसाने के लिए मोदी सरकार ने क्या-क्या किया और क्या है आगे की योजना?

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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Tue, 15 Mar 2022 12:53 PM IST

सार

The Kashmir Files: अमर उजाला आपको बता रहा है कि अब तक की सरकारों ने कश्मीरी पंडितों को वापस बसाने के लिए क्या कदम उठाए हैं और आखिर अनुच्छेद 370 हटाने के बाद मोदी सरकार की योजना क्या है?

सरकार ने जारी रखी हैं कश्मीरी पंडितों को घाटी में बसाने की कोशिशें।
– फोटो : अमर उजाला।


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जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के हटने और राज्य के दो टुकड़े कर इसे केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद से पूरी दुनिया में यह सवाल उठ रहे हैं कि आखिर मोदी सरकार की योजना क्या है। गृह मंत्री अमित शाह ने पहले ही साफ किया था कि सरकार की प्राथमिकता घाटी को आतंकवाद से मुक्त कराना है। हालांकि, उन्होंने यह भी दावा किया था कि सरकार जल्द ही कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास का काम पूरा करेगी। इस बीच, यह सवाल लगातार उठते रहे हैं कि आखिर कश्मीरी पंडितों के राज्य छोड़ने के बाद उन्हें दोबारा बसाने के लिए क्या प्रयास हुए और आखिर क्यों पिछले 32 वर्षों में उन्हें दोबारा घाटी में बसाने में दिक्कतें आ रही हैं?

अमर उजाला आपको बता रहा है कि 1990 से लेकर अब तक की सरकारों ने इस मुद्दे पर क्या कदम उठाए हैं? हम आपको यह भी बताने की कोशिश करेंगे कि आखिर मोदी सरकार की योजना क्या है और अब तक कितना काम पूरा हो चुका है। साथ ही सरकार के अब तक के दावे और कश्मीरी पंडितों की मांगें क्या-क्या हैं?

सबसे पहले जानिए सरकारी आंकड़ों में कितने कश्मीरी पंडित विस्थापित?
1990 में कश्मीर से विस्थापित हुए लोगों के लिए बनाए गए राहत कार्यालय की रिपोर्ट के मुताबिक, आतंकी हिंसा के चलते घाटी से कुल 44 हजार 167 परिवार भागने के लिए मजबूर हुए थे। इनमें से 39 हजार 782 परिवार हिंदुओं के थे, जबकि बाकी परिवार सिख, बौद्ध और मुस्लिम समुदाय से थे। 1990 में कश्मीर छोड़ने वालों में 90 फीसदी कश्मीरी हिंदू थे, जिनमें बड़ी संख्या कश्मीरी पंडितों की थी। इसके बाद गुर्जर, दलित और अन्य समुदाय आते हैं। हालांकि, सरकार के बयान में कश्मीरी पंडितों की संख्या का जिक्र नहीं मिलता। जम्मू-कश्मीर सरकार की वेबसाइट के मुताबिक, घाटी में हिंसा के बाद लगभग 1.6 लाख से लेकर तीन लाख कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़ना पड़ा था। 

2015 में भी लोकसभा में कश्मीरियों के विस्थापन पर जो सवाल पूछा गया था, उसके जवाब में सरकार ने बताया था कि 1990 के शुरुआती वर्षों में 62 हजार ऐसे परिवार थे, जिन्हें आतंकवाद की वजह से घाटी छोड़नी पड़ी। 17 मार्च 2020 को जब यही सवाल दोहराया गया, तो गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने बताया कि 1990 के बाद से 64 हजार 951 कश्मीरियों के परिवार घाटी छोड़ चुके थे। 

अलग-अलग दावों में विस्थापित पंडितों के अलग-अलग आंकड़े
माना जाता है कि सरकार की ओर से विस्थापित कश्मीरी पंडितों की संख्या ठीक से इसलिए नहीं बताई जा सकी, क्योंकि उनके पंजीकरण की संख्या साल दर साल लगातार बढ़ती रही है। कश्मीर पर किताब लिखने वाले एलेक्जेंडर इवान्स का मानना है कि 1990 के बाद कश्मीर छोड़ने वाले कुल हिंदुओं में से करीब 1.6-1.7 लाख कश्मीरी पंडित थे, जिनकी संख्या ज्यादा भी हो सकती है। वहीं, नोरविजियन रिफ्यूजी काउंसिल के इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर के आंकड़ों की मानें तो 1990 के बाद से 2.50 लाख पंडित विस्थापित हुए। 

