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स्टडी: बढ़ता रहा CO2 उत्सर्जन तो मुश्किल होगा इंसानों का पृथ्वी पर रहना, ऐसा होगा भारत का हाल

वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, ओटावा
Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र
Updated Fri, 15 Oct 2021 05:27 PM IST

सार

कनाडा की मैक्गिल यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने भविष्य के जलवायु परिवर्तन को लेकर मॉडल तैयार किया है, इसमें ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन से पैदा हुए खतरों की तीन तरह से कल्पना की गई है। 

मैक्गिल यूनिवस्रिटी के वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर कार्बन उत्सर्जन में कमी नहीं आई, तो भारत में 2500 तक भीषण गर्मी पड़ेगी और लोगों को खास सूट पहनकर जिंदा रहना होगा।
– फोटो : Global Change Biology/Amar Ujala

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दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। कार्बन उत्सर्जन के बढ़ते स्तर को लेकर वैज्ञानिक पहले भी कई बार चिंता जाहिर कर चुके हैं। इसके बावजूद कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगाने के बजाय ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए ज्यादातर देश जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता बढ़ाते जा रहे हैं। अब वैज्ञानिकों ने ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते खतरे को दर्शाने के लिए एक स्टडी की है, जिसमें 16वीं, 21वीं सदी और 26वीं सदी में पैदा हुए माहौल की तुलना की गई है। इसमें कहा गया है कि अगर कार्बन उत्सर्जन आज के ही स्तर पर जारी रहा, तो 2500 तक आते-आते अमेजन के जंगल बंजर जमीन रह जाएंगे। अमेरिका के पश्चिम-मध्य के उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) और भारत में तापमान इतना ज्यादा होगा कि यहां रहना मुश्किल हो जाएगा। 
कनाडा की मैक्गिल यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों की टीम ने साल 1500 से लेकर 2500 तक के जलवायु परिवर्तन को दर्शाने वाली जो तस्वीरें जारी की हैं, वह काफी चौंकाने वाली हैं। इनमें दिखाया गया है कि कैसे 500-500 सालों के अंतराल में धरती इंसानों के रहने लायक नहीं रह पाएगी। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर जलवायु परिवर्तन 2021 के बेंचमार्क पर नहीं रोका गया, तो इसका असर आगे की पीढ़ियों पर देखा जाएगा। 
रिसर्चर्स ने जो मॉडल तैयार किया है, उसमें ग्रीनहाउस गैसों के हल्के और मध्यम उत्सर्जन के प्रभाव को दर्शाया गया है। साथ ही कहा गया है कि इस तरह पेरिस जलवायु समझौते के तहत वैश्विक तापमान को 2 डिग्री बढ़ने से नहीं रोका जा सकता। इन हालात में हरे-भरे इलाकों के बंजर जमीन में बदलने का खतरा जताया गया है, जिससे फसलों की कमी पैदा हो सकती है। 
स्टडी में एक हजार साल के बीच भारत के बदलते हालात को भी दिखाया गया है। इसमें कहा गया है कि भारतीय उपमहाद्वीप पृथ्वी के सबसे ज्यादा आबादी वाले क्षेत्रों में है। यह क्षेत्र पहले ही काफी गंभीर जलवायु परिस्थितियों से गुजर रहा है। 2013 से 2015 के बीच इस क्षेत्र में कई मौतों का कारण यह बढ़ती गर्मी रही है। रिसर्चर्स ने बताया है कि 2100 तक उपमहाद्वीप पर तापमान दो डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा, जबकि 2500 तक तापमान में कुल बढ़ोतरी 4 डिग्री सेल्सियस की होगी। 
वैज्ञानिकों ने जो फोटो मॉडल तैयार किया है, उसके मुताबिक, जहां 1500 तक भारत का ज्यादातर हिस्सा ग्रामीण रहा और हरियाली छाई रही, वहीं 2020 में इस हरियाली का दायरा घटने के साथ गर्मी और लू का प्रकोप बढ़ा दिखाया गया है। रिसर्चरों ने जो सन 2500 की तस्वीर पेश की है, उसमें देश में भारी इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ कृषि क्षेत्र से जुड़े कार्य स्वचालित मशीनों के जरिए करते दिखाया गया है। इसके अलावा लोगों को यहां रहने के लिए गर्मी झेलने वाले एक खास सूट और हेलमेट पहने दर्शाया गया है, जो कि शरीर में पानी का बहाव और ठंड बनाए रखने में सक्षम होगा।

विस्तार

दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। कार्बन उत्सर्जन के बढ़ते स्तर को लेकर वैज्ञानिक पहले भी कई बार चिंता जाहिर कर चुके हैं। इसके बावजूद कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगाने के बजाय ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए ज्यादातर देश जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता बढ़ाते जा रहे हैं। अब वैज्ञानिकों ने ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते खतरे को दर्शाने के लिए एक स्टडी की है, जिसमें 16वीं, 21वीं सदी और 26वीं सदी में पैदा हुए माहौल की तुलना की गई है। इसमें कहा गया है कि अगर कार्बन उत्सर्जन आज के ही स्तर पर जारी रहा, तो 2500 तक आते-आते अमेजन के जंगल बंजर जमीन रह जाएंगे। अमेरिका के पश्चिम-मध्य के उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) और भारत में तापमान इतना ज्यादा होगा कि यहां रहना मुश्किल हो जाएगा। 

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