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उत्तराखंड के सीएम की विदाई: अपनी बनाई छवि से ही बाहर आई भाजपा

राज्यपाल को इस्तीफा सौंपने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत
– फोटो : पीटीआई

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उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की विदाई मामूली घटना नहीं है। इस फैसले से भाजपा किसी भी सूरत में नेतृत्व परिवर्तन नहीं करने की अपनी ही बनाई छवि से बाहर आ गई है। नेतृत्व ने साफ किया है कि वह राज्यों में ब्रांड मोदी को भुनाने में नाकाम रहने और जीत की राह में रोड़ा बनने का खतरा भविष्य में नहीं उठाएगी। भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति में मोदी युग की शुरुआत के बाद किसी सीएम को पद से हटाने का यह पहला मामला है।

दरअसल, भाजपा में मोदी युग की शुरुआत के बाद से ही भाजपा को राज्यों में समस्या झेलनी पड़ी है। राज्य नेतृत्व विधानसभा चुनाव में ब्रांड मोदी को भुनाने में नाकाम साबित हुआ है। खासतौर से बीते लोकसभा चुनाव में जब यह सिलसिला और मजबूत हुआ तो नेतृत्व की चिंता बढ़ गई।

लोकसभा चुनाव की तुलना में विधानसभा चुनाव में भाजपा को हरियाणा में 17 फीसदी, झारखंड में 22 फीसदी, दिल्ली में 15 फीसदी, महाराष्ट्र में सात फीसदी मतों का नुकसान हुआ। समीक्षा में पाया गया कि राज्यों में एक  बड़े वर्ग को राज्य का नेतृत्व पसंद नहीं आ रहा। यह वर्ग पीएम मोदी के साथ तो है मगर स्थानीय नेतृत्व के प्रति इनका कोई लगाव नहीं है।

पहले भी हुए इस्तीफे, मगर सहमति से
गौरतलब है कि इससे पहले गुजरात में आनंदीबेन पटेल और गोवा में मनोहर परिकर को इस्तीफा देना पड़ा था। हालांकि, यह फैसला नेतृत्व और पटेल-परिकर की सहमति से हुआ था। पीएम मोदी परिकर को केंद्रीय राजनीति में लाना चाहते थे। जबकि पटेल को हटाकर पद के लिए 75 वर्ष की उम्र सीमा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करना चाहते थे। यही कारण है कि पटेल को बाद में राज्यपाल की भूमिका में भेजा गया।

कांग्रेस शासित राज्यों में जीत, मगर अपने ही घर में प्रदर्शन उत्साहजनक नहीं
साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी शुरुआती डेढ़ सालों में ब्रांड मोदी के सहारे खासतौर से कांग्रेस शासित राज्यों में जीतती रही। मगर पार्टी शासित राज्यों में प्रदर्शन उत्साहजनक नहीं रहे। मसलन पार्टी को प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात में कड़ी टक्कर मिली। वहीं, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सत्ता गंवा देनी पड़ी। इन्हीं राज्यों में जब विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव हुए तो ब्रांड मोदी के सहारे भाजपा ने विपक्ष का करीब-करीब सूपड़ा साफ कर दिया।

जल्द ही बाकी राज्यों की भी होगी समीक्षा
दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद भाजपा नेतृत्व ने इन्हीं तथ्यों के सहारे राज्यों की समीक्षा की रणनीति बनाई। तब तय हुआ था कि ऐसे राज्यों में नेतृत्व को तत्काल बदला जाना चाहिए जो विधानसभा चुनाव में पार्टी और ब्रांड मोदी का ग्राफ बनाने में अक्षम दिख रहे हैं। हालांकि, इसी बीच कोरोना महामारी के कारण सहमति को अमलीजामा पहनाने में देर हो गई। सूत्रों का कहना है कि अब जल्द ही बारी-बारी से अन्य राज्यों की समीक्षा होगी। जरूरत पड़ने पर समय रहते नेतृत्व परिवर्तन किया जाएगा।

शुरुआत में किसी का भी इस्तीफा नहीं लेने की बनी थी छवि
मोदी युग की शुरुआत के बाद भाजपा की छवि किसी भी सूरत में बदलाव या इस्तीफा नहीं लेने की बनी। केंद्र में कई मंत्री विपक्ष के निशाने पर आए। आईपीएल विवाद में राजस्थान की तत्कालीन सीएम वसुंधरा को हटाने का दबाव बना। पहली पारी में दुष्कर्म के आरोपी मंत्री पर लगातार हंगामा हुआ। हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड के सीएम के खिलाफ विरोधी धड़े ने दबाव बनाने की कोशिश की। मगर नेतृत्व ने एक का भी इस्तीफा नहीं लिया। अपवादस्वरूप मीटू मामले में केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर की जरूर विदाई हुई। हालांकि, अब भाजपा अपनी इस आशय की बनी छवि से बाहर आ गई है।