इसके अलावा अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के आंकड़ों में कहा गया है कि आतंकी हिंसा के बाद कश्मीर से तीन लाख पंडित विस्थापित हुए थे। उधर कश्मीर और अनुच्छेद 370 पर किताबें और लेख लिखने वाले सुप्रीम कोर्ट के चर्चित वकील एजी नूरानी के मुताबिक, घाटी को छोड़ने वाली कश्मीरियों की संख्या कभी सही तौर पर सामने नहीं आई और यह आंकड़ा सात से आठ लाख के बीच भी हो सकता है। 

फिलहाल कश्मीरी पंडितों के परिवार कहां बसे?
ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 1990 के बाद कश्मीर छोड़ चुके 64 हजार 951 परिवारों में से सबसे ज्यादा 43 हजार 618 परिवार जम्मू में रह रहे हैं। इसके बाद दूसरा नंबर दिल्ली का है, जहां 19 हजार 338 कश्मीरियों के परिवार बसे हैं। इसके अलावा 1995 परिवार बाकी राज्यों में रह रहे हैं। सरकार ने इनमें कश्मीरी पंडितों का स्पष्ट आंकड़ा नहीं बताया। लेकिन इन परिवारों की संख्या 52 हजार से 57 हजार परिवारों के बीच मानी जा सकती है। 

कश्मीरी पंडितों को बसाने के लिए अब तक क्या हुआ?
पुनर्वास और मदद पहुंचाने की पहली वृहद पुनर्वास योजना कश्मीरी पंडितों के विस्थापन के 18 साल बाद कांग्रेस सरकार लेकर आई। इसके तहत कश्मीरी पंडितों के लिए बजट में 1618.4 करोड़ रुपये का प्रावधान हुआ। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने पंडितों को राहत देने जैसी कई योजनाओं का एलान किया, जिसे बाद में मोदी सरकार ने जोर-शोर से आगे बढ़ाया। 

2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने जम्मू-कश्मीर के लिए प्रधानमंत्री विकास पैकेज (पीएमडीपी) का एलान किया। इसके तहत जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए 80 हजार 68 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया और कश्मीरी पंडितों को घाटी में वापस बसाने के लिए कई योजनाओं पर काम शुरू हुआ।

1. आर्थिक मदद
1990 में विस्थापन का शिकार हुए कश्मीरी पंडितों को बसाने के लिए केंद्र और जम्मू-कश्मीर सरकार ने अलग-अलग समय पर राहत योजनाएं शुरू कीं। इसके तहत शुरुआत में प्रत्येक विस्थापित परिवार को 500 रुपये की मदद का एलान किया गया। मोदी सरकार में फिलहाल प्रत्येक परिवार को लगभग 13 हजार रुपये की मदद दी जा रही है। यानी 3250 रुपये प्रति व्यक्ति की दर से। इसके अलावा जिन राज्यों में कश्मीरी पंडित बसे हैं, वहां भी राज्य सरकारें अपने स्तर पर प्रवासियों के लिए आर्थिक मदद और आरक्षण से जुड़ी योजनाएं चला रही हैं।

2. गृह-पुनर्वास
2004 में कांग्रेस सरकार ने कश्मीरी प्रवासियों के लिए जम्मू के चार क्षेत्रों- पुरखू, मुथी, नगरौटा और जगती में दो कमरों की 5242 कॉलोनियों का निर्माण कराया और इनमें लोगों को बसाया गया। इसके अलावा कश्मीर घाटी के बडगाम स्थित शेखपुरा में भी 200 फ्लैट्स का निर्माण कराया गया, जिन्हें राज्य सरकार के अंतर्गत काम करने वाले कर्मचारियों को अलॉट किया। 

2008 में प्रत्येक परिवार को घर के निर्माण या मरम्मत के लिए 7.5 लाख रुपये की मदद का वादा किया गया। बताया जाता है कि कांग्रेस की तरफ से लाई गई यह योजना कुछ समय बाद बंद हो गई थी। लेकिन मोदी सरकार की तरफ से 2015 में जारी हुए राहत पैकेज में इसे दोबारा शुरू किया गया। 

