वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, मास्को
Published by: Harendra Chaudhary
Updated Mon, 27 Sep 2021 05:32 PM IST
सार
रूसी राजनयिकों ने मांग की है कि ऑस्ट्रेलिया में परमाणु क्षमता से लैस पनडुब्बी के निर्माण की निगरानी अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) करे। लेकिन पर्यवेक्षकों का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया इस मांग को मानेगा, इसकी तनिक भी संभावना नहीं है। इस मामले में ऑस्ट्रेलिया का रुख पहले से ही सख्त है…
ऑकुस (ऑस्ट्रेलिया- ब्रिटेन- अमेरिका) के बीच हाल में हुए त्रिपक्षीय रक्षा समझौते का जवाब रूस कैसे देगा, इस बारे में वैश्विक रक्षा विशेषज्ञों के बीच कयास लगाए जा रहे हैँ। रूस की प्रतिक्रिया इसलिए महत्त्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि रूस के पास पहले से ही परमाणु शक्ति वाली पनडुब्बियां बनाने की क्षमता है। ऑकुस का एलान होने के बाद रूस की शुरुआती प्रतिक्रिया मद्धम रही।
रूस ने अपने आधिकारिक बयान में कहा था कि इसके पहले कि ऑकुस के प्रति अपना रुख तय किया जाए, ऑकुस के लक्ष्यों और संसाधनों को गहराई से समझना होगा। रूसी बयान में कहा गया कि इस बारे में अभी ज्यादा जानकारी नहीं है। लेकिन कुछ रूसी राजनयिकों ने चीन की इस राय का समर्थन किया है कि ऑस्ट्रेलिया को परमाणु पनडुब्बी की तकनीक देने से परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) का उल्लंघन होगा। उन्होंने कहा है कि अमेरिका और ब्रिटेन के इस कदम से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में हथियारों की होड़ तेज हो जाएगी।
रूसी राजनयिकों ने मांग की है कि ऑस्ट्रेलिया में परमाणु क्षमता से लैस पनडुब्बी के निर्माण की निगरानी अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) करे। लेकिन पर्यवेक्षकों का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया इस मांग को मानेगा, इसकी तनिक भी संभावना नहीं है। इस मामले में ऑस्ट्रेलिया का रुख पहले से ही सख्त है। अमेरिका में ऑस्ट्रेलिया के पूर्व राजदूत जो हॉकी ने तो यह साफ कहा है कि ऑकुस का मकसद इंडो-पैसिफिक में सिर्फ चीन का नहीं, बल्कि रूस की ताकत का भी मुकाबला करना है।
जो हॉकी की ये टिप्पणी आने के बाद रूस की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव निकोलाई पेत्रुशेव ने ऑकुस को एशियाई नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) बताया और कहा- ‘अमेरिका इसमें अन्य देशों और संगठनों को शामिल करने की कोशिश करेगा, ताकि वह अपनी चीन और रूस विरोधी नीतियों को आगे बढ़ा सके।’
पर्यवेक्षकों ने ऐसे बयानों को इस का संकेत माना है कि रूस जवाबी कदम उठाएगा। उनके मुताबिक चूंकि तुरंत ऑकुस से कोई सैनिक खतरा सामने नहीं आने वाला है, इसलिए मुमकिन है कि शुरुआत में रूस सिर्फ राजनीतिक गोलबंदी की कोशिश करे। लेकिन लंबी अवधि में वह इंडो-पैसिफिक में अपने मित्र देशों को परमाणु पनडुब्बी की टेक्नोलॉजी ट्रांसफर कर सकता है।
वेबसाइट एशिया टाइम्स में छपे एक विश्लेषण के मुताबिक रूस की परमाणु पनडुब्बी तकनीक को दुनिया की सर्वोत्तम तकनीकों में गिना जाता है। इस मामले में उसकी क्षमता चीन से भी बेहतर है। लेकिन अब तक रूस इस टेक्नोलॉजी को किसी और देश को देने से गुरेज करता रहा है। 1987 में तत्कालीन सोवियत संघ ने भारत को परमाणु क्षमता वाली पनडुब्बी जरूर थी, लेकिन उसने इसकी टेक्नोलॉजी ट्रांसफर नहीं की थी।
विश्लेषकों का कहना है कि अगर रूस ने दूसरे देशों को ये टेक्नोल़ॉजी देने का फैसला किया, तो उसके खरीदारों की कोई कमी नहीं रहेगी। उनके मुताबिक सबसे पहले वियतनाम और अल्जीरिया इसके लिए आगे आ सकते हैं। एक सैन्य विशेषज्ञ ने एशिया टाइम्स से कहा- ‘सच्ची बात यह है कि हमारी आंखों के सामने परमाणु क्षमता से लैस पनडुब्बियों एक नया बाजार तैयार हो रहा है।’
