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सुप्रीम कोर्ट: महज दाखिल खारिज होने से नहीं मिल जाता संपत्ति पर मालिकाना हक

अमर उजाला ब्यूरो, नई दिल्ली।
Published by: Jeet Kumar
Updated Sat, 11 Sep 2021 04:52 AM IST

सार

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आवेदक के अधिकारों का निपटारा अदालत जाकर ही हो सकता है और इसके बाद सिविल कोर्ट के निर्णय के आधार पर ही आवश्यक दाखिल खारिज प्रविष्टि की जा सकती है।
 

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 सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि महज राजस्व रिकॉर्ड में दाखिल खारिज की प्रविष्टि से संपति पर किसी व्यक्ति का मालिकाना हक पक्का नहीं हो जाता। शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी संपति का दाखिल खारिज महज नगर निगम के राजस्व रिकॉर्ड में ‘टाइटल एंट्री’ से जुड़ा एक बदलाव है, जिसके वित्तीय उद्देश्य होते हैं।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं हो सकता है कि किसी वसीयत के आधार पर अधिकार का दावा उस वसीयत के कर्ता की मृत्यु के बाद ही किया जा सकता है।

पीठ ने कहा कि कानून के तय नियमों के अनुसार, महज दाखिल खारिज प्रविष्टि से किसी व्यक्ति का किसी संपत्ति पर मालिकाना हक नही बन जाता। यदि मालिकाना हक को लेकर कोई विवाद है और खासतौर पर जब वसीयत के आधार पर दाखिल खारिज प्रविष्टि की मांग की जाती है, तो जो मालिकाना हक का दावा कर रहे पक्ष को उचित अदालत का दरवाजा खटखटाना होगा।

सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने फैसलों का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि राजस्व रिकॉर्ड में संपत्ति का दाखिल खारिज न तो संपत्ति पर मालिकाना हक बनाता है और न ही समाप्त करता है। इस तरह की प्रविष्टियां केवल भू-राजस्व एकत्र करने के उद्देश्य से प्रासंगिक हैं।

रीवा के एक मामले में दिया फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय मध्य प्रदेश के रीवा के एक मामले में दिया। इस मामले में रीवा के अपर आयुक्त ने याचिकाकर्ता की तरफ से प्रस्तुत वसीयत के आधार पर राजस्व रिकॉर्ड में उसका नाम बदलने का निर्देश दिया।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कुछ पक्षों द्वारा दायर एक याचिका पर अपर आयुक्त के आदेश को रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता को कथित वसीयत के आधार पर अपने अधिकार तय कराने के लिए उपयुक्त अदालत का दरवाजा खटखटाने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट के इस आदेश को याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया है।

विस्तार

 सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर स्पष्ट किया है कि महज राजस्व रिकॉर्ड में दाखिल खारिज की प्रविष्टि से संपति पर किसी व्यक्ति का मालिकाना हक पक्का नहीं हो जाता। शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी संपति का दाखिल खारिज महज नगर निगम के राजस्व रिकॉर्ड में ‘टाइटल एंट्री’ से जुड़ा एक बदलाव है, जिसके वित्तीय उद्देश्य होते हैं।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं हो सकता है कि किसी वसीयत के आधार पर अधिकार का दावा उस वसीयत के कर्ता की मृत्यु के बाद ही किया जा सकता है।

पीठ ने कहा कि कानून के तय नियमों के अनुसार, महज दाखिल खारिज प्रविष्टि से किसी व्यक्ति का किसी संपत्ति पर मालिकाना हक नही बन जाता। यदि मालिकाना हक को लेकर कोई विवाद है और खासतौर पर जब वसीयत के आधार पर दाखिल खारिज प्रविष्टि की मांग की जाती है, तो जो मालिकाना हक का दावा कर रहे पक्ष को उचित अदालत का दरवाजा खटखटाना होगा।

सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने फैसलों का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि राजस्व रिकॉर्ड में संपत्ति का दाखिल खारिज न तो संपत्ति पर मालिकाना हक बनाता है और न ही समाप्त करता है। इस तरह की प्रविष्टियां केवल भू-राजस्व एकत्र करने के उद्देश्य से प्रासंगिक हैं।

रीवा के एक मामले में दिया फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय मध्य प्रदेश के रीवा के एक मामले में दिया। इस मामले में रीवा के अपर आयुक्त ने याचिकाकर्ता की तरफ से प्रस्तुत वसीयत के आधार पर राजस्व रिकॉर्ड में उसका नाम बदलने का निर्देश दिया।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कुछ पक्षों द्वारा दायर एक याचिका पर अपर आयुक्त के आदेश को रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता को कथित वसीयत के आधार पर अपने अधिकार तय कराने के लिए उपयुक्त अदालत का दरवाजा खटखटाने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट के इस आदेश को याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया है।

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