3. नौकरी
2008 के राहत पैकेज में तीन हजार कश्मीरी पंडितों को पहले चरण में सरकारी नौकरी देने का वादा किया गया। छात्रों को स्कॉलरशिप के अलावा कर्ज की दरों में छूट की बात भी कही गई। नवंबर 2015 तक महज 1963 पंडितों को ही राज्य सरकार की नौकरी मिल पाई थी। लेकिन 2015 के पीएम राहत पैकेज के तहत इसके बाद कश्मीर घाटी में छह हजार सरकारी पद निकाले गए, जिनमें 3800 कश्मीरी प्रवासियों को नौकरी दी गई। ये प्रवासी फिलहाल कश्मीर के श्रीनगर, बडगाम, बारामूला, शोपियां, कुलगाम, कुपवाड़ा, पुलवामा, बांदीपोरा, अनंतनाग और गांदरबल में काम कर रहे हैं। सरकार के मुताबिक कई और नौकरियां अभी पाइपलाइन में हैं। 

अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीरी प्रवासियों के हालात में क्या बदलाव?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छीन लिया और इससे लद्दाख को अलग कर केंद्र शासित प्रदेश बनाने का एलान किया गया। सरकार ने इस कदम के साथ ही कश्मीरी पंडितों के घाटी में पुनर्वास की कोशिशों को तेज किया है।  

मोदी सरकार के आने और अनुच्छेद 370 हटने के बाद तक क्या हुआ?
1. कश्मीरी पंडितों को लेकर 2015 में दूसरी वृहद योजना का एलान किया गया था। इसके लागू होने के बाद 2017 से 2022 के बीच पांच साल के अंतराल में 610 कश्मीरी पंडितों को उनके कश्मीर स्थित घर लौटाए जा चुके हैं। कश्मीरी पंडितों का एक बड़ा तबका ये सभी घर 1980-90 के दौर में छोड़कर भागने को मजबूर हुआ था। 

2. सरकार का कहना है कि 5 अगस्त 2019 के बाद से ही अब तक 1700 कश्मीरी पंडितों को सरकारी नौकरियां मिली हैं। राज्यसभा में दिए लिखित जवाब में गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने बताया था कि कश्मीरी प्रवासी परिवारों को दोबारा इस केंद्र शासित प्रदेश में बसाने के काम में 2019 से तेजी लाई गई और इस साल फरवरी तक पहले 1697 और फिर 1140 अतिरिक्त नौकरियां दी गईं। 2015 के बाद से अब तक 3800 से ज्यादा प्रवासी नौकरियों के लिए घाटी लौट चुके हैं। इसके अलावा 2021 में ही दो हजार और प्रवासियों के लौटने की संभावना जताई जा चुकी है।

3. कश्मीरी पंडितों के लिए घाटी में सरकारी नौकरी के साथ रहने की व्यवस्था भी की जा रही है। इसी के तहत फिलहाल कश्मीर में 920 करोड़ रुपये की लागत से 6000 ट्रांजिट घर बनाए जा रहे हैं। सरकारी नौकरियों में कश्मीरी पंडितों की संख्या बढ़ने के साथ ही उन्हें रहने के लिए ये जगहें दी जाएंगी। जिन 19 जगहों पर ये फ्लैट बनाए जा रहे हैं उनमें बांदीपोरा, बारामूला, बडगाम समेत कई जगहें शामिल हैं। इसके अलावा अस्थायी व्यवस्था के तौर पर सरकार ने लौटे लोगों के लिए 1025 शेल्टर बना दिए हैं। 

क्या रही है कश्मीरी पंडितों की मौजूदा मांगें?
कश्मीरी पंडितों ने हाल ही में बजट पेश होने से पहले मांग की थी कि केंद्र शासित प्रदेश के सालाना बजट में से 2.5 फीसदी को प्रवासियों के पुनर्वास के लिए खर्च किया जाना चाहिए। इसके साथ ही कश्मीरी पंडितों की मांग थी कि सरकार जल्द से जल्द अधिवास प्रमाणपत्र यानी डोमिसाइल सर्टिफिकेट लोगों के लिए जारी करे, ताकि कश्मीरी पंडितों को घाटी में अपना हक मिले और वे कश्मीर की मुख्यधारा में लौटें। इसके अलावा परिवारों ने मिलने वाली राहत राशि को भी 13 हजार से बढ़ाकर 25 हजार करने की मांग उठाई है। 