विशेषज्ञों की ये राय भी है कि रूस और चीन आगे चल कर समुद्री गठबंधन बना सकते हैं, ताकि वे ऑकुस की साझा सैनिक ताकत का मुकाबला कर सकें। उनके मुताबिक दोनों देशों के बीच सैन्य संबंध पहले से ही मजबूत हो रहे हैं। इसलिए ऐसी संभावना हवाई नहीं है। इसलिए रूस और चीन नौसैनिक मामलों में भी गठबंधन बना सकते हैं और ऐसा होना ऑकुस के लिए कोई अच्छी खबर नहीं होगी।
विस्तार
ऑकुस (ऑस्ट्रेलिया- ब्रिटेन- अमेरिका) के बीच हाल में हुए त्रिपक्षीय रक्षा समझौते का जवाब रूस कैसे देगा, इस बारे में वैश्विक रक्षा विशेषज्ञों के बीच कयास लगाए जा रहे हैँ। रूस की प्रतिक्रिया इसलिए महत्त्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि रूस के पास पहले से ही परमाणु शक्ति वाली पनडुब्बियां बनाने की क्षमता है। ऑकुस का एलान होने के बाद रूस की शुरुआती प्रतिक्रिया मद्धम रही।
रूस ने अपने आधिकारिक बयान में कहा था कि इसके पहले कि ऑकुस के प्रति अपना रुख तय किया जाए, ऑकुस के लक्ष्यों और संसाधनों को गहराई से समझना होगा। रूसी बयान में कहा गया कि इस बारे में अभी ज्यादा जानकारी नहीं है। लेकिन कुछ रूसी राजनयिकों ने चीन की इस राय का समर्थन किया है कि ऑस्ट्रेलिया को परमाणु पनडुब्बी की तकनीक देने से परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) का उल्लंघन होगा। उन्होंने कहा है कि अमेरिका और ब्रिटेन के इस कदम से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में हथियारों की होड़ तेज हो जाएगी।
रूसी राजनयिकों ने मांग की है कि ऑस्ट्रेलिया में परमाणु क्षमता से लैस पनडुब्बी के निर्माण की निगरानी अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) करे। लेकिन पर्यवेक्षकों का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया इस मांग को मानेगा, इसकी तनिक भी संभावना नहीं है। इस मामले में ऑस्ट्रेलिया का रुख पहले से ही सख्त है। अमेरिका में ऑस्ट्रेलिया के पूर्व राजदूत जो हॉकी ने तो यह साफ कहा है कि ऑकुस का मकसद इंडो-पैसिफिक में सिर्फ चीन का नहीं, बल्कि रूस की ताकत का भी मुकाबला करना है।
जो हॉकी की ये टिप्पणी आने के बाद रूस की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव निकोलाई पेत्रुशेव ने ऑकुस को एशियाई नाटो (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन) बताया और कहा- ‘अमेरिका इसमें अन्य देशों और संगठनों को शामिल करने की कोशिश करेगा, ताकि वह अपनी चीन और रूस विरोधी नीतियों को आगे बढ़ा सके।’
पर्यवेक्षकों ने ऐसे बयानों को इस का संकेत माना है कि रूस जवाबी कदम उठाएगा। उनके मुताबिक चूंकि तुरंत ऑकुस से कोई सैनिक खतरा सामने नहीं आने वाला है, इसलिए मुमकिन है कि शुरुआत में रूस सिर्फ राजनीतिक गोलबंदी की कोशिश करे। लेकिन लंबी अवधि में वह इंडो-पैसिफिक में अपने मित्र देशों को परमाणु पनडुब्बी की टेक्नोलॉजी ट्रांसफर कर सकता है।
वेबसाइट एशिया टाइम्स में छपे एक विश्लेषण के मुताबिक रूस की परमाणु पनडुब्बी तकनीक को दुनिया की सर्वोत्तम तकनीकों में गिना जाता है। इस मामले में उसकी क्षमता चीन से भी बेहतर है। लेकिन अब तक रूस इस टेक्नोलॉजी को किसी और देश को देने से गुरेज करता रहा है। 1987 में तत्कालीन सोवियत संघ ने भारत को परमाणु क्षमता वाली पनडुब्बी जरूर थी, लेकिन उसने इसकी टेक्नोलॉजी ट्रांसफर नहीं की थी।
विश्लेषकों का कहना है कि अगर रूस ने दूसरे देशों को ये टेक्नोल़ॉजी देने का फैसला किया, तो उसके खरीदारों की कोई कमी नहीं रहेगी। उनके मुताबिक सबसे पहले वियतनाम और अल्जीरिया इसके लिए आगे आ सकते हैं। एक सैन्य विशेषज्ञ ने एशिया टाइम्स से कहा- ‘सच्ची बात यह है कि हमारी आंखों के सामने परमाणु क्षमता से लैस पनडुब्बियों एक नया बाजार तैयार हो रहा है।’
विशेषज्ञों की ये राय भी है कि रूस और चीन आगे चल कर समुद्री गठबंधन बना सकते हैं, ताकि वे ऑकुस की साझा सैनिक ताकत का मुकाबला कर सकें। उनके मुताबिक दोनों देशों के बीच सैन्य संबंध पहले से ही मजबूत हो रहे हैं। इसलिए ऐसी संभावना हवाई नहीं है। इसलिए रूस और चीन नौसैनिक मामलों में भी गठबंधन बना सकते हैं और ऐसा होना ऑकुस के लिए कोई अच्छी खबर नहीं होगी।
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