विस्तार

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की विदाई मामूली घटना नहीं है। इस फैसले से भाजपा किसी भी सूरत में नेतृत्व परिवर्तन नहीं करने की अपनी ही बनाई छवि से बाहर आ गई है। नेतृत्व ने साफ किया है कि वह राज्यों में ब्रांड मोदी को भुनाने में नाकाम रहने और जीत की राह में रोड़ा बनने का खतरा भविष्य में नहीं उठाएगी। भाजपा की राष्ट्रीय राजनीति में मोदी युग की शुरुआत के बाद किसी सीएम को पद से हटाने का यह पहला मामला है।

दरअसल, भाजपा में मोदी युग की शुरुआत के बाद से ही भाजपा को राज्यों में समस्या झेलनी पड़ी है। राज्य नेतृत्व विधानसभा चुनाव में ब्रांड मोदी को भुनाने में नाकाम साबित हुआ है। खासतौर से बीते लोकसभा चुनाव में जब यह सिलसिला और मजबूत हुआ तो नेतृत्व की चिंता बढ़ गई।

लोकसभा चुनाव की तुलना में विधानसभा चुनाव में भाजपा को हरियाणा में 17 फीसदी, झारखंड में 22 फीसदी, दिल्ली में 15 फीसदी, महाराष्ट्र में सात फीसदी मतों का नुकसान हुआ। समीक्षा में पाया गया कि राज्यों में एक  बड़े वर्ग को राज्य का नेतृत्व पसंद नहीं आ रहा। यह वर्ग पीएम मोदी के साथ तो है मगर स्थानीय नेतृत्व के प्रति इनका कोई लगाव नहीं है।

पहले भी हुए इस्तीफे, मगर सहमति से

गौरतलब है कि इससे पहले गुजरात में आनंदीबेन पटेल और गोवा में मनोहर परिकर को इस्तीफा देना पड़ा था। हालांकि, यह फैसला नेतृत्व और पटेल-परिकर की सहमति से हुआ था। पीएम मोदी परिकर को केंद्रीय राजनीति में लाना चाहते थे। जबकि पटेल को हटाकर पद के लिए 75 वर्ष की उम्र सीमा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करना चाहते थे। यही कारण है कि पटेल को बाद में राज्यपाल की भूमिका में भेजा गया।

कांग्रेस शासित राज्यों में जीत, मगर अपने ही घर में प्रदर्शन उत्साहजनक नहीं

साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी शुरुआती डेढ़ सालों में ब्रांड मोदी के सहारे खासतौर से कांग्रेस शासित राज्यों में जीतती रही। मगर पार्टी शासित राज्यों में प्रदर्शन उत्साहजनक नहीं रहे। मसलन पार्टी को प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात में कड़ी टक्कर मिली। वहीं, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सत्ता गंवा देनी पड़ी। इन्हीं राज्यों में जब विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव हुए तो ब्रांड मोदी के सहारे भाजपा ने विपक्ष का करीब-करीब सूपड़ा साफ कर दिया।

जल्द ही बाकी राज्यों की भी होगी समीक्षा

दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद भाजपा नेतृत्व ने इन्हीं तथ्यों के सहारे राज्यों की समीक्षा की रणनीति बनाई। तब तय हुआ था कि ऐसे राज्यों में नेतृत्व को तत्काल बदला जाना चाहिए जो विधानसभा चुनाव में पार्टी और ब्रांड मोदी का ग्राफ बनाने में अक्षम दिख रहे हैं। हालांकि, इसी बीच कोरोना महामारी के कारण सहमति को अमलीजामा पहनाने में देर हो गई। सूत्रों का कहना है कि अब जल्द ही बारी-बारी से अन्य राज्यों की समीक्षा होगी। जरूरत पड़ने पर समय रहते नेतृत्व परिवर्तन किया जाएगा।

शुरुआत में किसी का भी इस्तीफा नहीं लेने की बनी थी छवि

मोदी युग की शुरुआत के बाद भाजपा की छवि किसी भी सूरत में बदलाव या इस्तीफा नहीं लेने की बनी। केंद्र में कई मंत्री विपक्ष के निशाने पर आए। आईपीएल विवाद में राजस्थान की तत्कालीन सीएम वसुंधरा को हटाने का दबाव बना। पहली पारी में दुष्कर्म के आरोपी मंत्री पर लगातार हंगामा हुआ। हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड के सीएम के खिलाफ विरोधी धड़े ने दबाव बनाने की कोशिश की। मगर नेतृत्व ने एक का भी इस्तीफा नहीं लिया। अपवादस्वरूप मीटू मामले में केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर की जरूर विदाई हुई। हालांकि, अब भाजपा अपनी इस आशय की बनी छवि से बाहर आ गई है।

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