विस्तार

जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के हटने और राज्य के दो टुकड़े कर इसे केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद से पूरी दुनिया में यह सवाल उठ रहे हैं कि आखिर मोदी सरकार की योजना क्या है। गृह मंत्री अमित शाह ने पहले ही साफ किया था कि सरकार की प्राथमिकता घाटी को आतंकवाद से मुक्त कराना है। हालांकि, उन्होंने यह भी दावा किया था कि सरकार जल्द ही कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास का काम पूरा करेगी। इस बीच, यह सवाल लगातार उठते रहे हैं कि आखिर कश्मीरी पंडितों के राज्य छोड़ने के बाद उन्हें दोबारा बसाने के लिए क्या प्रयास हुए और आखिर क्यों पिछले 32 वर्षों में उन्हें दोबारा घाटी में बसाने में दिक्कतें आ रही हैं?

अमर उजाला आपको बता रहा है कि 1990 से लेकर अब तक की सरकारों ने इस मुद्दे पर क्या कदम उठाए हैं? हम आपको यह भी बताने की कोशिश करेंगे कि आखिर मोदी सरकार की योजना क्या है और अब तक कितना काम पूरा हो चुका है। साथ ही सरकार के अब तक के दावे और कश्मीरी पंडितों की मांगें क्या-क्या हैं?

सबसे पहले जानिए सरकारी आंकड़ों में कितने कश्मीरी पंडित विस्थापित?

1990 में कश्मीर से विस्थापित हुए लोगों के लिए बनाए गए राहत कार्यालय की रिपोर्ट के मुताबिक, आतंकी हिंसा के चलते घाटी से कुल 44 हजार 167 परिवार भागने के लिए मजबूर हुए थे। इनमें से 39 हजार 782 परिवार हिंदुओं के थे, जबकि बाकी परिवार सिख, बौद्ध और मुस्लिम समुदाय से थे। 1990 में कश्मीर छोड़ने वालों में 90 फीसदी कश्मीरी हिंदू थे, जिनमें बड़ी संख्या कश्मीरी पंडितों की थी। इसके बाद गुर्जर, दलित और अन्य समुदाय आते हैं। हालांकि, सरकार के बयान में कश्मीरी पंडितों की संख्या का जिक्र नहीं मिलता। जम्मू-कश्मीर सरकार की वेबसाइट के मुताबिक, घाटी में हिंसा के बाद लगभग 1.6 लाख से लेकर तीन लाख कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़ना पड़ा था। 

2015 में भी लोकसभा में कश्मीरियों के विस्थापन पर जो सवाल पूछा गया था, उसके जवाब में सरकार ने बताया था कि 1990 के शुरुआती वर्षों में 62 हजार ऐसे परिवार थे, जिन्हें आतंकवाद की वजह से घाटी छोड़नी पड़ी। 17 मार्च 2020 को जब यही सवाल दोहराया गया, तो गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने बताया कि 1990 के बाद से 64 हजार 951 कश्मीरियों के परिवार घाटी छोड़ चुके थे। 

अलग-अलग दावों में विस्थापित पंडितों के अलग-अलग आंकड़े

माना जाता है कि सरकार की ओर से विस्थापित कश्मीरी पंडितों की संख्या ठीक से इसलिए नहीं बताई जा सकी, क्योंकि उनके पंजीकरण की संख्या साल दर साल लगातार बढ़ती रही है। कश्मीर पर किताब लिखने वाले एलेक्जेंडर इवान्स का मानना है कि 1990 के बाद कश्मीर छोड़ने वाले कुल हिंदुओं में से करीब 1.6-1.7 लाख कश्मीरी पंडित थे, जिनकी संख्या ज्यादा भी हो सकती है। वहीं, नोरविजियन रिफ्यूजी काउंसिल के इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर के आंकड़ों की मानें तो 1990 के बाद से 2.50 लाख पंडित विस्थापित हुए। 

इसके अलावा अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के आंकड़ों में कहा गया है कि आतंकी हिंसा के बाद कश्मीर से तीन लाख पंडित विस्थापित हुए थे। उधर कश्मीर और अनुच्छेद 370 पर किताबें और लेख लिखने वाले सुप्रीम कोर्ट के चर्चित वकील एजी नूरानी के मुताबिक, घाटी को छोड़ने वाली कश्मीरियों की संख्या कभी सही तौर पर सामने नहीं आई और यह आंकड़ा सात से आठ लाख के बीच भी हो सकता है। 

फिलहाल कश्मीरी पंडितों के परिवार कहां बसे?

ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 1990 के बाद कश्मीर छोड़ चुके 64 हजार 951 परिवारों में से सबसे ज्यादा 43 हजार 618 परिवार जम्मू में रह रहे हैं। इसके बाद दूसरा नंबर दिल्ली का है, जहां 19 हजार 338 कश्मीरियों के परिवार बसे हैं। इसके अलावा 1995 परिवार बाकी राज्यों में रह रहे हैं। सरकार ने इनमें कश्मीरी पंडितों का स्पष्ट आंकड़ा नहीं बताया। लेकिन इन परिवारों की संख्या 52 हजार से 57 हजार परिवारों के बीच मानी जा सकती है। 

कश्मीरी पंडितों को बसाने के लिए अब तक क्या हुआ?

पुनर्वास और मदद पहुंचाने की पहली वृहद पुनर्वास योजना कश्मीरी पंडितों के विस्थापन के 18 साल बाद कांग्रेस सरकार लेकर आई। इसके तहत कश्मीरी पंडितों के लिए बजट में 1618.4 करोड़ रुपये का प्रावधान हुआ। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने पंडितों को राहत देने जैसी कई योजनाओं का एलान किया, जिसे बाद में मोदी सरकार ने जोर-शोर से आगे बढ़ाया। 

2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने जम्मू-कश्मीर के लिए प्रधानमंत्री विकास पैकेज (पीएमडीपी) का एलान किया। इसके तहत जम्मू-कश्मीर के विकास के लिए 80 हजार 68 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया और कश्मीरी पंडितों को घाटी में वापस बसाने के लिए कई योजनाओं पर काम शुरू हुआ।

1. आर्थिक मदद

1990 में विस्थापन का शिकार हुए कश्मीरी पंडितों को बसाने के लिए केंद्र और जम्मू-कश्मीर सरकार ने अलग-अलग समय पर राहत योजनाएं शुरू कीं। इसके तहत शुरुआत में प्रत्येक विस्थापित परिवार को 500 रुपये की मदद का एलान किया गया। मोदी सरकार में फिलहाल प्रत्येक परिवार को लगभग 13 हजार रुपये की मदद दी जा रही है। यानी 3250 रुपये प्रति व्यक्ति की दर से। इसके अलावा जिन राज्यों में कश्मीरी पंडित बसे हैं, वहां भी राज्य सरकारें अपने स्तर पर प्रवासियों के लिए आर्थिक मदद और आरक्षण से जुड़ी योजनाएं चला रही हैं।

2. गृह-पुनर्वास

2004 में कांग्रेस सरकार ने कश्मीरी प्रवासियों के लिए जम्मू के चार क्षेत्रों- पुरखू, मुथी, नगरौटा और जगती में दो कमरों की 5242 कॉलोनियों का निर्माण कराया और इनमें लोगों को बसाया गया। इसके अलावा कश्मीर घाटी के बडगाम स्थित शेखपुरा में भी 200 फ्लैट्स का निर्माण कराया गया, जिन्हें राज्य सरकार के अंतर्गत काम करने वाले कर्मचारियों को अलॉट किया। 

2008 में प्रत्येक परिवार को घर के निर्माण या मरम्मत के लिए 7.5 लाख रुपये की मदद का वादा किया गया। बताया जाता है कि कांग्रेस की तरफ से लाई गई यह योजना कुछ समय बाद बंद हो गई थी। लेकिन मोदी सरकार की तरफ से 2015 में जारी हुए राहत पैकेज में इसे दोबारा शुरू किया गया। 

3. नौकरी

2008 के राहत पैकेज में तीन हजार कश्मीरी पंडितों को पहले चरण में सरकारी नौकरी देने का वादा किया गया। छात्रों को स्कॉलरशिप के अलावा कर्ज की दरों में छूट की बात भी कही गई। नवंबर 2015 तक महज 1963 पंडितों को ही राज्य सरकार की नौकरी मिल पाई थी। लेकिन 2015 के पीएम राहत पैकेज के तहत इसके बाद कश्मीर घाटी में छह हजार सरकारी पद निकाले गए, जिनमें 3800 कश्मीरी प्रवासियों को नौकरी दी गई। ये प्रवासी फिलहाल कश्मीर के श्रीनगर, बडगाम, बारामूला, शोपियां, कुलगाम, कुपवाड़ा, पुलवामा, बांदीपोरा, अनंतनाग और गांदरबल में काम कर रहे हैं। सरकार के मुताबिक कई और नौकरियां अभी पाइपलाइन में हैं। 

अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीरी प्रवासियों के हालात में क्या बदलाव?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छीन लिया और इससे लद्दाख को अलग कर केंद्र शासित प्रदेश बनाने का एलान किया गया। सरकार ने इस कदम के साथ ही कश्मीरी पंडितों के घाटी में पुनर्वास की कोशिशों को तेज किया है।  

मोदी सरकार के आने और अनुच्छेद 370 हटने के बाद तक क्या हुआ?

1. कश्मीरी पंडितों को लेकर 2015 में दूसरी वृहद योजना का एलान किया गया था। इसके लागू होने के बाद 2017 से 2022 के बीच पांच साल के अंतराल में 610 कश्मीरी पंडितों को उनके कश्मीर स्थित घर लौटाए जा चुके हैं। कश्मीरी पंडितों का एक बड़ा तबका ये सभी घर 1980-90 के दौर में छोड़कर भागने को मजबूर हुआ था। 

2. सरकार का कहना है कि 5 अगस्त 2019 के बाद से ही अब तक 1700 कश्मीरी पंडितों को सरकारी नौकरियां मिली हैं। राज्यसभा में दिए लिखित जवाब में गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने बताया था कि कश्मीरी प्रवासी परिवारों को दोबारा इस केंद्र शासित प्रदेश में बसाने के काम में 2019 से तेजी लाई गई और इस साल फरवरी तक पहले 1697 और फिर 1140 अतिरिक्त नौकरियां दी गईं। 2015 के बाद से अब तक 3800 से ज्यादा प्रवासी नौकरियों के लिए घाटी लौट चुके हैं। इसके अलावा 2021 में ही दो हजार और प्रवासियों के लौटने की संभावना जताई जा चुकी है।

3. कश्मीरी पंडितों के लिए घाटी में सरकारी नौकरी के साथ रहने की व्यवस्था भी की जा रही है। इसी के तहत फिलहाल कश्मीर में 920 करोड़ रुपये की लागत से 6000 ट्रांजिट घर बनाए जा रहे हैं। सरकारी नौकरियों में कश्मीरी पंडितों की संख्या बढ़ने के साथ ही उन्हें रहने के लिए ये जगहें दी जाएंगी। जिन 19 जगहों पर ये फ्लैट बनाए जा रहे हैं उनमें बांदीपोरा, बारामूला, बडगाम समेत कई जगहें शामिल हैं। इसके अलावा अस्थायी व्यवस्था के तौर पर सरकार ने लौटे लोगों के लिए 1025 शेल्टर बना दिए हैं। 

क्या रही है कश्मीरी पंडितों की मौजूदा मांगें?

कश्मीरी पंडितों ने हाल ही में बजट पेश होने से पहले मांग की थी कि केंद्र शासित प्रदेश के सालाना बजट में से 2.5 फीसदी को प्रवासियों के पुनर्वास के लिए खर्च किया जाना चाहिए। इसके साथ ही कश्मीरी पंडितों की मांग थी कि सरकार जल्द से जल्द अधिवास प्रमाणपत्र यानी डोमिसाइल सर्टिफिकेट लोगों के लिए जारी करे, ताकि कश्मीरी पंडितों को घाटी में अपना हक मिले और वे कश्मीर की मुख्यधारा में लौटें। इसके अलावा परिवारों ने मिलने वाली राहत राशि को भी 13 हजार से बढ़ाकर 25 हजार करने की मांग उठाई है। 

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